भोपाल में मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का नीलम जयंती शब्द उत्सव मनाया गया। इसमें देश के अनेक राज्यों के साहित्यकारों ,कथाकारों, कवियों, उपन्यासकारों , बुद्धिजीवियों, कलाकारों, पत्रकारों ,संपादकों और समाज के अनेक वर्गों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। चार दिन तक चले इस साहित्यिक जैसे में भारत के प्रतिनिधि सरोकारों और उनकी साहित्य में मौजूदगी पर विचारोत्तेजक मंथन हुआ।
इस आयोजन में जिन सशक्त हस्ताक्षरों ने हिस्सा लिया ,उनमें जाने माने कवि पद्मश्री राजेश जोशी,कृषि विषयों के मशहूर लेखक पद्मश्री बाबूलाल दहिया , संस्कृत के उदभट विद्वान डॉक्टर राधावल्लभ त्रिपाठी, कथाकार और चिंतक शशांक ,जाने माने प्रसारक राजीव शुक्ल ,शीर्षस्थ कथाकार – लेखक हरीश पाठक ,कवि और पत्रकार डॉक्टर सुधीर सक्सेना ,वरिष्ठ पत्रकार – लेखक और बायोपिक निर्माता – निर्देशक राजेश बादल , वरिष्ठ संपादक जे पी दीवान ,प्रखर गांधीवादी पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक ,कवि -पत्रकार विष्णु नागर , कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल ,लमही के संपादक विजय राय , जाने माने शायर और दुष्यंत कुमार के बेटे आलोक त्यागी प्रगतिशील लेखक संघ के बहादुर सिंह परमार , कवियत्री नीलेश रघुवंशी,लोकप्रिय व्यंग्य लेखक रामस्वरूप दीक्षित तथा अन्य अनेक शब्द सितारों ने हिस्सा लिया। वर्षों बाद देश में इस तरह का शब्द उत्सव हुआ। इस अदबी जमावड़े के सूत्रधार मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के पलाश सुरजन ,महेश कटारे तथा अभिषेक वर्मा थे।
इस आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल की पुस्तक मिस्टर मीडिया का लोकार्पण भी हुआ। यह पुस्तक भारतीय पत्रकारिता के तमाम अवतारों की मौजूदा भूमिका का समीक्षात्मक अध्ययन है । क़रीब तीन दशक तक एशिया के सबसे बड़े प्रकाशन संस्थान नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक रहे पंकज चतुर्वेदी इसके सूत्रधार हैं। पंकज ने सेवानिवृत होने के बाद अपना प्रकाशन संस्थान प्रवासी प्रेम पब्लिकेशंस प्रारंभ किया है।
मिस्टर मीडिया इसी संस्थान की प्रस्तुति है और भारतीय हिंदी पत्रकारिता के एक महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह को समर्पित है ।यह किताब भारतीय उप महाद्वीप में पत्रकारिता समीक्षा पर केंद्रित सबसे लंबी अवधि तक चलने वाले स्तंभ के लेखों का संकलन है। इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ व्यूज़ डॉट कॉम पर मिस्टर मीडिया स्तंभ जारी है और इसके प्रत्येक आलेख को लाखों लोग पढ़ते हैं।लोकार्पण समारोह में डॉक्टर सुधीर सक्सेना और डॉक्टर राकेश पाठक ने अपने विचार व्यक्त किए।
ग़लतियों पर प्रहार
डॉक्टर सुधीर सक्सेना ने अपने संबोधन में कहा कि मिस्टर मीडिया पत्रकारिता के वर्तमान कालखंड का दस्तावेज़ है और प्रिंट,रेडियो,टेलिविज़न तथा डिज़िटल पत्रकारिता की कमज़ोरियों और ग़लतियों पर प्रहार करती है। यह शब्दों के उपयोग ,भाषा का संस्कार और पत्रकारिता की अनेक उप विधाओं की शास्त्रीय जानकारी भी देती है। इसे पत्रकारिता और प्रबुद्ध समाज के प्रत्येक सदस्य को पढ़ना चाहिए। डॉक्टर राकेश पाठक ने कहा कि मिस्टर मीडिया हमें पत्रकारिता के प्रामाणिक आचार व्यवहार से परिचित कराती है। साथ ही हालिया दौर में पत्रकारिता में मूल्यों की गिरावट देखने को मिली है। यह उसके सियासी गठजोड़ और उससे उत्पन्न गोदी मीडिया की शर्मनाक भूमिका के कारण हुई है। इसकी भर्त्सना की जानी चाहिए।
पुस्तक के लेखक राजेश बादल ने बताया कि अभिव्यक्ति की संवैधानिक आज़ादी मिस्टर मीडिया के सारे स्तंभों का केंद्र बिंदु रही है ।इसलिए यह प्रयास किया गया कि जहाँ भी पत्रकारिता की गाड़ी पटरी से उतरती दिखाई दे,वहाँ कलम की चाबुक चलाई जाए । जहां भी केंद्र या राज्य सरकारों ने स्वतंत्र पत्रकारिता को छेड़ने का साहस किया,वह मेरी कलम के दायरे में आया । कई बार इसके सकारात्मक परिणाम भी मिले ।सुखद यह है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनेक बार पटरी से उतरती पत्रकारिता को चेताया ,जिन पर मैं पहले ही आग़ाह कर चुका था।
सियासत ने बाँट दिया
मिस्टर मीडिया पत्रकारिता की आज़ादी पर सत्ता प्रतिष्ठान के आक्रमण पर ही यह किताब क़रारा प्रहार नहीं करती , बल्कि पत्रकारिता में अभिव्यक्ति के नाम पर हो रहे दुरूपयोग को भी रोकने का प्रयास करती है। बीते दस वर्षों में भारतीय पत्रकारिता को सत्ताधीशों ने दो हिस्सों में बाँट दिया है। एक तो वह वर्ग है ,जो उसकी ख़ुशामद करता है। इसे आजकल गोदी मीडिया भी कहने लगे हैं।
पत्रकारिता में अब यह कलंकित और अभिशप्त शब्द मान लिया गया है। दूसरा वर्ग है ,जो इस गोदी मीडिया को आड़े हाथों लेता है। याने यह वर्ग केंद्र सरकार और इसके दूसरे इंजन वाली सरकारों पर हमला बोलता है। विडंबना है कि ऐसे में संतुलित और निष्पक्ष मीडिया का तीसरा वर्ग कहीं विलुप्त हो गया है। उसके लिए कोई संभावना नहीं बची है। वह या तो सरकार के पाले में खड़ा हो जाए अथवा दूसरे विरोधी खेमे में।
बताने की ज़रुरत नहीं कि इन स्थितियों में संतुलित और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वालों ने दूसरे पाले में जाना उचित समझा है। महान संपादक राजेंद्र माथुर यही मानते थे कि सौ फ़ीसदी निष्पक्षता कुछ नहीं होती। यदि किसी संपादक अथवा पत्रकार के सामने यह धर्म संकट आ जाए तो उसे बेझिझक अवाम के साथ खड़ा हो जाना चाहिए। यही सच्ची पत्रकारिता है। इस किताब में गोदी मीडिया के चरित्र पर प्रहार किया गया है।
प्रसंग के तौर पर बता दूँ कि इस पुस्तक का आखिऱी लेख पत्रकार दयाशंकर मिश्र की एक पुस्तक पर केंद्रित है। यह पुस्तक राहुल गांधी पर केंद्रित है।मैनेजमेंट ने इस पर दयाशंकर मिश्र से उनकी नौकरी छीन ली। जिस पोर्टल पर मिस्टर मीडिया कॉलम लिखा जा रहा था ,वह इसे प्रकाशित करने का साहस नहीं दिखा सका और मैंने स्तंभ ही बंद कर दिया।अब यह स्तंभ एक अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ पोर्टल -न्यूज़ व्यूज़ डॉट कॉम पर चल रहा है। हर सप्ताह लाखों लोग इसे पढ़ते हैं। एशिया में पत्रकारिता की समीक्षा करने वाला यह सबसे अधिक समय तक चलने वाला स्तंभ है।
इस किताब में चुनिंदा 160 आलेख हैं। पत्रकारिता के छात्रों,जन संचार प्राध्यापकों,मीडिया शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने वाले विश्वविद्यालयों ,अख़बारों, टीवी चैनलों ,रेडियो स्टेशनों, सरकारी प्रचार माध्यमों, जनसंपर्क विभागों में काम करने वाले लोगों के लिए यकीनन यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी और शोधपरक साबित होगी।
इस शताब्दी के पत्रकारिता के महानायकों से जुड़े संस्मरण भी इसमें आपको पढ़ने के लिए मिल सकते हैं। इनमें महात्मा गांधी,बनारसी दास चतुर्वेदी, राजेंद्र माथुर,सुरेंद्र प्रताप सिंह,प्रभाष जोशी और विनोद दुआ से लेकर नौजवान पत्रकार संजय शर्मा (फोर पी एम) तक के बारे में आप पढ़ सकते हैं।इसके अलावा समाज के बौद्धिक और कलम के महारथियों के लिए भी शायद यह उपयोगी होगी। किताब रियायती मूल्य पर अमेज़ॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।