बरसाती पानी के निकास के लिए मूलभूत सोच और इच्छाशक्ति की आवश्यकता

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अतुल शेठ

लोकतंत्र में जो एक महत्वपूर्ण बात है कि,शासन को और प्रशासन को व्यवस्था संभालना है व्यवस्था करना है,और जन जागरण करना है।आमजन अपनी सुविधा और अपनी मजबूरी और अपनी क्षमता के कारण,दिनचर्या में इतना उलझा रहता है कि,लंबी सोच और अपने से दूर की सोच के अनुसार कार्य करना उसके लिए मुश्किल होता है। इसीलिए अच्छे शासन में,शासन को प्रशासन को और उसके ताने-बाने को बनाया जाता है।जिससे कि समाज मे सुव्यवस्था हो सके।आज शहर में कहीं भी बरसात के पानी के मुद्दे पर कोई व्यवस्था बनाई हुई नहीं दिखती है।

जिसमें आम जनता सहयोग कर सकें या उसको संभाल सके।इंदौर शहर में पहले भी और आज भी जब नक्शे पास किए जाते हैं,उसमें लिखा जाता है कि,भवन के प्रवेश द्वार पर कम से कम 300 एमएम का आरसीसी पाइप डालना है।बरसात के पानी की निकासी के लिए।मगर उस पाइप में पानी आएगा कहां से और कैसे कहां जाएगा,इसकी कोई व्यवस्था नहीं है।जो पहले खुली नालियों ओर रोड क्रोसिग पर पुलीयाओ के माध्यम से हुआ करती थी।यह एक मूल समस्या है।नक्शे की परमिशन में लिखकर शासन/प्रशासन अपनी जिम्मेदारी की ईतीश्री मान लेता है।

उसने उसके लिए बनी बनाई व्यवस्थाओं को पेवर लगाने के नाम पर खत्म कर दिया। सोच ओर तकनीकी के आभाव के कारण।गलत ढंग से पेवर लगने के कारण।ये समस्या विकराल हुइ हे।इन पेवरो को अगर रोड से नीचे और भवन की तरफ ढाल देकर लगाते और भवन सीमा से लगके खुली नाली बनाते, तो यह समस्या शहर में 80% तक हल हो सकती थी और आगे भी इसी व्यवस्था से ही हल हो सकती है।केवल एक इच्छा शक्ति की जन जागरण की और कार्य पद्धति के विकास की आवश्यकता है।