हाल ही में, भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ ऐसे बयान दिए हैं, जिन्होंने विवाद उत्पन्न कर दिया है। धनखड़ ने कहा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण के खिलाफ रुख अपनाया था और उन्होंने खुद को इस नीति से दूर रखा। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित करने में काफी देरी की गई। ये बयान अब विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय बन गए हैं।
आपातकाल का काला दिन
धनखड़ ने 1975 के आपातकाल को भारत के इतिहास का सबसे काला दिन बताया। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक आदेश जारी करके आपातकाल लागू किया, जिसके तहत हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया। उनके अनुसार, यह एक तानाशाही का उदाहरण था जिसमें संविधान की हत्या की गई और लोकतंत्र पर हमला हुआ। उनका यह कहना था कि संविधान की रक्षा के लिए आपातकाल का यह कदम आधी रात को उठाया गया था, जिसका उद्देश्य कुर्सी को बचाना था।
संविधान दिवस का महत्व
उपराष्ट्रपति ने संविधान दिवस को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हम लोकतंत्र दिवस इसलिए मनाते हैं ताकि संविधान की शक्ति और उसकी भूमिका को समझा जा सके। उनके अनुसार, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने संविधान को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जिनका उद्देश्य संविधान की रक्षा और उसकी महत्वपूर्णता को बनाए रखना है। उन्होंने विशेष रूप से 19 नवंबर 2015 का उल्लेख किया, जब संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया, जो आपातकाल लागू करने वाले व्यक्ति के जन्मदिन के साथ मेल खाता है। यह निर्णय उस अंधेरे समय में एक रोशनी की किरण के समान था।
संविधान के प्रति सम्मान
धनखड़ ने कहा कि संविधान को हमारे देश का सबसे बड़ा मंदिर माना जाना चाहिए और उन्होंने मंगलप्रभात लोढ़ा की भी सराहना की, जिनके पिता को जेल भेजा गया था। उन्होंने संविधान के प्रति सम्मान को महत्वपूर्ण बताया और इसे पूरी दुनिया पर असर डालने वाली गतिविधि के रूप में देखा। उनके अनुसार, संविधान की भावना को समझना और उसका सम्मान करना हमारे लोकतंत्र के लिए आवश्यक है और यह प्रशंसा और गर्व का विषय है। इन बयानों से जुड़ी टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं ने एक बार फिर संविधान, आरक्षण, और लोकतंत्र पर बहस को हवा दी है।