Self Healing Highways : टूटी-फूटी सड़कें और गड्ढे खुद-ब-खुद ठीक हो रहे हैं! यह सपना अब भारत में जल्द ही हकीकत बनने वाला है। नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने एक अभिनव पहल शुरू की है, जिसके तहत सड़कों के निर्माण में ऐसे मटेरियल का इस्तेमाल किया जाएगा जो गड्ढों को अपने आप भर देगा।
यह क्रांतिकारी तकनीक न केवल सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने में मदद करेगी, बल्कि बारिश के मौसम में जलभराव और जाम की समस्या से भी निजात दिलाएगी।
यह कैसे काम करता है?
स्व-मरम्मत वाली सड़कों के लिए, “एसफाल्ट ब्लेंड” नामक एक विशेष मिश्रण का उपयोग किया जाएगा। यह मिश्रण स्टील फाइबर और बिटुमेन से बना होता है। जब भी सड़क पर गड्ढा बनता है, तो बिटुमेन उस क्षेत्र में फैलकर उसे भर देता है, और स्टील फाइबर मजबूती प्रदान करते हैं।
यह तकनीक भारत के विशाल सड़क नेटवर्क के लिए वरदान साबित होगी, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां बारिश और भारी वाहनों के कारण सड़कें जल्दी खराब हो जाती हैं, यह तकनीक अत्यंत उपयोगी होगी।
यह तकनीक कैसे काम करती है?
यह डामर विशेष प्रकार के रसायनों और खनिजों से बना होता है जो दरारें और गड्ढों को भरने में सक्षम होते हैं। जब भी सड़क की सतह में कोई दरार या गड्ढा बनता है, तो वायु और पानी इन रसायनों को सक्रिय कर देते हैं। ये रसायन फिर एक चिपचिपा पदार्थ बनाते हैं जो क्षतिग्रस्त हिस्से को भर देता है।
इस तकनीक के क्या फायदे हैं?
कम खर्च: स्व-मरम्मत करने वाले डामर का उपयोग करने से सड़कों के रखरखाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।
दीर्घकालिक: यह डामर सामान्य डामर की तुलना में अधिक टिकाऊ होता है, जिसका अर्थ है कि सड़कों को बार-बार मरम्मत की आवश्यकता नहीं होगी।
सुरक्षित: बेहतर सड़कें दुर्घटनाओं के खतरे को कम करेंगी।
सुगम यातायात: चिकनी सड़कें यातायात को गति प्रदान करेंगी और ईंधन की खपत को कम करेंगी।
यह तकनीक किन देशों में इस्तेमाल हो रही है?
नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में इस तकनीक का परीक्षण किया जा रहा है। भारत भी इस तकनीक को अपनाने में आगे आ रहा है और इसके लिए अनुसंधान भी कर रहा है।
यह क्रांतिकारी तकनीक सड़कों के भविष्य को बदलने की क्षमता रखती है। यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में सड़कों को अधिक सुरक्षित, टिकाऊ और किफायती बनाने में मदद कर सकती है।