कोरोना के कारण नहीं दिखेगी 50 वर्ष पुरानी मीठी ईद पर कौमी एकता की पारंपरिक झलक

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इंदौर: कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के चलते इस बार मीठी ईद पर रिजर्व फोर्स 50 वर्ष पुरानी कौमी एकता परंपरा को निभा नहीं पाएगा। अतः इस ईद पर शहर काजी डॉ. इशरत अली वर्षों बाद शायद ही बग्गी में बैठकर अपने निवास स्थान राजमोहल्ला से सदर बाजार ईदगाह पर नमाज अता करने जाए।

यह जानकारी देते हुए रिजर्व फोर्स के संयोजक सत्यनारायण सलवाडिया ने बताया कि मेरे पिता स्व. रामचंद्र सलवाडिया ने 50 वर्ष पूर्व ईद पर कौमी एकता परंपरा की शुरुआत की थी जिसके तहत मीठी ईद पर शहर काजी को उनके निवास स्थान से बग्गी में बैठाकर सदर बाजार ईदगाह तक ले जाते थे ,उसके बाद ही नमाज अता होती थी।

उस वक्त शहर काजी डॉ.याकूब अली थे। इसी परंपरा को अब मैं निभा रहा हूं और डॉ.इशरत अली को बग्गी में बैठाकर सदर बाजार ईदगाह तक ले जाता हूं लेकिन, इस बार कोरोना काल में यह परंपरा टूटती नजर आ रही है क्योंकि हॉटस्पॉट बन चुके इंदौर में शहर काजी को बग्गी में बैठा कर ईदगाह सदर बाजार तक ले जाना संभव नहीं है।

सलवाडिया ने आगे बताया कि पिछले वर्ष हुई ईद पर मैं शहर काजी को बग्गी में बैठा कर ईदगाह तक लेकर गया था उस वक्त रिजर्व फॉर से जुड़े नारायण सिंह यादव, प्रेम स्वरूप खंडेलवाल, सुरेश रावरिया ,प्रहलाद शर्मा, हीरालाल सलवाडिया आदि शामिल थे ।इस बार यह परंपरा टूटना संभव है।

50 वर्षों में शहर में कभी सांप्रदायिक तनाव भी रहा एवं अन्य घटनाएं भी घटी लेकिन कौमी एकता परंपरा कभी भी नहीं टूटी किन्तु इस बार लॉकडाउन में बग्गी का निकलना प्रतिबंधित होने के कारण यह परंपरा टूटना संभव है ।इस बार मैं ईद पर शहर काजी डॉ.इशरत अली और उनके परिजनों को मीठी ईद की मुबारकबाद अवश्य दूंगा लेकिन उन्हें बग्गी में बैठाकर सदर बाजार ईदगाह तक लाना संभव नहीं होगा।