हर साल सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली हरियाली तीज इस बार और भी खास है. 2025 में हरियाली तीज का पर्व 4 अगस्त, सोमवार को पड़ रहा है, और इस दिन सोमवार का संयोग और सौम्य योग इसे और भी पावन बना रहा है. यह दिन मां पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है, और सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायक माना जाता है.
क्या है हरियाली तीज का महत्व?
हरियाली तीज मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है. वहीं कुंवारी कन्याएं भी यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं. मान्यता है कि इस दिन मां पार्वती ने भगवान शिव को 108 जन्मों तक तप कर मनाया था, और शिव जी ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया.
पूजा का रहस्य: क्यों होती हैं मां पार्वती प्रसन्न?
हरियाली तीज पर व्रती स्त्रियां जब पूरी श्रद्धा, नियम और विधि से पूजन और व्रत करती हैं, तो माना जाता है कि मां पार्वती प्रसन्न होकर उनका सौभाग्य अखंड करती हैं. यह व्रत न केवल सांसारिक सुखों के लिए, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और प्रेम के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है.
व्रत और पूजा की सरल विधि (घर पर):
सवेरे सूर्योदय से पहले उठें, स्नान करके साफ वस्त्र पहनें, घर के पूजा स्थान को सजाएं – हरी पत्तियों, फूलों और बंदनवार से, लकड़ी की चौकी पर मां पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, कलश स्थापित कर उसमें जल, सुपारी, अक्षत और सिक्का रखें, तीज माता को मेंहदी, चूड़ी, सिंदूर, लाल चुनरी अर्पित करें. फल, मिठाई, घेवर, पूड़ी और हलवा का भोग लगाएं. इसके बाद तीज व्रत कथा पढ़ें या सुनें. फिर “ऊँ नम: शिवाय” और “ॐ पार्वत्यै नमः” का जाप करें. दिनभर निराहार व्रत रखें, शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलें, जरूरतमंदों को हरी वस्तुएं, भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दान करें.
क्या न करें हरियाली तीज पर:
. इस दिन गुस्सा, झगड़ा या अपवित्र विचारों से दूर रहें।
. व्रत के दौरान कोई भी तामसिक भोजन या प्याज-लहसुन न खाएं।
. अगर स्वास्थ्य अनुमति न दे तो फलाहार या जल के साथ व्रत कर सकते हैं।
हरियाली तीज 2025 के शुभ योग:
. तृतीया तिथि प्रारंभ: 3 अगस्त, रात 9:18 बजे
. तृतीया तिथि समाप्त: 4 अगस्त, रात 8:44 बजे
. शुभ मुहूर्त (पूजा का समय): 4 अगस्त, सुबह 6:10 बजे से दोपहर 12:25 बजे तक
धार्मिक आस्था- सांस्कृतिक रंग:
हरियाली तीज न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सावन की हरियाली, नाच-गाना, झूले, मेंहदी और श्रृंगार का पर्व भी है. महिलाएं इस दिन पारंपरिक परिधान पहनकर पूजा करती हैं और लोकगीत गाकर वातावरण को भक्तिमय बना देती हैं.