ये मानवता है… जमाखोरी नहीं मि लॉर्ड

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@राजेश ज्वेल

दिल्ली हाईकोर्ट ने कोरोना की दवाइयों-सिलेंडर के मामले में मरीजों के परिजनों की मदद करने वालों को जमाखोर बताया है… जबकि पिछले दिनों देशभर के लोगों ने अपने-अपने स्तर पर मरीजों की मदद की है… दिल्ली अकेला उदाहरण नहीं है… इंदौर से लेकर देश भर में सोशल मीडिया के माध्यम से बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन, प्लाज्मा से लेकर हर तरह की मदद जनता, नेता या अन्य संगठनों ने की है… जब सरकार फेल हो गई तो मरीजों के परिजनों ने सोशल मीडिया के माध्यम से गुहार लगाना शुरू की और जानी-मानी हस्तियों ने भी ट्वीट कर ये मदद अपने परिजनों-मित्रों या अन्य लोगों के लिए मांगी…

दिल्ली पुलिस ने पिछले दिनों कुछ राजनेताओं को इस मामले में क्लीनचिट दी , जिसके बाद हायकोर्ट ने फटकार लगाते हुए नोटिस जारी कर दिए..जबकि होना तो ये था कि इस तरह की जनहित याचिका लगाने वालों के खिलाफ कोर्ट लाखों का जुर्माना ठोकता और सजा भी देता.. यहां तो मदद करने वालों को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है… कोर्ट के यह निर्देश भी समझ से परे हैं कि दवाइयों को जमा करने का काम नेताओं का नहीं है और जमा करने की बजाय इन्हें सरकारी अस्पताल में बांटने के लिए सौंप दिया जाए…

याद कीजिए, गत वर्ष जब देशव्यापी कर्फ्यू-लॉकडाउन लगा था, तब लाखों भूखे-प्यासे मजदूरों की मदद ऐसे लोगों ने ही मानवता के नाते की थी… सोनू सूद जैसे देश भर में कई लोग हैं, जो भीषण आपत की इस घड़ी में देवदूत बनकर सामने आए… दरअसल निजी व्यक्ति या संस्थाएं जुगाड़ के जरिए मदद की सामग्री हासिल कर लेती है… जबकि सरकार टेंडर से लेकर अन्य कागजी कार्रवाई में उलझी रहती है…

अगर किसी ने सिलेंडर, इंजेक्शन या दवाइयां जमाखोरी के लिए एकत्रित की है और उसे ज्यादा कीमत पर बेचा तो अवश्य कार्रवाई होना चाहिए, लेकिन अगर नि:शुल्क सिलेंडर, दवाई या अन्य मदद पहुंचाई गई तो उसे दंडित करने की बजाय पुरस्कृत किया जाना चाहिए… सुप्रीम कोर्ट को तुरंत ही इस पर संज्ञान लेना चाहिए अन्यथा कल से आपदा की इस खड़ी में कोई किसी की मदद नहीं करेगा…!