जब भी भेडों का झुंड देखाता हूँ, मुझे कबीर साहब याद आ जाते हैं

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शशिकांत गुप्ते

संत कबीर भेडों को वैकुंठ (स्वर्ग) जाने योग्य नहीं समझते थे।भेडों का मुंडन बार बार होता है।भेडों का मुंडन,बालक के जन्म के बाद का प्रथम मुंडन, या उपनयन संस्कार के लिए होने वाले मुंडन जैसा नहीं होता।
भेड़ो का मुंडन उनके किसी परिवारजन की मृत्यु के पश्चात होने वाला मुंडन भी नहीं होता।भेडों का मुंडन कमर्शियल करणो से होता है।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है,भेडों को इस बात का कतई अंदाज नहीं है कि,उनका मुंडन बार बार क्यों हो रहा है।भेडों का एक ही काम है,गड़रिये की आज्ञा में रहना।इसे कुछ बुद्धिजीवी लोग आज्ञा का पालन नहीं कहते हैं,बल्कि अनुशाशन के नाम पर तानाशाही कहते हैं।जो भी हो सड़क पर जब भेडों का झुंड चल रहा होता है,तब गड़रिया सिर्फ हुर्रर की आवाज लगाता है,सारी भेड़ें एक साथ एक ओर साइड में हो जाती हैं।
यह भेडों के अनुशासन और स्वामी भक्ति का प्रत्यक्ष प्रामण है।
जब भी मैं भेडों को देखता हूँ,मैं इस बात के लिए आश्वश्त हो जाता हूँ कि, मैं जिस देश रह रहा हूँ,वह विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।
मैने भेडों की चाल पर कभी गौर नहीं किया,लेकिन मैं भेंड़ चाल वाली कहावत से अनिभिज्ञ भी नही हूँ।भेंड़ चाल का मैने इसलिए उल्लेख किया है कि,गड़रिये द्वारा हुर्रर हुर्रर करने पर सारी भेड़ें आज्ञा का पालन करती है।भेडों के समूह में नर और मादा,दोने होते हैं,तब यह प्रश्न उपस्थित होता है?भेडों के समूह को स्त्री लिंगी संबोधित क्यों करते है?
भेडों के समूह को स्त्री लिंगी संबोधित किया जाता है, ठीक इसी तरह आम जनता को भी स्त्री लिंगी संबोधित किया जाता है।
इसीलिए भेड़ चाल वाली
कहावत पर गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
महाराष्ट्र में एक भगवान है, भेड़ की बली से ही प्रसन्न होते है।भेड़ को मराठी में बोलाई कहते है।पूना शहर में लगभग सभी होटलों के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है “येथे खास बोलाई चे मटन मिळेल”।
अर्थात यहाँ खास भेड़ का ही मटन मिलेगा।भेड़ का दूध इंसान की हड्डी टूटने पर मालिश के काम आता है।
भेडों की ऐसी अनेक उपयोगिताएं हैं।इस तरह समझदार लोग भेडों कोअपने स्वार्थ के लिए यूज़ कर लेते हैं।
मुख्य मुद्दा है,भेडों के समूह को स्त्री लिंगी संबोधित किया जाता है।