सावन का महीना शिवभक्तों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है. इस दौरान देशभर में लाखों कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख जैसे पवित्र तीर्थों से गंगाजल लाकर अपने नजदीकी शिव मंदिरों में अर्पित करते हैं. इसी पवित्र भावना का सबसे कठिन और तीव्र रूप है — डाक कांवड़ यात्रा, जिसे भगवान शिव को दौड़कर जल अर्पित करने की अनोखी परंपरा माना जाता है.
क्या होती है डाक कांवड़ यात्रा?
डाक कांवड़ एक विशेष प्रकार की तेज गति से पूरी की जाने वाली कांवड़ यात्रा होती है, जिसमें श्रद्धालु गंगाजल लेकर लगातार दौड़ते हुए शिवधाम तक पहुंचते हैं. इस यात्रा में ना रुकना होता है, ना सोना, ना खाना — बस एक ही लक्ष्य होता है:”गंगाजल को अपवित्र होने से पहले शिवलिंग पर चढ़ाना. “यह यात्रा अनन्य श्रद्धा, अनुशासन और तपस्या का प्रतीक मानी जाती है.

डाक कांवड़ की परंपरा
डाक कांवड़ की परंपरा मुख्य रूप से उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, बिहार आदि) में प्रचलित है, इसका नाम “डाक” इसलिए पड़ा क्योंकि जैसे डाक सेवा में रुकावट नहीं होती, उसी प्रकार इस यात्रा में भी जल बिना रुके, relay सिस्टम में दौड़ते हुए शिवधाम तक पहुँचाया जाता है. यह परंपरा बताती है कि अगर श्रद्धा सच्ची हो, तो दूरी और थकान बाधा नहीं बनते.
डाक कांवड़ यात्रा के मुख्य नियम
1. कांवड़िए लगातार दौड़ते हैं- इसमें गंगाजल लाने वाला हर व्यक्ति दौड़ते हुए चलता है, कोई वाहन, जूता, या विश्राम की अनुमति नहीं होती,
2. गंगाजल नहीं रखना जमीन पर- गंगाजल से भरी कांवड़ को कभी ज़मीन पर नहीं रखा जाता, विशेष स्टैंड या साथी कांवड़िए के हाथों से पकड़कर ही विश्राम किया जा सकता है.
3. कांवड़ को कोई और नहीं छू सकता- यदि कोई अपवित्र या असावधान व्यक्ति कांवड़ को छू ले, तो यात्रा अपवित्र हो जाती है.
4. पूरे शरीर और मन से शुद्ध रहना होता है- कांवड़िए मांस, मदिरा, बुरे विचार, अपशब्द, और अन्य अपवित्र कार्यों से दूर रहते हैं।
5. डाक कांवड़ में रिले सिस्टम- कई बार यात्रा लंबी होती है, तो एक समूह बनाकर रिले (Relay) की तरह जल को पास करते हुए दौड़ लगाते हैं.