माननीयों से निवेदन है कि सिर्फ जबानी जमा- खर्च ना करें…रोडमैप पेश करें

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पंकज भारती

देश में सत्ता पक्ष के नेताओं द्वारा वैक्सीनेशन को लेकर आए दिन नए-नए दावे किए जा रहे हैं। कई केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा यह बात दोहराई गई है कि इस साल के अंत तक देश के सभी व्यस्क लोगों जिनकी संख्या लगभग 108 करोड़ है उनका टीकाकरण कर दिया जाएगा। हालांकि इन नेताओं द्वारा यह नहीं बताया गया कि यह काम होगा कैसे? इसका कोई रोडमैप नहीं बताया गया है कि इतने टीके भारत को मिलेंगे कहां से, क्योंकि देश में होने वाला उत्पादन कम है और विदेशों से वैक्सीन को लेकर कोई बड़ी डील अब तक नहीं हो सकी है। सरकार के इस दावे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त रवैया अपनाया है।

कोर्ट ने कहा है कि जब सरकारी नीतियों द्वारा नागरिकाें के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तब अदालतें मूकदर्शक नहीं रह सकती। नीतियों की समीक्षा और संवैधानिक औचित्य देखना अदालतों की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा है कि केन्द्र दिसंबर के अंत तक सभी व्यस्क लोगों जो की करीब 108 करोड़ हैं को टीकाकरण का दावा कर रहा है, इसका रोडमैप क्या है? इसके अलावा कोर्ट ने केन्द्र सरकार से टीकारण का पूरा हिसाब मांगा है। कोर्ट ने वैक्सीनेशन नीति, टीके खरीदने के फैसलों की जानकारी, उनसे जुड़ी फाइल नोटिंग और दस्तावेज सौंपने के आदेश दिए है।

चुनाव में प्रधानमंत्री ने सभी को फ्री वैक्सीन देने का वादा किया था। वित्त वर्ष 2021-22 के आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सितारमण ने वैक्सीनेशन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए के आवंटन की बात कही थी। बजट के बाद व्यय सचिव ने कहा था कि इस धनराशि से देश के लोगों को टीके की दोनों डोज दी जाएगी। इसके बावजूद केन्द्र ने राज्यों को टीक का इंतजाम करने को कहा दिया। सुप्रिम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से यह भी पूछा है कि साल 2021-22 के बजट में टीकारण के लिए आवंटित 35 हजार करोड़ का अब तक क्या इस्तेमाल हुआ?

देश में टीके का संकट होने का एक कारण यह भी सामने आया है कि कोरोना का टीका बनने के बावजूद भारत सरकार ने टीकों का ऑर्डर देने में बहुत देर कर दी। टाइम मैग्जीन के अनुसार भारत सरकार ने जनवरी 2021 में सीरम इंस्टीट्यूट से 1.1 करोड़ और भारत बायोटेक से 55 लाख डोज खरीदे। सरकार ने इन दोनों कंपनियाें को यह नहीं बताया कि वे अभी और कितने टीके खरीदेगी। इसके बाद फरवरी के अंत में सीरम को 2.1 करोड़ और डोज का ऑर्डर दिया गया। मार्च में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तब केन्द्र सरकार ने इन दोनों कंपनियों से 11 करोड़ टीके और खरीदे।

वहीं अन्य देशों को देखें तो उन्होंने टीका खरीदने में तेजी और स्पष्टता दिखाई। टाइम मैग्जीन के अनुसार कनाडा ने जितने वैक्सीन का ऑर्डर दे रखा है उससे वह अपने देश के पूरे लोगों को 5 बार वैक्सीनेट कर सकता है। इसी प्रकार ब्रिटेन अपने लोगों को 3.6 बार और अमेरिका अपने देश के सभी लोगों को दो बार वैक्सीनेट कर सकता है, जबकि भारत में अभी मात्र 3 फीसदी लोगों को ही वैक्सीन का दोनों डोज लग सका है।

विडंबना यह है कि सरकार यहां भी आंकड़ों का खेल खेल रही है। सरकार बात जोर देकर बताती है कि देश के कुल 22.11 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हो गया है। लेकिन इसमें से 17.57 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें कोरोना वैक्सीन का सिर्फ एक डोज ही लगा है। तब यह कैसे मान लें कि 22.11 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हो गया है। किसी व्यक्ति को वैक्सीनेशन के दोनों डोज लग चुके हो तब ही उसे वैक्सीनेट माना जाना चाहिए। भारत में लगभग 108 करोड़ लोगोंे को वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जानी है लेकिन 16 जनवरी 2021 से वैक्सीनेशन की शुरुआत होने के लगभग 5 माह बाद 3 जून 2021 तक मात्र 4.54 करोड़ लोगों को ही वैक्सीन की दोनों डोज लगाई जा सकी है।

सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले मैसेजों में सख्त छवि और तुरंत निर्णय लेने वाली मोदी सरकार जमीनी स्तर पर निर्णय लेने में घबराती दिखाई देती है। कोरोना महामारी को काबू करने, दवाईयों की कमी और वैक्सीनेशन के मुद्दे पर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका है। वर्तमान में देश में स्वास्थ्य आपात काल का दौर है अत: सरकार को आपात काला के दौरान उपयोग की जाने वाली शक्तियों का उपयोग करना चाहिए।

केन्द्र सरकार को देश में बनने वाली दोनों वैक्सीन का उत्पादन अपने हाथ में ले लेना चाहिए। कोरोना से बचाव की वैक्सीन बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक का अधिग्रहण तुरंत प्रभाव से किया जाना चाहिए और इन दोनों कंपनियों में बनने वाली पूरी वैक्सीन को देश के नागरिकों के लिए निशुल्क उपलब्ध कराना चाहिए। जब तक की देश के 18 साल से अधिक आयु के सभी नागरिकों को टीके का दोनों डोज नहीं लग जाता तब तक देश में बनने वाली वैक्सीन का एक भी डोज विदेश नहीं भेजा जाना चाहिए। टीके का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी ओर निजी कंपनियों को वैक्सीन के फॉमूले देकर उत्पादन बढ़ाने की बात कही गई है लेकिन लालफिताशाही के चलते यह काम कछुआ चाल से चल रहा है।