राखी सिर्फ भाइयों के लिए नहीं! जानिए क्या कहता है धर्मशास्त्र पिता को राखी बांधने पर

रक्षा बंधन एक ऐसा पर्व जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती है. चलिए बताते हैं कि धर्मशास्त्र पिता को राखी बांधने पर क्या कहता है

Kumari Sakshi
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रक्षा बंधन — एक ऐसा पर्व जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती है. पर क्या यह पर्व सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित है? अगर बहन का कोई भाई न हो, तो क्या वह अपने पिता को राखी बांध सकती है? इस सवाल का जवाब भावनाओं और धर्म दोनों के दृष्टिकोण से बेहद खास है.

राखी: केवल रस्म नहीं, सुरक्षा और स्नेह की डोर
राखी का मतलब केवल भाई-बहन का त्योहार नहीं है, यह रक्षा, समर्पण, और भरोसे का प्रतीक है. शास्त्रों में रक्षासूत्र बांधने की परंपरा किसी भी ऐसे व्यक्ति को मानी गई है जो आपकी रक्षा करता हो या जिसकी रक्षा के लिए आप प्रार्थना करते हों. इसमें भाई के साथ-साथ गुरु, पिता, पति, राजा और यहां तक कि ईश्वर को भी रक्षासूत्र बांधा जा सकता है.

क्या कहता है धर्म और ज्योतिष?
ज्योतिषाचार्य और वेदाचार्य भी यह स्वीकार करते हैं कि “यदि बहन का कोई भाई न हो, तो वह अपने पिता को राखी बांध सकती है. यह अशुभ नहीं, बल्कि शुभ और पूर्ण श्रद्धा का प्रतीक है.” पिता, जो जीवनभर बेटी की रक्षा करता है, उसका पहला रक्षक होता है. ऐसे में राखी बांधकर बेटी उसकी दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना करती है — यह पूर्णतया धार्मिक और वैदिक रूप से मान्य है.

इतिहास में भी मिलते हैं उदाहरण
द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को राखी बांधी थी, जो भाई नहीं थे लेकिन उसके रक्षक बने, राजपूत रानियों ने भी रक्षासूत्र बांधकर दूसरे राजाओं से अपनी रक्षा की गुहार की थी. आज भी कई घरों में बेटियां अपने पिता या दादाजी को राखी बांधती हैं, जब उन्हें कोई भाई नहीं होता.

भावनाएं हैं असली परंपरा का आधार
कई बार सामाजिक मान्यताएं भावनाओं पर हावी हो जाती हैं, लेकिन रक्षाबंधन जैसे पर्व की सच्ची शक्ति भावना और निष्ठा में होती है. पिता को राखी बांधना न केवल वैदिक रूप से सही है, बल्कि यह एक बेटी के प्यार और सुरक्षा की भावना का प्रतीक भी है.