नितिनमोहन शर्मा। चैत्र नवरात्रि की अष्टमी पर्व पर इंदौर की सुनहरी भोर स्याह होते होते बच गई। मामला एक तीन सितारा होटल में लगी आग का हैं। आग भयावह थी लेकिन भगवती जगदम्बा की कृपा रही 35 जिंदगियां आग में झुलसने से बाल बाल बच गई। इसमे ज्यादातर महिला बच्चे थे। आग शहर की एक तीन सितारा होटल में लगी। तीन सितारों का तमगे वाली होटल में आपदा प्रबंधन के हाल ये थे कि न तो फायर अलार्म बजा न मौके पर आग से बचने के कोई बंदोबस्त थे। होटल में रुके लोग बिस्तर पर बिछी चादरो को आपस में बांधकर जैसे तैसे नीचे उतरे। अगर वक्त रहते स्थानीय लोग ओर फायर ब्रिगेड नही पहुंचती तो इन्दौर सुबह सुबह एक बड़े और दुःखद हादसे का गवाह बन जाता।
आग की ये घटना राउ से थोड़ा आगे होटल पपाया में घटी। महू थाना क्षेत्र में हुई आग की इस घटना ने “स्मार्ट सिटी” के आपदा प्रबंधन की पोल एक बार फिर उधेड़कर रख दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सपनो के शहर में एक बार फिर अकस्मात होने वाले हादसे से निपटने के बंदोबस्तों की कमी फिर साफ नजर आई। एक बार फिर स्थानीय लोग देवदूत बनकर सामने आए। फायर ब्रिगेड ने करीब पौन घण्टे में आग पर काबू पा लिया।आग लगने के कारणों का फिलहाल पता नही चला है और न ये पता चल पाया है कि इस होटल में आग से बचाव के क्या प्रबंध थे?
“हाइराइज” भवनों और शहर को “होरिजेंटल” विस्तार देने की गाहे बगाहे बात कहने वाले शहर में ऊपरी मंजिल में लगी आग से बचने के लिए “जुगाड़ की चादर” ही काम आई। अन्यथा बड़ी अनहोनी तय थी। मौके पर अगर फायरब्रिगेड और स्थानीय रहवासी पसीना नही बहाते तो होटल वाले ने तो कोई कसर नही छोड़ी थी अहिल्या नगरी की नवरात्र की भोर को काला करने की।
3 सितारा दर्जा प्राप्त इस होटल के पास आग से बचाव के बंदोबस्त जिम्मेदारो ने कैसे जांचे, इसका सबूत आज हादसे में बाहर आ गया। आगजनी के समय सबसे अहम फायर अलार्म ही नही बजा। लोग होटल के कमरों के अंदर थे। सुबह का वक्त था। सोए हुए थे। अगर् अलार्म बजता तो समय रहते लोग जान बचाने में जुटते। वे तो सोए ही थे।
वह तो ग़नीमत रही कि होटल के स्टाफ और बाहर से गुजरने वालो को धुंआ नजर आ गया। होटल के कर्मचारियों ने अपने स्तर पर आग बुझाने का प्रयास किया लेकिन तब तक देर हो चली थी। होटल की तीन मंजिलों में धुंआ तेजी से भरने लगा। सर्वविदित है कि ऐसे हादसे में लोग आगजनी से पहले धुंए से दम घुटने से काल कवलित हो जाते थे। आज भी ये ही कहानी दोहरा जाती अगर बिस्तरों पर बिछी चादर की रस्सी बनाकर निचे उतरने की जुगाड़ और फायर ब्रिगेड की क्रेन समय पर नही पहुँचती।
कोचिंग क्लॉस में हुए हादसे से भी सबक नही लिया
होटल पपाया में हुई आगजनी और जान बचाने के लिए तीसरी चौथी मंजिल से बिस्तर पर बिछाने वाली चादर के सहारे लटकी जिंदगियों ने एक बार फिर बीते साल हुए हादसे की याद दिला दी। याद है न भंवरकुआं इलाके का वो कोचिंग क्लास जो देखते ही देखते लाक्षागृह में तब्दील हो गया था। कोचिंग में पड़ रही मासूम बच्चियों, युवतियों ने तब भी ऐसे ही जान बचाने के प्रयास में जान से हाथ धो दिया था। कई ने तो कोचिंग सेंटर से छलांग तक लगा दी थी। तब जिम्मेदारो ने बड़ी बड़ी बातें कही थी। आज के हादसे ने साबित कर दिया कि तंत्र की बड़ी बड़ी बातें जुबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नही है।
ख़ुलासा फर्स्ट ने 10 दिन पहले ही जिम्मेदारो को चेताया था
शंकर बाग क्षेत्र में सितंबर में दो मासूम बह गए थे। मुंह सामने बहते बच्चो को सब बेबसी से देखते रहे पर बचा नही पाये। क्योकि नगर निगम के अमले के पास एक मजबूत रस्सा भी नही था। दो दिन बाद दोनों मासूमो की कीचड़ में धंसी देह मिली। तब ख़ुलासा फर्स्ट ने शहर के जिम्मेदारो को आगाह किया था कि इंदौर को मेट्रो बाद में देना, पहले जान बचाने का एक रस्सा खरीद लो। किसी ने कोई सबक नही लिया। अभी हाल ही में 18 मार्च शुक्रवार को फिर हादसा हो गया। मच्छी बाजार में नाला टेपिंग का काम करते एक मजदूर की मौत मिट्टी धंसने से हो गई। मौके पर फिर वही बेबसी थी। मजदूर की जान बचाने का कोई संसाधन मौके पर नही था। जो पोकलेन और जेसीबी काम कर रही थी, उसके चालक मौके से भाग खड़े हुए। मौके पर मौजूद लोगों हतप्रभ रह गए कि ये केसी स्मार्ट सिटी?इंदोरियो ने अपने पुरुषार्थ और परिश्रम से मजदूर को बाहर निकाला लेकिन तब तक उसकी सांसे दम तोड़ चुकी थी। ऐसा ही हादसा करीब दो ढाई महीने भी हुआ था। तब भी काम करते दो मजदूर मिट्टी धंसने से काल कवलित हो गए थे। संभावित घटना दुर्घटना को लेकर चौकन्नापन नदारद क्यो है? वो भी लगातार होती घटनाओं के बावजूद। जिम्मेदार इससे कोई सबक क्यो नही लेते?