शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय महिलाएं करती हैं ये गलती! जानिए क्या है असली नियम

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By Kumari SakshiPublished On: July 19, 2025
शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय महिलाएं करती हैं ये गलती

सावन का महीना आते ही मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ लग जाती है. खासकर सोमवार के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है. महिलाएं भी बढ़-चढ़कर इस व्रत और पूजा में भाग लेती हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं कि शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय की गई एक छोटी-सी गलती भी पूजा को निष्फल कर सकती है?
यहां जानिए वह आम गलतियां जो महिलाएं अक्सर करती हैं, और साथ ही जानिए शिवलिंग पूजन के असली नियम, ताकि महादेव की कृपा संपूर्ण रूप से प्राप्त हो.

महिलाएं करती हैं ये गलतियां
1.शिवलिंग को सीधे हाथ से छूना: कुछ मान्यताओं के अनुसार रजस्वला (पीरियड्स के दौरान) या अपवित्र अवस्था में शिवलिंग को स्पर्श करना वर्जित माना गया है.

2. गलत दिशा में जल अर्पण: जल अर्पण हमेशा ऐसे करें कि जल सीधे “योनि भाग” से होकर बह जाए, अन्यथा पूजा का फल अधूरा रह सकता है.

3. ताम्रपात्र का गलत उपयोग: कुछ महिलाएं जल या दूध चढ़ाने के लिए प्लास्टिक या लोहे के बर्तन का प्रयोग करती हैं, जबकि पूजा में ताम्र या कांसे के पात्र का प्रयोग शुभ माना जाता है.

4. एक ही बर्तन से जल और दूध: शिवलिंग पर पहले जल, फिर दूध, फिर पुनः जल अर्पण करना चाहिए, एक ही बर्तन से सभी सामग्रियां अर्पित करना शास्त्रों में उचित नहीं माना गया है.

5.बेलपत्र का उल्टा उपयोग: महिलाएं अक्सर बेलपत्र को ठीक से नहीं देखतीं। बेलपत्र पर श्री गणेश का निवास होता है, इसलिए हमेशा उसका चिकना भाग ऊपर की ओर और डंठल शिवलिंग की ओर होना चाहिए.

शिवलिंग पूजन के शुद्ध नियम क्या हैं?
प्रात:काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, जल में थोड़ा सा कच्चा दूध, शहद और गंगाजल मिलाकर चढ़ाएं. बेलपत्र, धतूरा, आक के फूल, और सफेद चंदन अर्पित करें. “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग पर जल अर्पण करें. पूजा के बाद जल को छिन्न करने वाला न हो, यानी उसे रोकना नहीं चाहिए. यह नित्यता का प्रतीक है. महिलाओं को विशेष दिनों (रजस्वला अवस्था) में शिवलिंग से दूरी बनाए रखने की सलाह दी जाती है. हालांकि यह परंपरा और व्यक्तिगत आस्था पर आधारित है.

क्या कहता है शास्त्र?
पुराणों के अनुसार, शिवलिंग पर जल चढ़ाने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. लेकिन श्रद्धा और नियमों के पालन के बिना यह क्रिया अधूरी मानी जाती है. विशेष रूप से महिलाओं के लिए यह पूजन उनकी सौभाग्य, संतान सुख और मानसिक शांति के लिए अत्यंत फलदायक होता है.