Supreme court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पंजाब सरकार द्वारा 1158 असिस्टेंट प्रोफेसर और लाइब्रेरियन की की गई नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ये नियुक्तियां विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तय मानदंडों का पालन किए बिना की गई थीं, जो गंभीर अनियमितता है।
अदालत ने पंजाब सरकार को निर्देश दिया कि वह UGC के नियमों और दिशा-निर्देशों के अनुसार एक नई और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया शुरू करे। यह निर्णय उन सैकड़ों अभ्यर्थियों के लिए झटका है जो पिछले साल नियुक्त हुए थे और अब उनकी नियुक्ति शून्य मानी जाएगी।

हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा
इस मामले की जड़ें सितंबर 2024 से जुड़ी हैं, जब पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला देते हुए सिंगल बेंच के उस आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें इन भर्तियों को अमान्य ठहराया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि प्रक्रिया में कुछ कमियां हो सकती हैं लेकिन वे इतनी गंभीर नहीं हैं कि पूरी नियुक्ति को रद्द किया जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि जब राष्ट्रीय शैक्षणिक निकाय (UGC) के मानदंडों की अनदेखी की जाए, तो पूरी प्रक्रिया को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
UGC मानदंडों की अनदेखी पर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह आवश्यक है कि उच्च शिक्षा से संबंधित किसी भी नियुक्ति में UGC द्वारा निर्धारित न्यूनतम योग्यता और चयन प्रक्रिया का पालन किया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी नियुक्तियों से न केवल योग्य अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन होता है, बल्कि यह उच्च शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाता है। UGC के नियमों के अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए नेट (NET) क्वालिफिकेशन, पीएच.डी. की उपयुक्तता, साक्षात्कार प्रक्रिया और मेरिट आधारित चयन आवश्यक होता है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इन बिंदुओं पर कई नियुक्तियों में स्पष्ट चूक की गई थी।
राज्य सरकार को नई प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पंजाब सरकार अब UGC मानकों के अनुरूप भर्ती प्रक्रिया को दोबारा शुरू करे और यह सुनिश्चित करे कि पारदर्शिता और योग्यता आधारित चयन को प्राथमिकता दी जाए। अदालत ने यह भी कहा कि भविष्य में अगर इसी तरह के नियमों की अनदेखी हुई तो इसे गंभीर रूप से लिया जाएगा और कानूनी कार्रवाई के लिए सरकार जिम्मेदार मानी जाएगी। यह निर्देश उन दर्जनों लंबित मामलों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है, जिनमें राज्य सरकारों पर नियुक्ति प्रक्रिया में मनमानी और मानदंडों की अनदेखी के आरोप लगे हैं।
योग्यता की जीत, मनमानी की हार
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला साफ संकेत देता है कि भारत की न्यायपालिका शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और गुणवत्ता को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। पंजाब में 1158 नियुक्तियों की रद्दीकरण से यह संदेश गया है कि नियमों की अनदेखी कर किसी भी प्रकार की भर्तियों को कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा। अब सबकी निगाहें इस पर होंगी कि पंजाब सरकार कब और कैसे नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करती है और क्या इस बार योग्यता और नियमों का सही अनुपालन होगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश देश भर की अन्य राज्य सरकारों के लिए भी सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।