ट्रंप का टैरिफ बम: 6 नए देशों पर आयात शुल्क, ब्रिक्स और दवाओं पर भी सख्ती

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार पर कड़ा प्रहार किया है। अपने दूसरे कार्यकाल में आक्रामक आर्थिक राष्ट्रवाद को जारी रखते हुए उन्होंने 6 नए देशों पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह आदेश 1 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा।

Dilip Mishra
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार पर कड़ा प्रहार किया है। अपने दूसरे कार्यकाल में आक्रामक आर्थिक राष्ट्रवाद को जारी रखते हुए उन्होंने 6 नए देशों पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह आदेश 1 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा। फिलीपींस, इराक, मोल्दोवा, अल्जीरिया, लीबिया और ब्रुनेई को अब अमेरिका के ‘टैरिफ बकेट’ में जोड़ दिया गया है। इस फैसले से न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खलबली मच गई है, बल्कि अमेरिका के साथ इन देशों के रिश्तों में भी खटास आने की आशंका है।

किन देशों पर कितना टैक्स लगा?

ट्रंप प्रशासन की नई टैरिफ सूची में शामिल देशों पर निम्न दर से शुल्क लगाया गया है:

इराक: 30%

अल्जीरिया: 30%

लीबिया: 30%

फिलीपींस: 25%

मोल्दोवा: 25%

ब्रुनेई: 25%

इन टैरिफों का उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा प्रदान करना और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना बताया गया है। व्हाइट हाउस ने बयान में कहा कि ये देश या तो अमेरिकी व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंचा रहे थे या रणनीतिक रूप से असहयोगी थे।

ब्रिक्स देशों पर भी आघात

डोनाल्ड ट्रंप यहीं नहीं रुके। उन्होंने ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका जैसे BRICS देशों से आयातित उत्पादों पर भी 10% टैरिफ लगाने की योजना की घोषणा की है। इससे वैश्विक स्तर पर भूराजनीतिक तनाव और व्यापार युद्ध की संभावनाएं फिर से उभर रही हैं। विशेष रूप से भारत और चीन जैसे देशों के साथ अमेरिका के संबंध पहले से ही संवेदनशील हैं और यह कदम दोनों पक्षों के रिश्तों को और बिगाड़ सकता है।

कॉपर और फार्मा प्रोडक्ट्स पर तगड़ी मार

ट्रंप प्रशासन ने घरेलू खनन और औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कॉपर (तांबा) पर 50% टैरिफ लगाने का फैसला किया है। इसके अलावा, उन्होंने संकेत दिया है कि दवाओं (फार्मा उत्पादों) पर आयात शुल्क एक साल के भीतर 200% तक बढ़ाया जा सकता है। यह कदम विशेष रूप से भारत और चीन जैसे देशों के लिए बड़ा झटका हो सकता है, जो अमेरिका को बड़े पैमाने पर फार्मास्युटिकल निर्यात करते हैं। यह नीति ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति का हिस्सा है, जिसमें घरेलू कंपनियों को सशक्त करने और अमेरिकी नौकरियों को विदेश में जाने से रोकने पर जोर दिया गया है।

दुनिया भर में बढ़ी चिंता

इस घोषणा के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता और अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया है। विश्लेषकों का मानना है कि ये टैरिफ न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचाएंगे, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन को भी बाधित करेंगे। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के अनुसार इन टैरिफों से अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगी वस्तुएं खरीदनी पड़ेंगी, जिससे महंगाई और मांग में गिरावट आएगी। अमेरिका के भीतर भी कई उद्योग संगठनों ने इस निर्णय का विरोध किया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चुनौती देने की संभावना भी बढ़ गई है। हालांकि, ट्रंप इन संस्थाओं की वैधता पर पहले भी सवाल उठा चुके हैं।

2024 की नीतियों की पुनरावृत्ति

यह कदम ट्रंप के पहले कार्यकाल की नीति का ही विस्तार है, जब उन्होंने चीन पर बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाए थे, जिससे व्यापार युद्ध छिड़ गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह रुझान जारी रहता है, तो वैश्विक व्यापार व्यवस्था एक बार फिर संकट के दौर में जा सकती है।डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को किसी भी कीमत पर विदेशी निर्भरता से मुक्त करना चाहते हैं। सवाल यह है कि क्या यह रणनीति अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यापारिक संबंधों के लिए फायदेमंद साबित होगी, या इसका नतीजा आर्थिक अलगाव के रूप में सामने आएगा।