साधारणता से मिली सादगी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उपन्यासकार पद्मश्री हलधर नाग से की मुलाकात

Shivani Rathore
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श्रीरामचरित्रमानस (Shri Ramcharitramanas) में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तैसी”, जिसका एक अर्थ यह भी है कि व्यक्ति स्वयं जिस स्वभाव का होता है, उसे संसार में उसी तरह के व्यक्ति और परिवेश नजर आते हैं ।भारत देश की नवनियुक्त राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) द्वारा उपन्यासकार पद्मश्री हलधर नाग (Haldhar Nag) से की गई मुलाकात गोस्वामी तुलसीदास की इस चौपाई को वास्तविक स्वरूप में चरितार्थ करती है। देश की नवनियुक्त राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जहां अपनी सादगी से एक दमदार पहचान बनाई और भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के पद तक पहुंची, वहीं भारत सरकार के द्वारा देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित उपन्यासकार हलधर नाग भी अपने सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श अनुसरण से देशवासियों के दिलों में एक अलग स्थान रखे हैं।

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संघर्षो से भरा है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन

देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति का गौरव प्राप्त करने वाली द्रोपदी मुर्मू का अबतक का जीवन बेहद ही कष्टप्रद और संघर्ष भरा रहा है। गरीबी और असुविधाओं की बहुलयता के साथ ही दुर्भाग्य ने भी उनकी परीक्षा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक के बाद एक दो जवान बेटों की दुखद मृत्यु के बाद पति के भी गुजर जाने से दौपदी मुर्मू दुःख और अवसाद के सागर में डूब गईं थी। परन्तु अपने दृढ़ निश्चय से उन्होंने खुद को इस भीषण दर्द से उबारा और पुनः स्वयं को स्थापित किया और आज देश के प्रथम नागरिक के पद तक का सफर तय किया।

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सादगी की पहचान हैं पद्मश्री हलधर नाग

भारत सरकार के द्वारा देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक पद्मश्री प्राप्त ओड़ीसा के संबंलपुरी भाषा के कवि,लेखक और उपन्यासकार हलधर नाग को सादगी के चेहरे के रूप में जाना जाता है। उनकी सादगी की पराकष्ठा ही है की उन्होंने आज तक अपने पैरों में जूते या चप्पल धारण नहीं किए। साधारण सी एक धोती, एक गमछा और बनियान उनकी दैनिक पोषक है और इसी स्वरूप में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों से पद्मश्री जैसा बड़ा पुरस्कार प्राप्त किया।