अर्जुन राठौर
इंदौर के श्रम विभाग को काम चोरी और निकम्मे पन का रोग लग गया है विभाग के अधिकारी इंस्पेक्टर तथा अन्य कर्मचारियों के पास कोई काम नहीं है और सरकार इन्हें भारी-भरकम तनखा दे रही है जो कि जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से दी जाती है ।
श्रम विभाग की हालत इतनी बदतर हो गई है की अगर इस विभाग को सरकार समाप्त भी कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि श्रम विभाग द्वारा फैक्ट्रियों और कारखानों के नियमित निरीक्षण का कार्य बंद कर दिया गया है और ऐसा कहा जाता है कि इस बारे में भोपाल सचिवालय से आदेश प्राप्त हुए थे की फैक्ट्रियों तथा कारखानों का निरीक्षण नियमित रूप से नहीं किया जाए निरीक्षण तभी किया जाए जब श्रमिकों की ओर से शिकायत प्राप्त हो ।
इस आदेश का लाभ उठाकर अब श्रम विभाग के इंस्पेक्टर तथा अधिकारी ऑफिस में आकर दिन भर आराम फरमाते हैं अब सवाल इस बात का भी है कि किसी भी फैक्ट्री में से जब शिकायत आएगी वह भी श्रमिकों की तभी इंस्पेक्टर निरीक्षण करने के लिए जाएगा लेकिन फैक्ट्रियों तथा कारखानों में काम करने वाले लोग जिन्हें न्यूनतम मजदूरी तथा बोनस की सुविधाएं नहीं मिल रही है वे अगर शिकायत करें तो मालिक तो उन्हें नौकरी से निकाल ही देगा ऐसी स्थिति में श्रम विभाग के पास श्रमिकों की ओर से शिकायतें भी नहीं आ रही है यानी सरकार ने फैक्टरी मालिकों को भी इस बात की छूट दे दी है कि वे चाहे जितना शोषण मजदूरों का करें उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी क्योंकि जब शिकायत होगी नहीं तो कार्रवाई कैसे करेंगे ।
जब भोपाल से यह आदेश दे दिए गए हैं कि बगैर शिकायत के निरीक्षण नहीं किया जाए शिकायत आएगी ही नहीं तो फिर श्रम विभाग को बनाए रखने की जरूरत ही क्या है और इस पर व्यर्थ में लाखों रुपए वेतन के रूप में क्यों खर्च किए जा रहे हैं।