कीर्ति राणा
कोरोना यूं तो पूरे विश्व में चल रहा है लेकिन मध्य प्रदेश में सरकार से लेकर अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपने अंदाज में कोरोना को चला रहे हैं।संपट नहीं बंध रही है कि करना क्या है। पांव-पांव चलने वाले भैयाजी छप्पन दुकान पर मेला लगाते हैं मॉस्क पहने लोगों को मॉस्क बांट कर फुर्र हो जाते हैं।फिर ‘मेरा मॉस्क, मेरा अभियान’ की रथयात्रा निकलती है और लोगों का हुजूम देखकर मन मुदित हो जाता है।
वातानुकूलित मिंटो हॉल में बैठ स्वास्थ्य आग्रह के साथ योग करते हैं, इस एक दिवसीय कार्यक्रम में हर जिले से मीडियाकर्मियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग बौद्धिक होकर रह जाती है। हुक्मरानों की दिक्कत ही यह है कि अपने मन की तो कहना जानते हैं लेकिन सुनने वालों के मन की सुनने का वक्त ही नहीं रहता।
मिंटों हॉल से अपनी सुनाने की अपेक्षा मीडिया मित्रों की सुन लेते तो कलेक्टरों के इंतजामों की ग्राउंड रिपोर्ट और परेशान लोगों की पीड़ा पता चल सकती थी।जब उन्होंने ही नहीं सुनी तो अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य भी आंकडों की बाजीगरी का खेल दिखाते रहे।
इस चौथे कार्यकाल में आमजन को ऐसा क्यों लगने लगा है कि सरकार के फेफड़ों में संक्रमण बढ़ता जा रहा है।
सरकार वीसी में व्यस्त है तो जन प्रतिनिधि इस मुगालते में हैं कि बैठकों के जादू टोने से कोरोना की हेकड़ी भूला देंगे।अपने शहर के सांसद को सबसे सक्रिय सांसद का खिताब इसीलिए तो मिला है कि बैठक करने, मुद्दों को झपट कर अपने नाम करने में माहिर हैं।अब दौड़ बिल्ली चूहा आया वाली बैठकों से रेसीडेंसी के उस हॉल की भी सांसे फूल रही हैं।बैठक में जाते वक्त फूफाजी के तेवर दिखाने वाले ज्यादातर तो मामाजी बन कर निकलते हैं। सांसद कुर्सी से उठे कि नए नवेले भाजपाई मंत्री फौजफाटे के साथ पहुंच जाते हैं।रंग नया है जोश नया है यह दर्शाने में उनके साथ बने भाजपाई भी कहां पीछे रहते हैं।
इनसे मुक्त हुई कुर्सी कभी संभागायुक्त तो कभी पूर्व स्पीकर का इंतजार करती है।शहर का जो तबका कोरोना के दर्द से मुक्त है उसका यह विश्वास चीन की दीवार सा मजबूत होता जा रहा है कि ये बैठकों वाली अखंड ज्योति ना जली होती तो पूरा शहर संक्रमित हो जाता।कलेक्लटर का धमकाना-चमकाना तो फिर भी समझा जा सकता है लेकिन आलम यह होता जा रहा है कि पीली गैंग से लेकर पुलिसकर्मी तक के डील में कलेक्टर आने लगे हैं।
भारत के सारे कोरोना मरीजों के लिए कुछ ही समय में सुपर हिट साबित हुए रेमडिसिविर इंजेक्शन के मुगालते क्राइसेस मैनेजमेंट कमेटी के सुपर अध्यक्ष ने यह कह कर दूर कर दिए हैं कि ये इंजेक्शन इतना भी जरूरी नहीं है।मेडिकल की पढ़ाई कर के डॉक्टर बने और मरीजों को यह इंजेक्शन लगाने की सलाह लिखने वाले डॉक्टरों की तरह कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजन भी सोच रहे हैं कि कौनसा डॉक्टरी ज्ञान सही है। इंजेक्शन नहीं उपलब्ध करा पाने की कमजोरी की इम्युनिटी बढ़ाने का कितना आसान हल खोज लिया है साहब ने।
एक दूसरे साहब बहादुर तो सिरे से ही नकार रहे हैं कि ऐसा कोई संकट और कालाबाजारी भी है, जीहुजूरियों की फौज राजा-महाराजाओं को ले बैठी, वैसा ही हाल अब हो रहा है। यदि संकट नहीं है, कालाबाजारी नहीं हो रही है तो आमजन को यह मानने का हक है कि जीहुजूरिये फील्ड की अपेक्षा पसंदीदा गाने बजाने में व्यस्त हैं।
राज्य के मुखिया चिंता तो कर रहे हैं लेकिन इस उत्सवी चिंता का कोरोना पर असर नहीं हो रहा है ‘मैं भी वॉलिंटियर हूं’ की उत्सवी शपथ लेने की होड़ जनप्रतिनिधि से लेकर मंत्रियों तक में लगी हुई है।शपथ लेंगे तब ही पता चलेगा कि अरे, ये तो वॉलिटियर हैं। नित नई जैकेट पहनने वाले मंत्री मॉस्क लगाने में झिझक महसूस करते हों वहां ऐसी शपथ का कितना असर होगा? कोरोना मिल जाए तो पूछना पड़ेगा अबे तुम्हें मप्र ही पसंद आ रहा है बाकी क्या चुनाव वाले राज्यों में सीएस, डीएम से सेटिंग कर रखी है जो न तो वहां आंकड़े सामने आ रहे हैं और प्रधान सेवक तक मंच से आगाह नहीं करते कि मॉस्क पहनों, दूरी रखो।