Navratri : मध्य प्रदेश के देवास जिले में स्थापित है मां चामुंडा और मां तुलजा भवानी का मंदिर बेहद प्रसिद्ध है। यहां दूर दूर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। वहीं नवरात्रि के पावन पर्व पर यहां सुबह से रात तक भीड़ रहती है। वैसे तो इस मंदिर में सालभर भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्रि का त्यौहार सबसे खास होता है। मान्यता है कि जो भी यहां 7 दिन लगातार पान का बीड़ा चढ़ाता है, उसकी मान्यता जरूर पूरी होती है।
जानकारी के मुताबिक, मंदिर के पंडित अनिल मिश्र ने बताया है कि मां तुलजा भवानी और मां चामुण्डा दिन में तीन रूप बदलती हैं। दोनों देवियों के सुबह में बाल, दोपहर में जवान और रात में वृद्ध रूप देखे जा सकते हैं। यहां स्थित बड़ी माता मंदिर पर उल्टा सातिया भी बनाया जाता है। इस सतिये को मन्नतें पूरी होने पर सीधा किया जाता है। यह देवास माता की टेकरी पर किया जाता है।
राजवंश परिवार की कुल देवी है ये माता –
जानकारी के अनुसार, मां चामुंडा पवार राजवंश की कुल देवी हैं। दरअसल, राजवंश अष्टमी के दिन मां की पूजा करता है। बता दे, यहां पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। कहा जाता है कि ये देवियां गुरु गोरखनाथ की इष्ट देवियां हैं। साथ ही ये भी बताया जाता है कि इस तपोस्थल पर विक्रमादित्य के भाई राजा भृतहरि ने भी तपस्या की थी। उनकी तपोस्थली की अन्य गुफाएं उज्जैन में भी हैं।
पृथ्वीराज चौहान की पूजा स्थली –
बता दे, मंदिर के पंडित अनिल मिश्र बताते हैं कि यहां राजा पृथ्वीराज चौहान भी शीश झुकाते थे। बताया जाता है कि इस पावन स्थल पर सद्गुरू शीलनाथ महाराज ने भी 20 वर्ष तपस्या की है। ऐसे में देशभर से भक्त यहां अनादिकाल से शक्ति की उपासना करने आ रहे हैं। देवास का एक और नाम देववासिनी भी है।
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की सही विधि –
जानकारी के मुताबिक, नवरात्रि के दौरान माता का हर भक्त श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करना चाहता है। बहुत से लोग इस पाठ को करते भी हैं लेकिन जानकारी की कमी के चलते पूजन की सही विधियों का ध्यान नहीं रख पाते हैं और पूर्ण फल से वंचित रह जाते हैं। श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ की धर्मग्रंथों में कई विधियां कही गई हैं।
इस विधि से करें पाठ –
श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारंभ करने से पहले प्रथम आराध्य श्रीगणेश जी, शिवजी, विष्णुजी, माता जगदंबा आदि देवी-देवताओं का स्मरण कर उनकी पूजा कर लेनी चाहिए। फिर बाद में पुस्तक का पूजन करे। इसके लिए पुस्तक पर जल छिड़ककर स्नान भाव से स्नान कराएं। इसके बाद धूप-दीप, पुष्प आदि पवित्र पुस्तक पर समर्पित करें। जब भी श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो उस वक्त पुस्तक को मां भगवती का स्वरुप ही मानना चाहिए।