Indore News : करवा चौथ के अवसर पर आयुष मेडिकल वेलफेयर फाउंडेशन तथा अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय अध्ययन केन्द्र क्रमांक 301 इन्दौर के संयुक्त तत्वावधान में निशुल्क संगीत चिकित्सा शिविर का आयोजन ग्रेटर ब्रजेष्वरी स्थित एडवांस योग एवं नेचुरोपैथी हाॅस्पिटल, इन्दौर पर आयोजित किया गया।
डाॅ. विनीत शर्मा ने उक्त अवसर पर कहा कि, स्वस्थ बने रहने के लिए संगीत का प्रयोग करना। चिकित्सकीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सांगीतिक तत्वों का एकल या सामूहिक प्रयेाग ही संगीत चिकित्सा है। ऐसी चिकित्सा पद्धति जिसमें सटीक कार्यप्रणाली एवं प्रक्रिया का प्रयोग संगीत को प्रभावशाली तरीके से उपचार में प्रयोग करने में किया जाए। जहाँ एक ओर भारतीय संगीत की मधुर स्वर लहरियों से सारी दुनिया को मंत्र-मुग्ध करने का काम महान् कलाकारों ने किया है, वहीं अब भारतीय संगीत चिकित्सक भी विश्व-समुदाय को अपना चमत्कार दिखाने को तैयार हैं।
डाॅ. ए.के. द्विवेदी का मानना है कि, संगीत चिकित्सा विज्ञान और कला का समन्वित रूप है। ऐसा नहीं है कि संगीत पर आधारित अधिकांश अनुसंधान सिर्फ विदेशों में हो रहे हैं, हमारा देश इस मामले में अब पीछे नहीं है, जबकि हमारे देष में शुरू से ही संगीत की समृद्ध परम्परा रही है, आज भी है, लेकिन यहाँ संगीत के चिकित्सा संबंधी पहलू पर कभी इतना गौर नहीं किया गया।
डाॅ. द्विवेदी का मानना है कि, संगीत का रूप कोई भी हो, माध्यम कुछ भी हो परन्तु स्वर, ताल, लय तत्व मूलतः समान ही होंगे। संगीत चिकित्सा का मूल आधार भी स्वर, लय एवं काव्य ही हैं, जो हमारे ऊपर प्रभाव डालते हैं। संगीत सुनते समय हमारे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में गतिविधियाँ बढ़ जाती हैं। सुमधुर एवं पसंदीदा संगीत हमारे संपूर्ण चित्त को आकर्षित कर एकाग्रता प्रदान करता है। अज्ञात या अल्प ज्ञात संगीत सिर्फ मनोरंजन करता है उसमंे व्यक्ति समझबूझ, स्मृति और तर्क का प्रयोग नहीं करता है।
मानसिक गतिविधियां, रासायनिक उत्सर्जन को प्रभावित करती हैं, जो हार्मोनल नियंत्रण एवं एंजाइम्स आदि के स्त्राव के रूप में होता है। मस्तिष्क का अग्रभाग सेरीब्रम और हाइपोथैलेमस से बना होता है। सेरीब्रम विभिन्न कार्यों में समन्वय के लिए कई क्षेत्रों जैसे प्रेरक क्षेत्र, संवेदी क्षेत्र, श्रवण क्षेत्र में बना होता है। हाइपोथैलेमस भूख-प्यास, ताप की मात्रा तथा भावनात्मक क्रियाओं का ज्ञान कराता है।
डाॅ. द्विवेदी बताते हैं कि, वर्तमान समय में अनर्गल विषयों की ओर आकृष्ट युवा-पीढ़ी अनेक मानसिक और शारीरिक दुष्परिणामों से ग्रसित हो रही है। ऐसी परिस्थितियों में सम्पूर्ण परिवेश को सौम्य, सुन्दर, मधुर, शान्त बनाने में एवं शारीरिक-मानसिक उद्विग्नता में सहयोगी संगीत की ओर उन्मुख अग्रसर होकर तनावग्रस्त वातावरण से छुटकारा पा सकते हैं।
रोगों के इलाज में संगीत चिकित्सा के महत्व को बताते हुए डाॅ. द्विवेदी ने कहा कि, हृदय रोग में राग दरबारी व राग सारंग से संबंधित संगीत सुनना लाभदायक है। मध्यम सितार वादन से फायदा होता है। कोई भी संगीत तेज ध्वनि में न सुनें। अनिद्रा रोग हमारे जीवन में होने वाले साधारण रोगों में से एक है।
इस रोग के होने पर राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है। बिस्तर पर शांत चित्त होकर मध्यम बांसुरी वादन सुनने से फायदा होता है। कमजोरी, याददाश्त, खून की कमी या शारीरिक कमजोरी, मनोरोग अथवा डिप्रेशन, रक्तचाप या उच्च रक्तचाप में धीमी गति और निम्न रक्तचाप में तीव्र गति का गीत-संगीत लाभ देता है। वीणा वादन सुनना अति लाभदायक होता है।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से डाॅ. विनीत शर्मा, डाॅ. ऋषभ जैन, डाॅ. विवेक शर्मा, डाॅ. जितेन्द्र पुरी सहित संगीत चिकित्सा लाभ लेने के लिये मरीजों में श्री नीलेश जैन, श्रीमती जयश्री लालवानी, श्रीमती आशा जैन, श्रीमती रंजना तिवारी, श्री संजय तिवारी आदि विशेष रूप से उपस्थित होकर म्यूजिक चिकित्सा का लाभ लिया।