
बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) शुरू किया गया है। इस प्रक्रिया के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं, जिन पर आज यानी 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि इस संशोधन के जरिए बड़े पैमाने पर गरीब, दलित, पिछड़े और प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे उनके मतदान के अधिकार का उल्लंघन होगा।
विपक्ष का आरोप: “4.5 करोड़ वोटर्स का नाम काटने की साजिश”
राजद नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि एनडीए सरकार चुनाव आयोग का दुरुपयोग कर रही है और उन 4.5 करोड़ लोगों को वोटर लिस्ट से हटाने की योजना बना रही है, जो प्रवासी मजदूर या कमजोर वर्गों से आते हैं। तेजस्वी ने चुनाव आयोग को ‘गोदी आयोग’ करार दिया और कहा कि यह कार्रवाई लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश है। विपक्ष का दावा है कि यह पूरी प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक है।

चुनाव आयोग की सफाई
इस पूरे विवाद पर भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा कि “लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए एक शुद्ध और अद्यतन मतदाता सूची बेहद जरूरी है।” चुनाव आयोग ने बताया कि अब तक 57% जनगणना फॉर्म सफलतापूर्वक संग्रहित हो चुके हैं और अब भी राज्य में 16 दिन का समय शेष है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या है दांव पर?
आज सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हो रही है। याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि मतदाता सूची के SIR को तत्काल प्रभाव से रोका जाए, और जब तक पूरी पारदर्शिता और सुरक्षा न सुनिश्चित हो जाए, तब तक प्रक्रिया स्थगित रखी जाए।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल देता है, तो यह फैसला पूरे देश में मतदाता सूची की शुद्धता बनाम वोटर राइट्स की लड़ाई को दिशा दे सकता है।
सियासत गरमाई, बिहार बंद और विरोध प्रदर्शन
इस बीच, बिहार में इस मुद्दे पर राजनीतिक तापमान चरम पर है। बुधवार को राज्य में ‘बिहार बंद’ का आयोजन किया गया, जिसमें राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार सहित INDIA गठबंधन के कई नेता सड़कों पर उतरे। प्रदर्शन के दौरान चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप लगे और केंद्र सरकार पर जनमत से छेड़छाड़ की कोशिश का आरोप लगाया गया। उधर महाराष्ट्र में आदित्य ठाकरे ने भी चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए और कहा कि चुनाव आयोग के लिए आदेश बीजेपी कार्यालय से जाता है. इसके साथ ही पार्टी तोड़ने का आरोप भी आदित्य ठाकरे ने चुनाव आयोग और बीजेपी पर लगाया।