इंदौर। शहर में आए दिन साहित्यिक आयोजन तो होते ही रहते हैं लेकिन हाल ही में गठित मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन (मप्रहिसास) की इंदौर इकाई का यह आयोजन अनूठा कहा जा सकता है। अहिल्या पुस्तकालय में हुए इस कार्यक्रम में विभिन्न विधा के तीन लेखकों अजय सोडानी, दीपक विभाकर नाइक और अंजलि मिश्रा ने रचना प्रक्रिया क्या होती है, इस संबंध में विस्तार से बताया। मप्रहिसास के इस दूसरे आयोजन में रक्तदान को अपने जीवन का ध्येय बना कर समाज के लिए प्रेरणा बन गए दीपक विभाकर नाइक ने हाल ही में आलेखों के संग्रह पर आधारित “वक्त पर रक्त” किताब लिखी है।
रक्तदान संबंधी लेखन की रचना प्रक्रिया को लेकर उनका कहना था 1990 में जब चोईथराम अस्पताल में पहली बार रक्तदान किया था। एक कार्यक्रम में तब भौचक्क रह गया जब एक अंजान युवक ने कहा आपने रक्तदान कर मेरे दादाजी को जीवनदान दिया है।तब से यह सिलसिला जारी है अब पत्नी, भाई सहित परिवार के अन्य सगस्य भी कर रहे हैं। विभिन्न रक्त समूह के 800 रक्तदाता इस पुनीत कार्य से जुड़ चुके हैं, सब का विवरण दर्ज है।यूं तो हमारी संस्कृति में सोलह संस्कार माने जाते हैं लेकिन विभाकर विहार के लिए रक्तदान 17वां संस्कार है।एक दिन पिताजी ने कहा मेरे जेएई ने आकर मेरे पैर छुए, उनसे ही तुम्हारे काम की जानकारी मिली। मुझे बताते तो सही तुम रक्तदान करते हो।’90 के दशक में रक्त की जरूरत वाले परिजनों के फोन अकसर आधी रात के बाद ही आते थे।परिणाम यह हुआ कि ठीक से पढ़ाई नहीं हुई और सप्लीमेंट्री आ गई।संतोष है कि अब समाज बेहद जागरुक है।14 फरवरी को हर साल सैंकड़ों युगल रक्तदान करते हैं। छत्रीबाग में पगड़ी के दिन माहेश्वरी परिवार के २०० लोगों ने रक्तदान किया।मैं इसे रक्तदान नहीं स्व रक्त प्रवाह दर्शन कहता हूं।
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डॉ अजय सोडानी ने कहा रचना प्रक्रिया पर बोलना/बात करना मेरे लिए मुश्किल है। जब, जो अचानक अजीब सी बैचेनी से निकलता है, सोच कर लिखा नहीं जा सकता, मुझे वही रचना प्रक्रिया लगती है। बैचेनी के सेतु से होकर शब्द आते हैं। 2010 में छोटी सी पुस्तिका के अंग्रेजी में 50 पेज लिख दिए लेकिन हिंदी में एक पेज लिखना मुश्किल था। उस बैचेनी से यह समझ आया कि किताब पढ़ते हुए हम भाव को पकड़ लेते हैं शब्द छोड़ देते हैं। मेरी हाल की किताब में भाव के साथ शब्द निकले हैं। 2010 में हिंदी के शब्द के अर्थ तलाशने के लिए डिक्शनरी देखना पड़ती थी। 2011 में किताब अंग्रेजी में लिखी, हिंदी में अनुवाद करवाया। दर्रा दर्रा हिमालय में जिक्र किया है कि लोग मेरे फोटो देख कर पूछने लगे ये हिमालय कहा है। मुझे आश्चर्य हुआ, यही बैचेनी इस किताब लेखन का सबब बनी। यही हाल रहा तो हिमालय हमारे बीच से गायब हो जाएगा। हिमालय में होने वाली सेंधमारी से हिमालय, नदियों के दोहन से हम नदियां-जंगल खत्म कर रहे हैं। मुझे जब यह दर्द, बैचेनी होती है तो इस सेतु पर शब्द कतारबद्ध चलने लगते हैं।मैं जंगल, पहाड़, आदिवासियों का दर्द लिखना चाहता हूं जो संविधान में भारत का नागरिक लिखे जाने से बहिष्कृत कर दिए गए हैं। क्योंकि नागरिक का मतलब है नगर में रहने वाला।
सोशल मीडिया पर सक्रियता के बाद पहला उपन्यास ‘अनुमिता’ लिखने वाली अंजलि मिश्रा ने कहा लिखना मुझे आसान लगा, बोलने की अपेक्षा। लिखने की रचना प्रक्रिया को बता पाना लेखक के लिए मुश्किल है। मैं अपने लिखने की बात करुं तो अपने बाबा को लेटर लिखा करती थी, 36 की उम्र तक नियमित डायरी भी लिखी। फिर पति के होने वाले तबादलों से अलग अलग लोगों से मिलती रही। लोग जल्दी घुल मिल जाते और अपनी बात शेयर करते थे।मुझे हर एक इंसान में कहानी और हर इंसान एक पात्र लगता है।बाद में छपने की इच्छा जागी। रात दिन उपन्यास के केंद्रीय पात्र अनुमिता पर पति-बेटी से चर्चा की।मेरा लेखन एक तरह से आध्यात्मिक यात्रा रही है। उनके पति-डीएफओ देवास पीएन मिश्रा ने कहा मैंने वार्डबॉय की तरह इनके लेखन कर्म को देखा और पाठक की हैसियत से थोड़ा पढ़ा भी है। लेखन के लिए मैंने कोई प्रेरित नहीं किया।
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समारोह की अध्यक्षता कर रहे शिक्षाविद राजीव नीरव ने कहा तीनों रचनाकार अपनी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, ज्योत से ज्योत जजला रहे है। हमारा उद्देश्य भी यही था कि रचना तो होती है पर रचना प्रक्रिया क्या होती है। हम सब रचनाकार हैं बस सबके माध्यम अलग अलग है और सब की अपनी रचना प्रक्रिया है। रचना प्रक्रिया की यह श्रृंखला भविष्य में बढ़े कार्यक्रम का रूप लेगी। कहानीकार-संचालिका अमिता नीरव ने इन सभी वक्ता-लेखकों का उनके मूड मुताबिक शेर सुनाते हुए श्रोताओं से परिचय कराया। संस्था की सचिव ममता वर्मा ने गतिविधियों की जानकारी दी। आभार रश्मि चौधरी ने माना।