धर्मेंद्र पैगवार
भोपाल: दोस्तों सोमवार की सुबह 6: 00 बजे से 60 घंटे का लॉक डाउन खत्म हो जाएगा। इसका मतलब यह नहीं है कि को रो ना खत्म हो गया है। भोपाल के अस्पताल फुल है एक बात बिल्कुल साफ की शहर के विश्राम घाट और कब्रिस्तान में भी जगह नहीं है। आप अगले 10 से 15 दिन यदि घर में रहेंगे तो भूखे नहीं मर जाएंगे। हालात बेहद खराब हैं। रविवार 11 अप्रैल को ही भोपाल में 78 लोगों की जान इसी बीमारी से हुई है। हो सकता है आपका सामाजिक दायरा छोटा हो य आप इस सब को मजाक समझते हो लेकिन जिन लोगों ने इस बीमारी का दुख भुगता है उन परिवारों से सबक लें। सरकार की मजबूरी है कि वह लॉकडाउन लगा नहीं सकती। राजस्व से लेकर जनता के स्वास्थ्य जरूरतों के लिए भी सरकार को पैसा जुटाना है।
आप सरकार पर सवाल उठा सकते हैं भला बुरा कह सकते हैं लेकिन यह बात भी ध्यान में रखना है कि सरकार ने हर दिन और हर मिनट आपको बार-बार चेताया है कि कोरो ना खत्म नहीं हुआ है आपको मास्क लगाना है और हाथ धोना है। लेकिन आपने खुद ही लापरवाही की है जिसका परिणाम भी भुगता है। कई परिवार खत्म हो गए हैं यह परिवार में कमाने वाले चले गए हैं। कारण आपने इस गंभीर बीमारी को कुतर्कों के जरिए मजाक समझा है। इस देश की समस्या जहालत है। अस्पतालों में जो लोग मर रहे हैं इसका मुख्य कारण यह है कि वे समय रहते अस्पताल नहीं पहुंचे य वक्त पर उन्होंने अपना टेस्ट नहीं कराया। नतीजा संक्रमण फेफड़ों तक फैला और जान चली गई।
मैं आपका शुभचिंतक हूं चाहता हूं कि आप और आपका परिवार सुखी रहे सब सलामत रहे इसलिए हाथ जोड़कर विनती है गुजारिश है दरख्वास्त है और रिक्वेस्ट है। जिंदा रहोगे तो सब कुछ कमा लोगे और यदि मर गए तो आपके परिवार का क्या होगा यह आप जानते हैं। मेरे कई व्यापारी मित्र दुकानें बंद होने पर सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव है जबकि हकीकत यह है कि सबसे ज्यादा संक्रमित और मरने वाले भी व्यापारी ही है। पिछले साल लगभग 90 दिन लॉकडाउन लगा था इस देश में लोग भले ही एक्सीडेंट से मर गए लेकिन भूख से एक भी मौत नहीं हुई थी। इसलिए थोड़ा दिन सब्र कर लीजिए घर पर रहिए बच्चों की फिक्र कीजिए शहर की भी और समाज की भी।
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए सबके दाता राम।।