नवरात्री के लिए वास्तु में सुधार

Share on:

तुषार खंडेलवाल

वास्तु विज्ञान जीवन जीने की वो कला है , जिसे यदि व्यक्ति उचित प्रकार से अपना ले , तो परिवार के सदस्य स्वस्थ, प्रसन्न और ऊर्जावान रहते है ।  स्वस्थ्य मन ही जीवन मे आनंद का अनुभव कर सकता है , तो जब हम इसमे सुधार की बात करे तो सबसे पहले वास्तु विज्ञान को थोड़ा समझना जरूरी है ।  वास्तु विज्ञान के दो भाग है ।

प्रथम भाग जो आंतरिक भाग अर्थात मानव शरीर को अंदर से कैसे ऊर्जावान रखने  के बारे मे विस्तार से बताता है । इसमे हमारी दिनचर्या कैसी हो ताकि हमारे पांचों तत्व आकाश, वायु , अग्नि , जल एवं पृथ्वी तत्व के साथ ही 7 प्रमुख चक्र भी बैलन्स मे रहे । साथ ही हम जिस प्रकार का गुण या कहे कार्य करते है, उसमे किस तरह का भोजन, गंध, ध्वनि, स्पर्श होना चाहिए ताकि वो गुण हममे विकसित हो सके, ये बतलाता है ।

दूसरा भाग बाहरी वास्तु अर्थात हमारा शरीर जहा अपना ज्यादातर समय  बिताता है जैसे घर, दुकान, ऑफिस आदि किस प्रकार वास्तु अनुसार बने जिससे भवन मे बनी इनकी ऊर्जा जिसका सीधा असर शरीर पर होता है , हमे स्वस्थ रखे। कहने का तात्पर्य यह है की वास्तु विज्ञान के दोनों भाग मनुष्य के स्वस्थ रहने के लिए ही है । क्यूंकी जहा हम रहते है वहा पाँच तत्वों , दस दिशाओ और वास्तु पुरुष के 45 देवता की शक्तियों द्वारा एक ऊर्जा क्षेत्र बन जाता है,  अब यदि यह भवन वास्तु अनुरूप है तो जब आप वहा रहेंगे तो ये आपको पाज़िटिव एनर्जी देगा और यदि वास्तु दोष युक्त जगह है तो ये आपकी ऊर्जा को आपसे खिचेगा। क्यूंकी एनर्जी पाज़िटिव से नेगटिव की और जाती है । हमारा विषय है की नवरात्रि से वास्तु कैसे सुधारे तो

Read More : UP Board Paper Leak : यूपी के कई जिलों में लीक हुआ English का पेपर, Exam निरस्त

चैत्र की नवरात्रि जिसका प्रारंभ का उत्सव –

प्रकृती भी पेड़ पोधों मे नई कोपलों के आने के साथ मनाती है ।  नवरात्रि जो शरीर मे शक्ति बड़ाने का विशेष समय है , जिसमे हम सुबह 5 कोमल नीम की पत्तियों को खाने से लेकर दिनभर खान पान मे विशेष ध्यान रखकर , ध्यान – साधना करके अपने शरीर को अंदर से शक्तिशाली बनाते है । शरीर मे शक्ति हो तो क्या फायदा है , ये कोरोना काल मे सबको समझ आया है।

वैसे तो वास्तु शास्त्र मे फाउंडेशन डिपाज़ट या कहे गर्भ विन्यास विधानम नामक अध्याय जो बताता है की आपके भवन की नीव से प्रारंभ कर, कुर्सी हाइट मे और फिर विभिन्न कमरों मे उनकी ऐक्टिविटी और गुण के अनुसार किस प्रकार की कौन सी ऊर्जा जो 7 प्रकार की सर्व औषधि , 8 प्रकार के खनिज , संबंधित इत्र , पारा , स्वर्ण, चांदी , इत्यादि द्वारा भवन मे बड़ाई जाए या आज की भाषा  मे कहे तो जिस प्रकार की ऊर्जा चाहिए , उसका वाईफाई राउटर संबंधित जगह पर लगा दे  , ताकि सही आवश्यक ऊर्जा से कनेक्टिविटी बनी रहे ।

Read More : Ashwagandha Benefits : महिलाओं की इन समस्याओं को दूर करता है अश्वगंधा, जानें गजब के फायदे    

आज का विषय नवरात्रि है तो कुछ विशेष बाते उसी से संबंधित 

माँ दुर्गा की मूर्ति की स्थापना: 

चैत्र नवरात्रि का पर्व  ईश्वर के शक्ति स्वरूप की आराधना का पर्व माना जाता है. इन दिनों माँ दुर्गा को शक्ति का अवतार मानते हुए नवरात्रि में इनकी आराधना करनी चाहिए. माता दुर्गा की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार से करनी चाहिए जिससे प्रतिमा का मुख दक्षिण या पश्चिम की ओर होना चाहिए. साथ ही घट-कलश की स्थापना भी यदि करनी है तो उसके लिए लकड़ी के साफ पट्टे पर स्वास्तिक का निशान बना कर मूर्ति के साथ रखा जा सकता है।

साथ ही यह भी ध्यान रखें कि जिस कमरे में देवी-स्थापना करनी है, उसका रंग हल्का पीला होना चाहिए या पीला बल्ब लगा दीजिए .  नवरात्रि का पहला दिन मा शैल पुत्री का होता है , जिनकी साधना से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है । यह चक्र पृथ्वी तत्व से संबंधित है , जिसका संबंध मनुष्य की हड्डी आदि से है । साथ ही धन कमाने मे इस चक्र का विशेष योगदान है । इसी प्रकार से हर देवी की आराधना से चक्रों को जाग्रत कर हम पाँच शरीरों ( स्थूल , ऊर्जा , मन , ज्ञान  और आनंद मय शरीर ) मे से ऊर्जा शरीर की शक्ति बड़ा सकते है । ये ऊर्जा शरीर , स्थूल शरीर से ज्यादा शक्तिशाली होता है।

अखंड ज्योत की दिशा:     

अधिकतर माता के उपासक पूरे नवरात्रि माँ की अखंड ज्योत जलाने की प्रक्रिया को भी पूरा करते हैं. इस समय ध्यान रखें कि ज्योत को रखने की दिशा पूजन कक्ष के दक्षिण-पूर्व मे होनी चाहिए. पूजन मे जल से भरा कलश पूजा स्थान के उत्तर पूर्व मे रखना चाहिए । पूजा के पश्चात यह जल पूरे घर मे छिड़कने से पूजा की शक्ति जल द्वारा घर मे सब जगह पहुच जाती है । प्रतिदिन दोनों समय पूजा करते समय धूप-बत्ती ( अगरबत्ती ना जलाए ) और घी की ज्योत ( पूर्व या उत्तर की और ) को जलाना भी जरूरी है।

अगर नवरात्रि की पूजा करते समय चन्दन का इस्तेमाल किया जाये , तब इससे साधक की पूजा अधिक लाभकारी हो सकती है. पूजा मे तांबे और पीतल के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए . साथ ही यदि कोई साधक चांदी के बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहता है तब वह भी अच्छा रहता है. पूजा की विधि के अलावा ये भी विशेष ध्यान दे. दुर्गा माता का पूजन करने से पहले मूर्ति स्थापना स्थल और घर के दरवाजे और चौखट पर लाल स्वास्तिक का शुभ-निशान बुरी ताकतों को दूर रखने में सहायक होता है।

पूजा के संपन्न होने पर प्रतिदिन दोनों समय शंख और घंटा बजाने से ध्वनि शुद्ध  होकर आसपास के वातावरण को पाज़िटिव करती हैं. इन सब उपायों को करके देवी दुर्गा की आराधना निश्चय ही सफल हो सकती है. इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें कि पूजा के बाद कोई भी सामग्री और फूल आदि को इधर-उधर फेंककर उसकी अवमानना न की जाये ।    माता पूजन  उचित तरीके से करने से शरीर और घर दोनों के वास्तु मे शक्ति का संचार होता है ।