छतों से बिजली बनाने वालों की संख्या हुई दुगुनी, ग्रीन एनर्जी के प्रति मालवा के लोगों में सर्वाधिक उत्साह

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इंदौर। मेरी छत-मेरी बिजली का नारा बुलंद करने मालवांचल के लोग सतत आगे आ रहे हैं। वे अपनी छतों का उपयोग सोलर पैनल्स के माध्यम से बिजली बनाने में कर रहे है, उनका यह कदम ग्रीन एनर्जी की ओर ले जा रहा है। ऐसे में न केवल ऐसे परिवारों, संस्थाओं को बचत हो रही है, बल्कि प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में भी धीरे-धीरे सफलता प्राप्त हो रही हैं। पूरे मालवा-निमाड़ क्षेत्र में छतों से बिजली बनान वालों में रूझान बढ़ा है। इंदौर शहर में तो छतों से बिजली बनाने वालों की संख्या एक वर्ष के दौरान दुगुनी हो गई है।

मध्यप्रदेश पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के प्रबंध निदेशक अमित तोमर ने बताया कि केंद्र व राज्य शासन सोलर एनर्जी को बढ़ावा दे रही है, क्यों कि यह प्रदूषण रहित और सस्ती होती है। इसी उद्देश्यापूर्ति के तहत पश्चिम क्षेत्र बिजली वितरण कंपनी भी सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ अपनी छतों पर सोलर पैनल्स लगाने वाले व्यक्तियों, संस्थाओं की मदद कर प्रकरण तेजी से मंजूर कर रही है। 18 मई तक ऐसे स्थानों की संख्या 4900 हो गई है, जहां छतों से बिजली तैयार हो रही हैं। इसमें मालवांचल में कुल 4500 स्थानों और निमाड़ में 400 स्थानों पर छतों के सदुपयोग से बिजली तैयार की जा रही है। इन स्थानों पर नेट मीटर के माध्यम से छतों से तैयार व परिसरों में उपयोग की जा रही बिजली का लेखा जोखा रखा जाता है। संबंधित उपभोक्ता को अंतर यूनिट का ही बिल दिया जाता है। प्रबंध निदेशक तोमर ने बताया कि छतों से बिजली तैयार करने वाले परिवारों, संस्थाओं के इस प्रयास से बिजली बिल 30 से 60 फीसदी तक कम हो गए हैं।

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तोमर ने बताया कि कंपनी क्षेत्र के सभ 15 जिलों में इंदौर शहरी सीमा, सुपर कॉरिडोर, बायपास आदि के बसाहट में कुल 3100 स्थानों पर छतों से बिजली तैयार हो रही है। पिछले वर्ष मई के दौरान यह संख्या 1500 के करीब थी। इंदौर के बाद दूसरे क्रम में उज्जैन जिले में 615 और रतलाम में 205, धार जिले में 200, खरगोन जिले में 154 स्थानों पर छतों के माध्यम से बिजली तैयार की जा रही है।

सस्ता व पर्यावरण हितैषी कदम

मप्रपक्षेविविकं के प्रबंध निदेशक अमित तोमर ने बताया कि नेट मीटर सोलर पैनल्स के लिए शासन समय-समय पर सब्सिडी मुहैया कराता है। साथ ही बैंकों से भी इस तरह के पर्यावरण हितैषी कार्यों के लिए आसानी से व कम दर पर लोन मिलता है। सामान्य रूप से तीन से चार वर्ष में पैनल्स उतनी कीमत की बिजली बना देती है, जितनी राशि वहां के सोलर सिस्टम की स्थापना में खर्च होती है।