राजकुमार जैन
ईश्वर के वरदान स्वरूप मिले इस जीवन के खेल को खेलते समय हमें अक्सर यह मलाल रहता है कि हमारी किस्मत अच्छी नहीं है और हमारे हाथ में अच्छे पत्ते नहीं हैं । वस्तुत: यह सम्भव ही नहीं है कि जीवन रूपी इस खेल में हमारे पास सभी पत्ते हमारी अपनी मर्जी के हों या हमारी समझ के अनुसार अच्छे हों । देखा जाय तो इस खेल में किसी को भी सारे पत्ते अपनी पसन्द के नहीं मिलते । पत्ते तो पत्ते बांटने वाले की मर्जी के अनुसार ही मिलते है।
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इस खेल की विशेषता यह है कि यह दो तरह से खेला जाता है। या तो बिसात के दोनों तरफ के खिलाड़ी हम स्वंय ही है और हमें अपने ही विरूद्ध खेल कर स्वयं पर विजय पाना है यानी किसी और से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है या फिर पूरी दुनिया हमसे खेल रही है और हमें सबसे प्रतिस्पर्धा कर जीतना है । अब यह तो हमें ही तय करना है कि जिंदगी के इस खेल को हमें किस तरह से खेलना है, खुद के साथ या सम्पूर्ण संसार के साथ ।
मूल यह है कि जिंदगी के इस खेल में महत्वपूर्ण यह नहीं होता है कि हमारे हाथ में कैसे पत्ते हैं बल्कि हमारे पुरुषार्थ की कसौटी यह है कि जो भी पत्ते हमारे पास हैं उनसे हम कितना अच्छा खेल पाते हैं । (जो लोग ताश के खेल की जानकारी रखते है वो जानते हैं कि कैसे एक भदरंग की दुर्री अंतिम समय में खेल को पलट देने की क्षमता रखती है) ईश्वर प्रदत्त इस जीवन में अपनी जीत से भी बढ़कर आनन्ददायक है अपना सबकुछ ईश्वर के भरोसे दांव पर लगाकर एक अच्छा खेल खेलना ।
जीवन के खेल को खेलने के इस आनंद पर हम सबका बराबर का अधिकार है और यह परम आनंद हमें स्वंय ही हासिल करना होता है । इस खेल में हमें कभी भी पहले से पता नहीं होता कि कब कौनसी चाल पांसा पलट सकती है। अतः जीवन के इस खेल को शिद्दत से खेलें, कभी अपने पत्ते फ़ेंककर खेल से पलायन का ना सोचें । अपने जीवन को भरपूर जियें विपरीत परिस्थितियों से हार मान कर इस जीवन रूपी खेल का समय से पहले अंत (आत्मघात) करने का ना सोचें।