दिनेश निगम ‘त्यागी’ । शिवराज सिंह चौहान सफल मुख्यमंत्री हैं, इसमें किसी को संदेह नहीं। वे जानते हैं कि कब क्या तत्काल करना है और क्या करने में विलंब। उनका कार्यकाल गवाह है कि सरकार बनने के बाद मंत्रिमंडल के गठन एवं राजनीतिक नियुक्तियों की जल्दबाजी में वे कभी नहीं रहे। इसे वे हर संभव टालने की कोशिश करते हैं। वे जानते हैं कि मंत्रिमंडल में जितने लोगों को शामिल कर खुश किया जाएगा, उससे ज्यादा असंतुष्ट होंगे। यही सोच वे निगम-मंडलों सहित अन्य संस्थाओं में राजनीतिक नियुक्तियों के बारे में रखते हैं। इसीलिए पहले वे मंत्रिमंडल विस्तार एवं राजनीतिक नियुक्तयों को टालने की कोशिश करते हैं। ज्यादा दबाव बनने पर करना पड़ा तो कुछ पद खाली रखते हैं, ताकि असंतुष्टों को उम्मीद बंधी रहे कि उन्हें मौका मिल सकता है। इस बार भी शिवराज इसी मूड में हैं। उप चुनाव के तत्काल बाद मंत्रिमंडल विस्तार की उम्मीद की जा रही थी लेकिन उन्होंने कह दिया कि मंत्रिमंडल विस्तार की उन्हें कोई जल्दी नहीं। जबकि दावेदार जल्दी मंत्री बनने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। शिवराज को मालूम है कि वे इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। ऐसी रणनीति के कारण ही शिवराज लगातार सफल हैं।
0 कांग्रेस की कलह से ‘नाथ’ को अभयदान….
– बिहार विधानसभा एवं मप्र सहित कुछ राज्यों के उप चुनावों में हार के बाद कांग्रेस आलाकमान इसकी समीक्षा करता, हार की जवाबदारी तय कर संगठन में फेरबदल किया जाता, इससे पहले ही पार्टी में उच्च स्तर पर कलह शुरू हो गई। इससे कमलनाथ जैसे उन नेताओं को पदों पर बने रहने का अभयदान मिल गया, जो हार के लिए जिम्मेदार हैं। कांग्रेस की कार्यशैली पर सबसे पहले वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया। फिर इसमें चिदंबरम एवं गुलाम नबी आजाद जैसे नेता कूद गए। मल्लिकार्जुन खडगे, अधीर रंजन चौधरी, सलमान खुर्शीद सहित कई अन्य नेताओं ने जवाबी मोर्चा संभाला। किसी ने सवाल उठाने वालों को पार्टी छोड़ने की सलाह दी तो किसी ने अलग पार्टी बनाने तक का सुझाव दे डाला। कलह का नतीजा यह हुआ कि सोनियां गांधी तीन समितियां गठित कर राहुल एवं प्रियंका के साथ दिल्ली छोड़कर अन्य जगह चली गर्इं। लिहाजा, हाल के चुनाव में हार की समीक्षा का मुद्दा पीछे चला गया। उप चुनाव में हार के बाद कमलनाथ के एक पद छोड़ने की चर्चा चल पड़ी थी। इसका फायदा उन्हें भी मिला। उन्हें और कुछ समय तक पदों पर बने रहने का अवसर मिल गया।
0 ‘दल’ के साथ ‘दिल’ बदलने की कोशिश….
– ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाल के भोपाल दौरे ने साबित कर दिया कि ‘महाराज’ जहां रहते और पहुंचते हैं, उनका ही जलवा दिखता है। वे ऐसे पहले राजनेता दिखाई पड़े जो ‘दल’ के साथ ‘दिल’ बदलने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। भाजपा में आने से पहले तक वे कट्टर कांग्रेसी रहे हैं। भाजपा, संघ पर कोई हमला करने से वे नहीं चूकते थे, पर जैसे ही दल बदला, वे तत्काल नागपुर संघ मुख्यालय हो आए। भोपाल आए तो अपने समर्थक मंत्रियों के साथ संघ कार्यालय समिधा पहुंच गए। अर्थात सिंधिया पूरी तरह से संघी और भाजपाई बनने की मुहिम में जुट गए हैं। उन्हें जानने वालों का कहना है कि ‘महाराज’ ने अपने व्यवहार में भी बदलाव किया है। अब उन्होंने नाराज होना बंद कर दिया है। अंदरखाने भले वे अपने समर्थक मंत्रियों व पूर्व विधायकों के पुनर्वास की कोशिश कर रहे हों लेकिन सार्वजनिक तौर पर यही कहते सुनाई पड़े कि मंत्रिमंडल विस्तार एवं हारे मंत्रियों के पुनर्वास के बारे में निर्णय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं भाजपा नेतृत्व ही लेगा। अलबत्ता, उप चुनाव में पराजित उनके कुछ समर्थकों ने जरूर बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिया हैं। इस पर उन्हें काबू पाना होगा।
0 ‘चूक’ सुधारी फिर भी घिर गए ‘गोविंद’….
– राजनीति में छोटी सी ‘चूक’ पर विरोधियों की कैसी नजर रहती है, यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के भोपाल दौरे के दौरान देखने को मिल गया। एक ‘चूक’ की वजह से सिंधिया के खास सिपहसलार गोविंद राजपूत कांग्रेस के निशाने पर आ गए। गोविंद ने सिंधिया के स्वागत में एयरपोर्ट से लेकर भाजपा कार्यालय तक लगभग एक हजार छोटे-बड़े बैनर लगवाए थे। ‘चूक’ यह हो गई कि एक बैनर में सिंधिया, वीडी शर्मा एवं गोविंद राजपूत का फोटो दिख रहा था लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नहीं। कांग्रेस ने तत्काल इसे लपका, बैनर का फोटो लिया और सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाते हुए टिप्पणी की, देखिए अभी से सिंधिया समर्थकों ने मुख्यमंत्री की उपेक्षा शुरू कर दी। इनकी नजर में सिंधिया के सामने शिवराज कहीं नहीं लगते। हालांकि शेष सभी बैनरों में शिवराज सिंह के फोटो भी थे। पर ‘चूक’ तो ‘चूक’ है। सूचना मिलते ही गोविंद ने यह बैनर बदलवाने में देर नहीं की। पर तब तक बैनर का यह फोटो वायरल किया जा चुका था। इसीलिए राजनीति में ‘चूक’ न करने के लिए सतत चौकन्ना रहता पड़ता है।
0 ‘घूरे’ की तरह फिर गए ‘हॉल’ के दिन …
– गावं की पुरानी कहावत है कि ‘घूरे के भी दिन फिरते हैं’। यह प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव द्वारा अपने बंगले में बनवाए एक ‘हॉल’ पर फिट बैठती है। भार्गव जब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तब भोपाल स्थित अपने सरकारी बंगले में विधायक दल की बैठकों के लिए एक ‘हॉल’ का निर्माण कराया था। ‘हॉल’ में दो ही बैठकें हुर्इं और गोपाल भार्गव का नेता प्रतिपक्ष पद चला गया। क्योंकि कांग्रेस की सरकार चली गई और भाजपा फिर सत्तासीन हो गई। इसके बाद ‘हॉल’ का कोई उपयोग नहीं रह गया। समय देखिए कैसे दिन फिरते हैं। भाजपा सरकार बनी और संयोग से भार्गव पीडब्ल्यूडी मंत्री बन गए। सभी सरकारी बंगले और आवास इस विभाग के ही आधीन आते हैं। फिर क्या था, हॉल की किस्मत चमकी और वह कॉरपोरेट आॅफिस में तब्दील हो गया। भार्गव ने उसे अपने और स्टॉफ के काम के लिए कार्यालय में तब्दील कर दिया। इससे भार्गव को सहूलित हो गई। उनके स्टॉफ को बेहतरीन आॅफिस मिल गया और भार्गव से मिलने आने वाले लोगों को भी अच्छी जगह मिल गई। हॉल के भाग्य देखिए उसमें भार्गव जैसे बड़े नेता लगभग हर रोज बैठने लगे।