यूपी चुनाव के बाद सपा पार्टी संकट के घेरे में, अखिलेश यादव की बड़ी मुश्किलें

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में समजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का सियासी संकट के घेरे में जाता जा रहा है। एक ओर सहयोगी दल छिटक रहे है तो दूसरी ओर मुस्लिम संगठन भी अब उनसे दूर होते जा रहे है। सबसे बड़े दल के बाद सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का भी सपा से गठबंधन नहीं रहा है। वहीं, शिवपाल यादव ने भी सपा को अलविदा कर चुके है। मुस्लिम संगठन ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम ने भी अखिलेश यादव को छोड़कर राजभर के साथ देने का ऐलान कर दिया है। बिहार में साल 2024 चुनाव में चुनाव होना है, उसको लेकर अखिलेश यादव की चिंताएं और गहराती जा रही है।

इतने सहयोगी दलों ने सपा को कहा गुड बाय

बाजेपी ने यूपी में भारी बहुमतों से सरकार बनाने के बाद से ही सपा गठबंधन में दरार बढ़ती जा रही है। सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य अलग हो चुके हैं। वहीं, सपा के पत्र आने के बाद शिवपाल सिंह यादव और ओमप्रकाश राजभर की अखिलेश यादव से सियासी दोस्ती टूट गई है। राजभर ने कहा कि सपा से गठबंधन टूट चुका है, अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल और भाभी अपर्णा यादव तक को नहीं संभाल पाए। अखिलेश अगर अपने परिवार को नहीं संभाल पा रहे हैं तो हमें कहां से संभालेंगे, वो अपने सामने किसी की नहीं सुनते हैं।

2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने जातीय आधार वाले जिन छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने में सफल रहे थे, वो अब एक-एक कर सपा से दूर हो रहे हैं. इस तरह तीन छोटे दलों के साथ अखिलेश यादव का गठबंधन टूट चुका है और अब उनके साथ सिर्फ जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी ही बची है। ओम प्रकाश राजभर अब जिस तरह से सपा के आक्रमक रुख अपना रखा है, उससे अखिलेश यादव का सामाजिक समीकरण भी गड़बड़ा रहा है।

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सुभासपा पार्टी को मिला साथ मुस्लिम संगठन का

समाजवादी पार्टी से साथ छोड़ने के बाद सुभासपा पार्टी को मुस्लिम संगठन का समर्थन मिला है। बरेली की दरगाह आला हजरत से जुड़े संगठन ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम ने सपा से गठबंधन तोड़ने को लेकर ओमप्रकाश राजभर को सपोर्ट किया है। संगठन के महासचिव शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने राजभर को अपना समर्थन देते हुए कहा कि सपा के खिलाफ यूपी भर में आंदोलन चलाएं, जिसमें हम पूरा सहयोग करेंगे। इतना ही नहीं मौलाना ने आजम खान पर परिवारवाद का भी आरोप लगा और कहा कि वो मुस्लिम समाज के बात नहीं करते हैं, जिससे मुसलमानों पर उनका प्रभाव खत्म हो चुका है।

सपा के खिलाफ चलाएंगे आंदोलन

मौलाना ने ओम प्रकाश राजभर को सलाह दी है कि जितनी जल्दी हो सके सपा के खिलाफ आंदोलन चलाने का एलान करें। उन्होंने पत्र में लिखा कि अखिलेश यादव की मुस्लिम मुद्दों पर खामोशी के चलते पहले ही 50 फीसद मुसलमानों ने सपा से दूरी बना चुका है और बाकी 50 फीसदी मुसलमान भी 2024 में अलग हो जाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि शिवपाल यादव और मौलाना तौकीर रजा खान के साथ मिलकर एक मोर्चा बनाएं और सपा के खिलाफ मुहिम चलाएं। मुसलमानों के मुद्दे उठाएं, मुसलमान आपके साथ खड़ा नजर आएगा।

गौरतलब है कि, आजमगढ़ और रामपुर उपचुनाव में सपा जिस तरह से अपने गढ़ में हारी है और दोनों सीटें गंवाई है. सपा के लिए ये सीटें सिर्फ सामाजिक समीकरण के लिहाज से काफी मजबूत नहीं मानी जाती, बल्कि पार्टी की जीत के परंपरागत फॉर्मूले एमवाई (मुस्लिम-यादव) के भी प्रतीक रहे हैं। ऐसे में उपचुनाव के नतीजे से एक बात साफ है कि मुसलमानों और यादवों पर सपा और अखिलेश यादव की पकड़ कमजोर रही है। बीजेपी ने सपा के एमवाई फैक्टर को तार-तार कर दिया है।

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इन जिलों में करनी होंगी कड़ी मशक्कत- राजभर को

आपको बता दे कि, 2022 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव-राजभर की जोड़ी ने पूर्वांचल के कई जिलों में बीजेपी मात ही नहीं बल्कि खाता तक नहीं खुलने दिया था। ऐसे में ओपी राजभर का सपा गठबंधन से अलग होने का सबसे ज्यादा असर पूर्वांचल के इलाके में पड़ेगा. आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, अंबेडकरनगर, बलिया, वाराणसी और चंदौली में राजभर की पकड़ मानी जाती है और अब सपा के लिए इन जिलों में राजभर के बिना जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा।

यूपी के पश्चिम में मुस्लिम बिगड़ सकता है खेल

सपा को 2022 के चुनाव में जिन इलाकों में जीत मिली थी, उनमें एक इलाका तो पूर्वांचल का था, जो राजभर के प्रभाव वाला था और दूसरा पश्चिम यूपी और रुहेलखंड की मुस्लिम बेल्ट थी। विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने सपा के पक्ष में 83 फीसदी वोट दिए थे, जिसके चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर उसे जीत मिली थी। ऐसे में सपा के खिलाफ जो मुस्लिम संगठन खुलकर सामने आया है, उसका आधार भी रुहलेखंड और पश्चिमी यूपी के उसी इलाके में है। इसके चलते सपा का मुस्लिम वोटबैंक के छिटकने का खतरा साफ दिख रहा है।

गौरतलब है कि, सपा के मुस्लिम वोटबैंक पर बसपा की भी नजर है। आजमगढ़ उपचुनाव में बसपा का दलित-मुस्लिम फॉर्मूले से सियासी संजीवनी मिली है, जिसके बाद मायावती 2024 के लिए भी उसी एजेंडे पर आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में राजभर ने कहा कि सपा से गठबंधन टूटने के बाद हमारी प्राथमिकता बहुजन समाज पार्टी है। जब बसपा से बात नहीं बनेगी तो किसी और से बात होगी. ऐसे में अखिलेश यादव के खिलाफ सियासी चक्रव्यूह इन दिनों जबरदस्त तरीके से रचा जा रहा है, जिसे सपा न तो सुलझा पा रही है और न ही तोड़ पा रही है इस तरह सपा की राजनीतिक चिंताएं बढ़ती जा रही है।