नितिनमोहन शर्मा
गेले गांव में ऊँट आया…!!
ये कहावत तो बहुत सुनी होगी न? गांव गेला था। यानी अल्पबुद्धि। पागल भी बोल सकते हैं। उसमे ऊँट आ गया। एक अलग तरह का जीव। ऊंची कुबड़ ओर लम्बी गर्दन वाले इस जींव को देखने गांव उमड़ गया। वो था तो ऊंट ही। बरसो से धरती पर है। लेकिन गेले गांव में आ गया। पहली बार। जहाँ कभी ऊँट देखा नही गया था। गेले तो थे ही लोग, ‘बावले’ भी हो गए। चल पड़े ऊंट को देखने। झुंड के झुंड। तब से गेले गांव में ऊंट की कहावत चल पड़ी।
आप तो स्मार्ट सिटी के ‘स्मार्ट बंदे’ हो न? और इंदौरी हो तो जमानेभर के ‘चतरे’ भी। फिर क्यो अभी महीने डेढ़ महीने से हर छुट्टी वाले दिन लजवा रहे हो? क्या ‘बाप जमाने’ मे कभी मॉल नही देखा? या ये नया ‘तायफा’ महीने दो महीने में उड़कर चला जायेगा? तो फिर क्यो स्मार्ट सिटी को ‘गेला गांव’ बनाने पर तुले हो?
पड़े लिखे हो न? महंगी गाड़ियों के मालिक भी हो। थोड़ी बहुत समझ शहर की भी रखते होंगे न, कि दिनभर, सात पुश्तों के बंदोबस्त में ही लगे रहते हो? सप्ताह के 6 दिन आने वाली पीढ़ियों की चिंता में रहते हो 7 वे दिन शहर को ‘राँदने’ निकलते हो। बाल बच्चे भरकर गाड़ियों का मुंह बायपास पर कर रहे हो। कभी उस बेचारे ‘ग़ुलावट’ और उसके आसपास के गांवों के हलाकान कर देते हो जिसे दो साल पहले कोई जानता ही नही था।
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ये केसी भेड़ चाल? घर मे खटिया के अते पते नहीं। खाट किसे कहते है ये नई पीढ़ी को पता नही। लेकिन किसी ने 40 किलोमीटर दूर चार खाट डालकर भट्टी सुलगा दी तो चले भेड़ चाल जैसे चारपाई पर खाने पीने। कभी ‘उज्जैनी’ में भी ऐसे उमड़े थे तो कभी जाम गेट पर जाम लगा देते हो। अब फॉनिक्स पर टूट पड़े। और ये ‘गेलापन’ सब सामान्य लोग नही प्रदर्शित कर रहे। बल्कि पड़े लिखें समझदार लोग।
ये केसी भेड़चाल? पड़े लिखे समझदारों की ही तो कतारें लग रही है न बायपास पर? बोगदो में कौन फंसा हुआ है? नगर सेवा, सिटी वेन, ऑटो रिक्शा? या दो पहिया वाहन।नही न। सब कारे ही कारे है। लक्ज़री। महंगी। वैसे ही उसमे सवार लोग। महंगे। लेकिन सोच कितनी सस्ती? ये जानते हुए भी की सामान्य दिनों में ही बायपास पर आना जाना मुश्किल भरा है तो फिर छुट्टी वाले दिन वहां के हाल क्या होगा? परिवार को गाड़ी में लादने और गियर डालने से पहले इसका क्षणिक विचार किया?
नही न। क्योकि रसूखदार हो। सिस्टम को कोसेंगे। ट्रेफ़िक पुलिस के मत्थे दोष मड़ेंगे। अखबारों में छपेंगे। बायपास वाले जो हो। अन्यथा शहर में तो दिन में कई कई मर्तबा जाम लगता है और आम आदमी आये दिन हलाकान होता है। पर हल्ला मचता है? बायपास पर जाम का हल्ला मचता है। क्योंकि वहां आप फंसे हो। ‘सो कॉल्ड सुपर कूल ड्यूड’..!! पड़े लिखे। लैपटॉप वाले। दुनियाभर की खबर रखने वाले। दुनिया को मुट्ठी में सिमटने वाले। शहर की खबर नही रखते हो?
तो सुनो। जिस जाम का जिम्मेदार आप ट्रैफ़िक पुलिस को मान रहे हो न… वो शहर में है कितनी? पता है? मात्र 469…!! इसमे से भी 85 से तो नियमित किसी ऑफिशियल काम मे तैनात रहते है। बचे अमले से आप इन्दौर के साथ साथ बायपास का ट्रेफ़िक भी चाकचौबंद करने की उम्मीद पालते हो। ट्रैफ़िक महकमे को 850 जवान की जरूरत है। लेकिन मौजूदा बल 381 का ही है। शहर में 177 चोराहे है। जवान यहां तैनात करें कि आपके मॉल देखने के शोक के लिए बायपास पर? 26 लाख वाहनों का रेला और उस पर अमला ऊंट के मुंह में जीरे का मानिंद है।
देश के अन्य हिस्सों में जिसने भी सन्डे का वो वीडियो देखा होगा, वो हंस रहा होगा कि इंदौर वालो ने कभी मॉल ही नही देखा? कहा तो आप स्वयम को मुंबई का बच्चा कहते हो। मेडिकल, एजुकेशन, आईटी हब कहते हो ओर कहा बोगदे में आधा घण्टे से इसलिए फंसे हुए हो कि मॉल देखना है। शर्म कीजिये कुछ। आपके शहर में दुनिया के 50-60 देशों से लोग आ रहे है। बड़े बड़े उद्योगपति, इंडस्ट्रीयल। मॉल कोई भागे नही जा रहा जो आप जान की परवाह भी नहीं कर रहे।
बेतहाशा गति से भागते दौड़ते भारवाहको से आबाद बायपास को आप बाल बच्चो संग क्रॉस कर रहे हो। मॉल वाले का क्या जाएगा? उसका धंधा तो बदस्तूर जारी रहेगा लेकिन इस आपाधापी में किसी दिन कोई बड़ी घटना हो गई तो आपके पास सिवाय पछताने के कुछ नही बचेगा। अफ़सोस के साथ जीवनभर शर्म भी रहेगी….कि मॉल देखने गए थे…मर गए। जीवनभर लोग भी ये ही कहैंगे कि क्या कभी मॉल नही देखा जो जान जोखिम में डाल दी??