राजवाड़ा 2 रेसीडेंसी

Author Picture
By Mohit DevkarPublished On: April 5, 2021
rajwada to residency

अरविंद तिवारी


बात यहां से शुरू करते हैं

बीजेपी के सबसे अनुभवी मुख्यमंत्री शिवराजसिंह की राजनीति का अब एकमात्र मंत्र और एकमेव सूत्र है; ‘संघ को साधना’! मुख्यमंत्री के रूप में अपनी चौथी पारी में शिवराजसिंह चौहान एकदम नये तरह के राजनेता के रूप में दिख रहे हैं। पश्चिम बंगाल और केरल में उनकी सक्रियता और रणनीति से भी इसके संकेत मिल रहे हैं। दोनों राज्यों में शिवराज की जुगलबंदी बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व से ज्यादा संघ के जिम्मेदारों के साथ रही है। शिवराज ने पिछले दिनों संघ के नंबर के ‘नम्बर-टू’ दत्तात्रेय होसबोले और कृष्णगोपाल से एक से अधिक बार रणनीतिक मंथन किया। वे भलीभांति जानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर अब पार्टी का स्ट्रक्चर बदल गया है। ये पार्टी में अटलजी, आडवाणी जी का युग नहीं है।

अब आगे देखते, समझते रहिये…

सुहास भगत तो अभी आसाम में है लेकिन मध्य प्रदेश के भाजपा राजनीति में इन दिनों प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर की जुगल जोड़ी की बड़ी चर्चा है। पत्रकार से मीडिया प्रभारी की भूमिका में आए पाराशर पर शर्मा बहुत भरोसा करते हैं और ऐसा कहा जा रहा है कि टीम वीडी में भी उनका बहुत दबदबा है। वे इन दिनों प्रदेशाध्यक्ष के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका में हैं और जरूरत पड़ने पर बिना लाग लपेट के बहुत बेबाकी से सार्वजनिक तौर पर अपनी बात कहने से परहेज नहीं करते है। शर्मा के हर दौरे में भी उन्हें साथ देखा जा सकता है। इस जुगल जोड़ी ने माखन सिंह और गोविंद मालू की युति की‌ याद ताजा कर दी है।‌

ऐसी क्षमता, जीवटताऔर जज्बा शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता में ही हो सकता है। कहने को लंबे चौड़ी कैबिनेट और मंत्री के रूप में दिग्गज नेताओं की कतार है लेकिन लग रहा है कि मध्य प्रदेश शिवराज कोरोना से लड़ाई अपनी‌ टीम के बलबूते पर लड़ रहे हैं। दफ्तर और मैदान दोनों ही शिवराज ने संभाल रखा है। तीन दिग्गज मंत्रियों नरोत्तम मिश्रा गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह मे से मिश्रा बंगाल में किला लड़ा रहे हैं तो भार्गव और सिंह दमोह में । प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच मुख्यमंत्री बंगाल भी जा रहे हैं,आसाम भी हो आए और केरल में भी चुनावी सभाएं ले ली। सुरत जाकर दांडी यात्रा में भी शामिल हो लिए। दमोह का चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है ही।

पहली बार विधायक बने कॉग्रेस नेताओं को कमलनाथ आगे बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे है। इसके पीछे उनका मकसद क्या है यह तो वही बता सकते हैं। लेकिन जिस तरह से वे रवि जोशी, निलय डागा, विनय सक्सेना, नीलांशु चतुर्वेदी, संजय शुक्ला, विशाल पटेल, हर्ष विजय गहलोत, संजय यादव, महेश परमार को बार-बार मौका दे रहे हैं उससे यह साफ है कि सज्जन वर्मा, एनपी प्रजापति, बृजेंद्र सिंह राठौर और डॉक्टर विजय लक्ष्मी साधौ के बाद कांग्रेस में नेतृत्व की तीसरी पीढ़ी अब दमदारी से मैदान संभालने लगी है और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए कमलनाथ भी इस पर पूरा भरोसा कर रहे हैं।

भाजपा के पुरोधा कृष्ण मुरारी मोघे को लग रहा है कि जब खरगोन में उन्हें लोकसभा का उपचुनाव हराने वाले अरुण यादव खंडवा जाकर सांसद बन सकते हैं तो फिर वह खंडवा से लोकसभा का उपचुनाव लड़ एक बार फिर संसद में क्यों नहीं पहुंच सकते। संभागीय व प्रदेश संगठन महामंत्री रहते हुए मोघे ने निमाड़ में जो नेटवर्क बनाया था उसका फायदा उन्हें खरगोन में मिला था। यही फायदा अबे खंडवा में लेना चाहते हैं जिसके 2 विधानसभा क्षेत्र बड़वाह और भीकनगांव मैं तो आज भी उनकी अच्छी खासी पकड़ है। मगर यह सब इतना आसान नहीं लग रहा है क्योंकि मोघे का नाम सामने आते ही अर्चना चिटनीस के सुरों में कुछ तल्खी आ गई है। यानी एक नया बखेड़ा…।

आखिर वह क्या कारण है कि एक जमाने के बेहद पावरफुल और दबंग आईएएस अफसर मनोज श्रीवास्तव सितारे इन दिनों गर्दिश में है। रेरा का चेयरमैन वे बन नहीं पाए। कमर्शियल टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल में उनका जाना संभव नहीं दिखता और सुशासन संस्थान के मामले में भी उनके साथ ही कुछ और नामों पर विचार शुरू हो गया हैं। दर्शन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस दोनों श्रीवास्तव से बहुत नाराज हैं और इसके पीछे सीधा-सीधा कारण है सेवानिवृत्ति के कुछ समय पहले के उनके कुछ विवादास्पद निर्णय। चाहे वह केंद्रीय भंडार के माध्यम से 285 करोड़ रुपए काम मिड डे मील ऑर्डर मामला हो, पंचायतों में ऑडिट का मुद्दा हो या फिर कंप्य…