मेहनत मे ही बरकतें साईं, यादों में फोटो जर्नलिस्ट विपिन परिहार

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गौरीशंकर दुबे

विपिन परिहार की भौहें गहरी और आपस में जुड़ी हुईं थीं। सिर के बाल भी गहरे। डाई कई लोगों को चमन उजाड़ देती है, लेकिन विपिन के बाल घने के घने रहे। सीधी बात, नो बकवास विपिन का गुण था। किसी को घुमाना फिराना नहीं आता था। न ही कोशिश करता था। बहुत से नेता और समाजसेवी फोटो जर्नलिस्ट को प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन वह कहता था-रेने दो, कां का निकलेगा। अहीरखेड़ी (प्रभुनगर)में एक छोटा मोटा घर है।

पिता पत्नी पुष्पा, और बच्चे आशीष व नंदिनी भी। रोजाना सुबह वहां से फोटो जर्नलिज्म के लिए निकलता, तो रात बारह बजे ही घर पहुंचता। संतोष शितोले, तब दैनिक दबंग दुनिया में क्राइम रिपोर्टिंग चीफ थे। ये दोनों रात एक-एक बजे तक एमवाय अस्पताल में मिल जाते थे। एक खास खबर और अखबारों के मुकाबले में होती ही थी। आंखों में किचर, चाल की गति कम, झुके कंधों पर टंगा बैग, जिसमें कैमरा होता है, उसे कंधे पर लटकाए विपिन सुबह साढ़े दस बजे दैनिक बैठक में पहुंच जाता था।

सवाल होता था कि इस बैग में टिफिन लिए क्यों घूमतो हो, तो वह कहता-घर बहुत दूर है। खाना खाने जाऊंगा, तो पाव भर पेट्रोल के पैसे खर्च हो जाएंगे। शायद विपिन को पंद्रह हजार पगार मिलती थी, लेकिन काम के लिए जुनून था। वो आग थी, जो बहुत कम फोटो जर्नलिस्ट में होती है। बीच में वह पार्ट टाइम हम्माली भी करने लगा था। शायद सिंधी भाषा सियागंज के व्यापारियों को सुन सुनकर सीखी थी। पिता मुकुंदसिंह परिहार उप्र कानपुर बाटा फैक्टरी में गए, तो उन्हें वापस इंदौर बुला लिया कि आप आराम करो। काम करने के दिन मेरे हैं।

होलकर स्टेडियम में चाहे कोई अंतरराष्ट्रीय मैच हो या घरेलू मैच। विपिन वो फोटो जरूर लाता था, जो कैच बर्ड से कहानी बयां कर देते थे। भारत आॅस्ट्रेलिया मैच में उसका हाथ टूट गया था, लेकिन फोटोग्राफी नहीं छोड़ी। संपादक से कहा कि क्लिक दो हाथ से थोड़ीना करते हैं। वो क्या बोरते हैं विजन खोपड़ी में होता है, हाथ में नहीं। उमेश सेन ने तब विपिन का फोटो उतारा था, जिसे द इंडियन एक्सप्रेस ने छापा था। विपिन व्यंग्य विनोदी था।

आप हिन्दी में सवाल करो-कैसे हो भाई, क्या चल रहा है, आगे क्या करना है, चलें चाय पीने…, तो वह सिंधी में जवाब देकर हंसा देता था-माठिकायां। अवाजां केंडा हाल साईं। सुट्ठो मालीकां की मेहरा। गड्Þ आयों साईं। मेहनत मे ही बरकतें साईं। हलो गद चां पियूं। सिंधी भी एक खास शैली में बोलता था, जो पाकिस्तानी सिंधी टीवी सीरियल में बोलते दिखाई देते हैं। हिन्दी भी ठेठ इंदौरी-चर रिया है कियाआ। भोत जियाता बोलता है। ओए तेरीई गाड़ी इस्टार्ट नी हो रई। विपिन फोटो जर्नलिज्म का बड़ा नाम नहीं था, लेकिन इस काम को जान पर खेलकर करने वालों में उसका नाम रहेगा। इस पेशे का सम्मान बढ़ाने वाला था विपिन।