रविवारीय गपशप

Mohit
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आनंद शर्मा आईएएस
प्रशासनिक सेवाओं  के साथ स्वास्थ्य सेवाओं का बड़ा गहरा जुड़ाव होता है | शायद ही कोई अभियान ऐसा होता है ,  जिसमें प्रशासन की भागीदारी ना हो | पिछले दिनों कोरोना की महामारी के दौरान भी डाक्टरों के साथ प्रशासनिक सेवा के अफ़सरों की प्रभावी भागीदारी रही है | इन सभी कारणों से प्रशासनिक सेवा के लोगों की डॉक्टरों से मित्रता होना बड़ा स्वाभाविक है |
मेरी पहली पदस्थापना राजनांदगाँव ज़िले की डोंगरगढ़ तहसील में एस डी एम के पद पर थी | हमारे बी एम ओ ( खंड स्वास्थ्य अधिकारी ) थे डॉक्टर श्रीवास्तव , जो मेरे मित्र और बड़े खुशमिज़ाज इन्सान थे | एक दिन की बात है , जब हम परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए ग्रामीण क्षेत्र में जाने के लिए रवाना हो रहे थे , तो मैंने देखा उनकी आँखें कुछ नींद भरी सी थीं | मैंने पूछा क्या बात है डाक साब , रात में नींद नहीं आयी क्या ? डाक्टर साहब बोले “अरे कुछ नहीं साहब क्या बताएं , कल रात को सांसद महोदय का फोन आ गया कि उनके पालतू डॉग की तबियत ख़राब है , इसलिए रात को वहीं देर हो गयी |” मैंने कहा अरे पर आप तो आदमियों के डॉक्टर हो ? डाक्टर साहब बोले मैंने भी यही कहा तो जबाब मिला बोले ; अरे एनाटोमी तो एक जैसी ही है , देख लो यार |
डोंगरगढ़ के बाद मेरी बदली ज़िले के ही दूसरे अनुविभाग खैरागढ़ में हो गयी जो अपने संगीत विश्वविद्यालय के लिये प्रसिद्ध है | खैरागढ़ ब्लॉक के बी एम ओ थे श्री चांदवानी जिनकी पत्नी उसी अस्पताल में स्त्रीरोग विशेषज्ञ थी और उनका इलाक़े में बड़ा नाम भी था | एक दिन जब किसी मीटिंग के बाद डाक्टर चाँदवानी के साथ बैठे हम चाय पी रहे थे तो फ़ुरसत के क्षणों में मैंने पूछा , “ये बताओ कि आपकी प्रेक्टिस ज्यादा चलती है या मैडम की “? डॉक्टर साहब ने लम्बी साँस भरी जैसे कोई दुखती रग छेड़ दी हो | बोले क्या बतायें साहब यहाँ परिवार नियोजन और टीकाकरण के टारगेट पूरा करने के चक्कर में ही समय निकल जाता है , कहाँ की प्रेक्टिस  | डाक्टर चाँदवानी आगे बोले “कल ही की बात है , रात दस बजे घर की घंटी बजी , मैंने सोचा इतनी रात कौन हो सकता है ? जाकर दरवाजा खोला तो देखा दो तीन लोग खड़े थे , साथ में कोई महिला भी थी | मैंने पूछा क्या काम है ? तो वे बोले कुछ नहीं डाक्टर साहब को दिखाना है , मैंने कहा अच्छा अंदर आ जाओ | वे अंदर आये तो मैंने कहा हाँ बताओ क्या बात है ? साथ आये बुजुर्ग ने कहा कि हमें मैडम को दिखाना है  , मैंने कहा हाँ हाँ भाई पर मैं भी डॉक्टर ही हूँ बताओ तो सही मेरे लायक भी कुछ हो सकता है | बुजुर्ग बोले आप तो बस पानी पिला दो तबियत तो हम मैडम को ही दिखाएंगे | अब आप ही सोचो हमारी तो हैसियत घर में पानी पिलाने की रह गयी है |
उज्जैन में डॉक्टर रावत हैं , गजब के दरिया दिल , और मेडिसन के जानेमाने डॉक्टर | उज्जैन और आसपास के न जाने कितने मरीज सुबह से आकर उनके घर के सामने बैठ जाते थे | तब उनके क्लिनिक के पास ही मेरा सरकारी आवास था | डॉक्टर साहब जितने उदार थे , उतनी ही उनकी डॉक्टर धर्मपत्नी कड़क और दुनियादारी वाली | लोग कहते थे कि कभी कोई गरीब आदमी आता और उसके पास फीस के पैसे नहीं होते तो डॉक्टर साहब उसे मुफ्त देखते , घर में सेम्पल की रखी दवाई भी दे देते और यदि उन्हें लगता कि उसे स्त्रीरोग विशेषज्ञ की भी जरूरत है तो उसे जेब से पैसे निकाल कर देते और कहते मैंने तो नहीं लिए पर मेरी बीबी नहीं छोड़ेगी तो उसे फीस दे देना | एक बार मैंने उनसे पूछा डाक्टर साहब आप ऐसा क्यूँ करते हो ? तो वे बोले , अरे क्या फ़रक पड़ता है , पैसे तो घर में ही लौट के आने हैं |
चलते चलते कुछ झोलाछाप डाक्टरों का तजुर्बा भी सुना देता हूँ | हुआ यूँ कि मेरे गृह नगर कटनी में बचपन के मित्र रविंद्र मसुरहा के पैर के अंगूठे में ठोकर से चोट लग गई , उसने सोचा ज्यादा कुछ ख़ास तकलीफ तो है नहीं , तो जहाँ वे रहते हैं वहीं के बंगाली डॉक्टर से ही ड्रेसिंग करा ली जाए | हमारे गली मोहल्लों में ऐसे कई “क्वेक” डॉक्टर मौजूद रहते हैं , तो ऐसे ही मोटा चश्मा लगाने वाले एक बंगाली डाक्टर पुरानी बस्ती में भी मौजूद थे | रविन्द्र उसके क्लिनिक में पहुंचे और बोले ” यार डॉक्टर पट्टी कर दो” डॉक्टर ने उन्हें बैठाया और घाव पर मरहम लगा के पट्टी बांधी , फिर बैलबॉटम ( उस समय फैशन में चलने वाला पेंट जिसके पांयचे बड़े बड़े होते थे ) के पाँयचे को पकड़ा और जब तक रविन्द्र कुछ कह पाए कोने को पकड़ के कैंची से काट दिया | रविन्द्र जोरों से चिल्लाया “ये क्या कर दिया तुमने”? उसने बड़ी मासूमियत से कहा “चलने में फंसेगा नहीं न” | दरअसल बंगाली डॉक्टर मोटे चश्मे से ये देख नहीं पाया कि बाँधी गयी पट्टी का सिरा काट रहा है या पतलून का पांयचा ।