Uttarakhand : जोशीमठ के बाद अब इन इलाकों में भी जमीन धंसने का खतरा

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उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला सुर्खियों में बना हुआ और इसने एक बार फिर से मानवीय गतिविधियों के पहाड़ों पर भयावह असर को उजागर कर दिया है। हालांकि, जोशीमठ एकमात्र ऐसा इलाका नहीं है जो इंसानी लालच के दुष्प्रभाव झेल रहा रहा है और उत्तराखंड के अन्य कई इलाकों पर भी इसी तरह का खतरा मंडरा रहा है। आइए उत्तराखंड के ऐसे बड़े इलाकों के बारे में जानते हैं, जहां जमीन धंसने का खतरा है।

नैनीताल

पर्यटकों के बीच मशहूर नैनीताल में कुछ बड़े भूस्खलन हो चुके हैं और यहां जोशीमठ जैसी स्थिति पैदा होने की आशंका है। यहां का शेर का डंडा इलाका सबसे ज्यादा खतरे में हैं, जिस पर लगभग 15,000 लोग रहते हैं। इसके अलावा नैनीताल की सबसे ऊंची नैनी चोटी और बलियाना दोनों नीचे खिसक रहे हैं।

उत्तरकाशी

उत्तरकाशी जिले के लगभग 26 गांव भी धीरे-धीरे जमीन में धंस रहे हैं। मस्ताड़ी और भटवाड़ी गांव पर सबसे अधिक खतरा है। मस्ताड़ी के मकानों में 1991 के भूकंप के बाद से दरारें पड़ी हुई हैं और यहां भूस्खलन का खतरा है। यहां दशकों से जमीन के नीचे से पानी भी निकल रहा है। दूसरी तरफ नदी और हाईवे के नजदीक होने के कारण भटवाड़ी गांव की स्थिति जोशीमठ जैसी है और यहां मकानों में दरारें बढ़ती जा रही हैं।

कर्णप्रयाग

जोशीमठ की तरह चमोली जिले में स्थित कर्णप्रयाग भी भगवान भरोसे है और यहां तेजी से जमीन धंस रही है। यहां के बहुगुणा नगर में कम से कम 50 मकानों में दरारें पड़ गई हैं। कर्णप्रयाग के आसपास के इलाकों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।

पौड़ी गढ़वाल

पौड़ी गढ़वाल जिले के पौड़ी कस्बे में भी इंसानी गतिविधियों के कारण मकानों में दरारें पड़ गई हैं। हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड पर ये समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है। इलाके में मकानों में दरार पड़ने का प्रमुख कारण ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का निर्माण है। इससे संबंधित एक सुरंग के निर्माण के लिए दिन-रात धमाके किए जाते हैं, जिससे पैदा होने वाले कंपन से मकानों में दरारें पड़ गई हैं।

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रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग के मरोड़ा गांव को भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सुरंग निर्माण के कारण गांव के कुछ मकान पूरी तरह गिर गए, वहीं अन्य कई मकानों में दरारें आ गई हैं। इसके कारण कई परिवार गांव छोड़कर जा चुके हैं और पहले 35-40 के मुकाबले अब यहां 15-20 परिवार ही रहते हैं। इन परिवारों को भी मुआवजा नहीं मिला है और वो दरारों वाले मकानों में रहने को मजबूर हैं।