राज-काज : शराबबंदी के बाद उमा के जलाभिषेक से संकट

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान(CM Shivraj Singh Chauhan) फुलफार्म में हैं और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती(Uma Bharti) फार्म में आने की कोशिश में। शराबबंदी को लेकर उमा पहले से ही सरकार की नींद हराम किए थीं, अब सीहोर के शिव भक्त कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने उन्हें एक मुद्दा दे दिया। उन्होंने कह दिया कि रायसेन जिले के किले के मंदिर में सोमेश्वर महादेव ताले में कैद हैं। उन्होंने ताला खुलवाने की मांग की। यहां का ताला सिर्फ एक बार महाशिवरात्रि के दिन ही खुलता है। उमा ने तत्काल मुद्दे को लपका। उन्होंने कहा कि नवरात्रि के बाद किसी शिवलिंग में जलाभिषेक का विधान है।

वे किसी स्थान की तलाश कर रही थीं। अज्ञानता के कारण मुझे सोमेश्वर महादेव के ताले में कैद होने की जानकारी नहीं थी। उन्होंने घोषणा की रामनवमी के अगले दिन सोमवार 11 अप्रैल को वे इस मंदिर में जाएंगी और सोमेश्वर महादेव का जलाभिषेक करेंगी। इसकी सूचना उन्होंने रायसेन प्रशासन को तो दी ही, लोगों का भी कार्यक्रम में हिस्सा लेने का आह्वान कर डाला। उमा के इस कदम से प्रशासन और सरकार दोनों सकते में हैं। हालात ये है कि न उमा के कदम का विरोध किया जा सकता और न ही समर्थन। सरकार और प्रशासन उमा के कार्यक्रम से कैसे निबटेंगे, यह देखने लायक होगा।

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भूपेंद्र के रुतबे और धमक में कमी के मायने….

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खासमखास और अपनी कार्यशैली से अलग पहचान रखने वाले नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के रुतबे में कमी देखने को मिल रही है। उनकी घटती धमक का ताजा उदाहरण है भोपाल के कोलार क्षेत्र में मुख्यमंत्री चौहान के मुख्य आतिथ्य में हुए कार्यक्रम। खास बात यह है कि लोकार्पण कार्यक्रम भूपेंद्र सिंह के विभाग नगरीय प्रशासन विभाग से संबंधित था और वे भोपाल के प्रभारी मंत्री भी हैं। बावजूद इसके आमंत्रण कार्ड और पोस्टर, बैनरों से भूपेंद्र सिंह का नाम और फोटो नदारद थे।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इससे पहले इंदौर में भी एक लोकार्पण कार्यक्रम से भूपेंद्र नदारद थे जबकि कार्यक्रम उनके विभाग से संबंधित था और इसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। तब भी न तो आमंत्रण कार्ड में भूपेंद्र का नाम था और न ही पोस्टर, बैनरों में। इसकी जमकर चर्चा हुई थी। तो क्या इसका यह मतलब निकाला जाए कि भूपेंद्र अब मुख्यमंत्री चौहान के खास मंत्रियों में शुमार नहीं रहे या जानबूझ कर कोई उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। वजह जो भी हो लेकिन भूपेंद्र के विभागों से संबंधित कार्यक्रमों में ही उनकी इस तरह उपेक्षा किसी के गले नहीं उतर रही। इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।

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‘रंग में भंग’ डालने वालों की कमी नहीं….

प्रदेश में कुछ नेता-अफसर राज्य सरकार की किरकिरी कराने में अव्वल हैं। रंग में भंग डालने वाली ऐसी घटनाओं में पहली है, रीवा के राजनिवास (सरकिट हाउस) में नाबलिग के साथ एक महंत द्वारा रेप। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के तेवर देखकर अफसरों ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की लेकिन वह चेहरा सामने नहीं आया, जिसकी सिफारिश पर महंत को सरकिट हाउस में कमरा मिला था। दूसरी घटना सीधी की है, जहां भाजपा के एक विधायक का विरोध करने पर पुलिस ने पत्रकार एवं कुछ कलाकारों को धारा 151 के तहत थाने में बंद किया और सभी के कपड़े उतरवा कर अर्द्धनग्न अवस्था के फोटो वायरल कर दिए।

यह मसला भोपाल से लेकर दिल्ली तक गूंजा। मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया फिर भी अंचल के आईजी कह बैठे कि पुलिस ने कुछ गलत नहीं किया। तीसरा, कटनी में एक गरीब मुख्यमंत्री चौहान से अपनी समस्या लेकर मिलने की कोशिश कर रहा था। मुख्यमंत्री को कलेक्टर प्रियंक मिश्रा को फटकार लगाना पड़ी। उन्होंने कहा कि गरीब का मुझसे मिलने की कोशिश करने से साफ है कि व्यवस्था में कमी है। मुख्यमंत्री चौहान कड़ी फटकार और अपने बुद्धि कौशल से मसले निबटा रहे हैं, पर रंग में भंग डालने वालों की कमी नहीं है।

क्या लग गई कमलनाथ के नेतृत्व पर मुहर….

भाजपा में मान लिया गया है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं है, कमलनाथ को लेकर भी एक बैठक में ऐसा प्रस्ताव पारित हुआ है। कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों एवं वरिष्ठ नेताओं की बैठक में तय किया गया है कि विधानसभा का अगला चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। बैठक से पहले अटकलें लग रही थीं कि कमलनाथ एक पद छोड़ने की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसमें कोई शक नहीं कि कमलनाथ पार्टी के वरिष्ठतम नेता हैं। उनका अनुभव अन्य नेताओं की तुलना में काफी ज्यादा है। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस उनके नेतृत्व में ही सत्ता में आई थी।

दूसरा सच यह भी है कि हाथ आई सत्ता जाने के लिए दोषी भी कमलनाथ ही हैं। नाथ के नेतृत्व में मुहर लग जाने के बाद भी कांग्रेस की राह आसान नहीं है। अरुण यादव ने निमाड़ के बाहर निकलकर प्रदेश में दौरे शुरू कर दिए हैं। अजय सिंह अपने ढंग से सक्रिय है और सक्रियता के मामले में दिग्विजय सिंह का कोई मुकाबला ही नहीं। इधर कमलनाथ मेहनत के मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तुलना में कही नहीं लगते। वे बैठकर सिर्फ रणनीति बना सकते हैं और इतने मात्र से कांग्रेस की नैया पार होने वाली नहीं है।

प्रतिस्पर्द्धा नहीं, लक्ष्य 2023 भेदने की तैयारी….

प्रदेश में जितने सक्रिय सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान हैं, लगभग उतने ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा। शिवराज विभिन्न योजनाओं का लाभ लोगों को देने पर आमादा हैं और विष्णुदत्त कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखकर संगठन को मजबूत करने में। पहली नजर में लगता है कि सरकार और संगठन में एक दूसरे से आगे निकलने की प्रतिष्पर्द्धा चल रही है। आखिर, इस सक्रियता के आधार पर ही भविष्य में पार्टी का नेता तय होना है। पहले की तुलना में कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा एवं प्रहलाद पटेल जैसे नेताओं की सक्रियता घट गई है।

पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बीच-बीच में सक्रिय दिखाई पड़ती हैं और अचानक फिर नेपथ्य में चली जाती हैं। पार्टी के अंदर चल रही खुसर-फुसर को आधार माने तो शिवराज एवं विष्णुदत्त के बीच कोई प्रतिष्पर्द्धा नहीं, बल्कि दोनों मिलकर वर्ष 2023 का लक्ष्य भेदने की तैयारी कर रहे हैं। एक सरकार के जरिए जनता को भाजपा से जोड़ने का काम कर रहा है और दूसरा कार्यक्रतार्ओं को सक्रिय रखकर जीत के प्रति जोश पैदा कर रहा है। दोनों न मीडिया को महत्त्व देने में पीछे हैं और न ही मंत्रियों, विधायकों व पार्टी नेताओं की आवभगत करने में। साफ है निशाना मछली की आंख की तरह मिशन-2023 पर है।