आजकल भवनों का ढांचा पहले के मुकाबले में सुंदर व भव्य तो आवशयक हो गई हैं, लेकिन कई बार इनके निर्माण में वास्तु के नियमों की अवेहलना की जाती है, नतीजन वास्तुदोष उत्पन्न हो जाते हैं। जो वहां रहने वालों को फिजिकल व मेन्टल पेशेंट्स बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। वास्तु दोष से मुक्ति के लिए पंचतत्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश चारों दिशाएं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण तथा चारों कोण नैऋत्य, ईशान, वायव्य,अग्नि एवं ब्रह्म स्थल (केंद्र) को संतुलित करना बहुत जरुरी है। इसके साथ ही वास्तु के कुछ नियमों का पूर्ण ढंग से पालन किया जाए तो भवन में रहने वाले सभी लोग रह सकते हैं सेहतमंद।
उदर रोग
किसी भी भवन में उत्तर पूर्वी भाग का रिलेशन जल तत्व से होता है अतः सेहत की नजर से किसी भी इंसान के शरीर में जल तत्व के अव्यवस्थित होने से अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अतः उत्तर पूर्व को जितना खुला एवं हल्का रखेंगे उतना ही बेहतर होगा। इस दिशा में रसोई का निर्माण अशुभ है रसोई निर्माण करने पर उदर जनित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
अनिद्रा का शिकार होना
वास्तुशास्त्र में पूर्व तथा उत्तर दिशा का हल्का और नीचा होना तथा दक्षिण व पश्चिम दिशा का भारी व ऊंचा होना काफी अच्छा माना गया है। यदि पूर्व दिशा में भारी निर्माण हो तथा पश्चिम दिशा बिल्कुल खाली व निर्माण रहित हो तो नींद ना आने की समस्या हो सकती हैं. है। उत्तर दिशा में भारी निर्माण हो लेकिन दक्षिण और पश्चिम दिशा निर्माण रहित हो तो भी ऐसी परिस्थिति में नींद ना आने की समस्या का शिकार होना पड़ सकता है.
थकान,सिरदर्द एवं घबराहट
गृहस्वामी अग्निकोण या वायव्य कोण में निद्रा करे,या उत्तर में सिर व दक्षिण में पैर करके सोए तब भी घबराहट या बेचैनी,सिरदर्द और चक्कर जैसी समस्याएं हो सकती है,जिसकी वजह से दिन भर थकान प्रॉब्लम हो सकती है। इसी के साथ धन आगमन और सेहत की दृष्टि से दक्षिण या पूर्व की ओर पैर करके शयन करना अच्छा माना गया है।
दिल और हड्डियों के रोग
दक्षिण-पश्चिम दिशा में एंट्री गेट या हल्की चारदीवारी अथवा रिक्त स्थान होना शुभ नहीं होता है,ऐसा होने से हार्ट अटैक,लकवा,हड्डी एवं मांसपेशीयों का रोग होना पॉसिबल हैं।अतः यहां एंट्री गेट या रिक्त स्थान छोड़ने से बचना चाहिए।
पैरों में दर्द
किचन में भोजन बनाते वक़्त यदि गृहणी का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो स्कीन एवं हड्डी के रोग हो सकते हैं। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन पकाने से पैरों में दर्द की आशंका भी बनती है। इसी प्रकार पश्चिम की ओर मुख करके खाना पकने से आंख,नाक,कान एवं गले की परेशानी हो सकती हैं ।पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके किचन में भोजन बनाना हेल्थ के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
गैस एवं रक्त संबंधी रोग
दीवारों पर रंग-रोगन भी ध्यान से करवाना चाहिए ।काला या गहरा नीला रंग वायु रोग,पेट में गैस, हाथ-पैरों में दर्द ,नारंगी या पीला रंग ब्लड प्रेशर,गहरा लाल रंग खून विकार या दुर्घटना का कारण बन सकता है ।अच्छे हेल्थ के लिए दीवारों पर दिशा के अनुरूप हल्के एवं सात्विक रंगों का उपयोग करना चाहिए।
यौन रोग
घर में ईशान कोण कटा हुआ नहीं होना चाहिए। कोण कटा होने से भवन में निवास करने वाले व्यक्ति को रक्त से जुड़े विकारों से ग्रस्त हो सकते है यौन रोगों में वृद्धि होती है प्रजनन क्षमता में कमी हो सकती है। ईशान कोण में यदि उत्तर का स्थान अधिक ऊंचा है तो उस स्थान पर रहने वाली स्त्रियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।