अलविदा सुरेश गंगवाल, ‘मैं बदलकर लिबास आता हूँ, जिंदगी इंतज़ार करो मेरा’- नरेन्द्र वेद नकुल पाटोदी

Author Picture
By Pirulal KumbhkaarPublished On: March 4, 2022

आगाह अपनी मौत से कोई बशर नही।
सामान सौ बरस का और पल की ख़बर नहीं।

यह शेर शायद शायर ने सुरेश गंगवाल बाबू साहब(Suresh Gangwal, Babusaheb) के लिए ही लिखा हो, शिवरात्रि की संध्या को अपने अंदाज में जन्मदिन मनाया, फ़ोन पर बधाई देने वालों को हड़काया, अपनी भाषा में कहा बधाई देना हो तो ज़रा घर आऔ, पूरे आनंद से रात्री को विश्राम में गए, सुबह बातों बादशाह, बेबाक़, अपनी बात को दबंगता से कहने वाले बाबू साहब ने देह परिवर्तन भी अपने अंदाज में करा और कह दिया-

मैं बदलकर लिबास आता हूँ।
जिंदगी इंतज़ार करो मेरा।

बाबू साहब इस इंदौर शहर की सेठों के जमाने से लेकर राजनीतिक , व्यापारिक , पत्रकारिता, प्रशासनिक, शहर की पुरानी भौगोलिक व समाज की जानकारी के इनसाइक्लोपीडिया थें। हर विषय पर बेबाक बोलते थे और रूकने का नाम नहीं लेते थे। वे ऐसे शख़्स थे जो अपने जमाने के सभी राजनीतिक दलों पर सीधे पकड़ रखते थे, कितना ही बड़ा नेता हों अपने अंदाज में हड़का देते थे। श्री स्पोटर्स क्लब के माध्यम से खेलों से भी जुड़ें रहे।

must read: Vastu Tips : घर की इन दिशाओं में कभी नहीं लगाएं ये पेड़-पौधे, हमेशा पैसों की रहती है तंगी

कुल मिलाकर बाबू साहब बिरले व्यक्तित्व के धनी थे और शहर का एकमात्र परिवार जो खानदानी बाबूसाहब कहलाता है। बाबू साहब के पिताश्री राजकुमार जी भी बाबूसाहब के नाम से शोहरत थी, बाबू साहब ने क़ायम रखी, अब उनके बेटे भी छोटे बाबू साहब व बड़े बाबूसाहब से ही जाने जाते है, शायद पोते भी जाने जाए। ये पारिवारिक श्री है।

बाबूसाहब मेरे पिता दादा रतन पाटोदी के अभिन्न मित्र थे, जब दोनों बैठ जाते थे गप्पों का सिलसिला जम जाता था।
बाबूसाहब का यू अचानक चला जाना, बेहद दुखद है, परम पिता परमेश्वर अपने श्री चरणों में जगह दे।

नरेन्द्र वेद
नकुल पाटोदी