लोकसभा चुनाव के नतीजों पर कैसा रहा विदेशी मीडिया का रिएक्शन, आइयें जानें…

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Lok Sabha Election Result 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे कल घोषित हो चुके है। ऐसे में देशभर के मीडियाकर्मियों का जबरदस्त रिएक्शन देखने को मिला। साथ ही कल के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर कुछ विदेशी मीडिया का भी रिएक्शन काफी दिलचस्प नजर आया, तो आइयें बताते है विदेशी मीडिया का क्या रिएक्शन रहा – इस पर गौर कीजिए…

पाकिस्तान का अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने अनेक लेख प्रकाशित किए है। तीन अहम थीम है इन आर्टिकल्स में-

पहली- लेख इस बात पर हर्ष प्रकट करते है कि मोदी का विजय रथ थमा नहीं किंतु मद्धम पड़ गया।

दूसरी- लेख इस बात पर भी ख़ुशी दिखाते है कि बीस करोड़ की माइनॉरिटी “मोमिन” अब शायद ख़ौफ़ के साये से निकल पाये- चैन से जी पाएँ।

तीसरी और सबसे इंट्रेस्टिंग- एक पूरा लेख कंगना राणावत पर है कि किस प्रकार सेक्युलर बॉलीवुड की एक राइट विंग अभिनेत्री धर्मांध पार्टी की विजेता नेत्री के रूप में उभरी है।

अमेरिका के अख़बार के अनुसार

न्यू यॉर्क टाइम्स लिखता है कि मोदी का आभा मण्डल मद्धम पड़ा है,चूँकि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है उन्हें ऐसे दलों के समर्थन की आवश्यकता है जो मोदी की हार्ड कोर हिंदुत्व राजनीति का समर्थन नहीं करते है।

वाशिंगटन टाइम्स के अनुसार

इस चुनाव के नतीजे मोदी की आशायो के विपरीत है, मोदी पर तुषारापात करने वाले है – चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण मोदी के आगामी प्लान्स को सेटबैक मिला है।

सीएनएन के अनुसार

मोदी ने पूर्ण बहुमत ना मिलने पर भी तीसरी बार सत्ता हासिल की है। चार सौ सीट का दावा करने वाले मोदी को इस नतीजे से गहरा धक्का पहुँचा है।ऑस्ट्रेलियन मीडिया ने भी लगभग इसी प्रकार से कवरेज दी है।

इन सब विदेशी मीडिया ने भारत चुनाव को फ्रंट पेज पर – मेन साईट पर स्थान दिया है।मोटा मोटा ये कहा जा सकता है विदेशी मीडिया मान कर चल रहा है कि मोदी मैजिक ग़ायब हुआ है, तीसरी बार सत्ता मिली ज़रूर है किंतु गठबंधन के कारण।

सबसे मज़ेदार बात- सब के सब ये मीडिया हाउस मोदी को एक कट्टर धर्मांध हिंदूवादी नेता लिख रहे है- वो इमेज दशकों से बनी हुई है। किंतु भारत में राइट विंग के अनेक धड़े इस से विपरीत धारा में बह रहे है कि राइट विंग के मोदी जी भी सेक्युलर बन चुके है। इसी कारण कभी कभी मोदी जी चक्की के दो पाटों के बीच पिसते प्रतीत होते है।

जो भी हो- आगामी पाँच वर्ष शायद कड़क फ़ैसले मसलन ३७० या नोटबंदी जैसे ना देखें किंतु “विकास” और “सबका साथ” निर्विरोध चलने की आशा है।