पिछडा वर्ग विकास मोर्चा के प्रांताध्यक्ष महेंद्र सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि ओबीसी (OBC) को दिए गए 27% आरक्षण के विरुद्ध उच्च न्यायालय जबलपुर (Jabalpur) में 40 से अधिक याचिकाएं लंबित हैं। इन याचिकाओं की सुनवाई में माननीय उच्च न्यायालय ने निर्देशित किया था कि मध्य प्रदेश सरकार (Madhya pradesh government) के स्थाई अस्थाई सभी प्रकार के अधिकारी, कर्मचारियों का वर्ग वार (क्वान्टिफिएबल) डाटा न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए जिससे,यह स्पष्ट हो सके कि राज्य में कार्यरत अधिकारी कर्मचारियों में से कितने एस.सी कितने एस.टी. कितने ओबीसी वर्ग (OBC Category) और कितने सामान्य वर्ग के अधिकारी कर्मचारी हैं।
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इसमे स्थाई अस्थाई और अन्य सभी प्रकार के अधिकारी कर्मचारियों का डाटा दिया जाना है।विगत वर्ष दिए गए इस आदेश का अभी तक पूरा पालन मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नहीं किया गया। अभी तक केवल डेढ़ लाख कर्मचारियों का डाटा प्रस्तुत किया गया है जबकि मध्यप्रदेश में 4.50 लाख से भी ज्यादा कर्मचारी अधिकारी कार्यरत हैं। डाटा प्रस्तुत न होनें के कारण माननीय उच्च न्यायालय द्वारा लंबित सात याचिकाओं में ओबीसी के 27% आरक्षण के विरुद्ध स्थगन आदेश दे दिया है।
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यह मध्य प्रदेश की 52% आबादी के साथ अन्याय है उच्च न्यायालय के निर्देश पर महाधिवक्ता कार्यालय के पत्र व स्मरण पत्रों दिए जाने के बाद भी संपूर्ण डाटा प्रस्तुत न किया जाना शासन की हठधर्मिता और लापरवाही का द्योतक है। हमारी मांग है कि इसमें श्री मान मुख्यसचिव महोदय स्वयं अपने स्तर से हस्तक्षेप करते हुए क्वान्टिफिएवल डाटा माननीय न्यायालय में 15 दिवस के भीतर भिजवाने का कष्ट करें ।यहां पर मैं यह विशेष तौर पर उल्लिखित करना चाहूंगा कि आजकल प्रत्येक विभाग में अधिकारी कर्मचारियों का कंप्यूटराइज डाटा उपलब्ध है ।
इस डाटा को एकत्र करने में 1 सप्ताह से ज्यादा का समय नहीं लगेगा।अतः पुनः अनुरोध है कि कृपया यह डाटा शीघ्र भिजवाने का कष्ट करें जिससे ओबीसी के 27% आरक्षण के संबंध में बनी हुई भ्रम की स्थिति दूर हो सके। यह भी निवेदन है कि उच्च न्यायालय जबलपुर में महाधिवक्ता महोदय द्वारा ओबीसी के आरक्षण से संबंधित याचिकाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता जिस कारण लगातार ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध लंबित याचिकाओं में स्थगन आदेश दिए जा रहे हैं।
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महाधिवक्ता महोदय सामान्य वर्ग के हैं और उनकी मानसिकता ओबीसी आरक्षण के पक्ष में नहीं है। अतःहमारी मांग यह भी है कि महाधिवक्ता को पद से पृथक किया जा कर किसी निष्पक्ष ब्यक्ति को महाधिवक्ता के पद पर नियुक्त किया जाए ।जिससे न्यायालय में आरक्षण के विरुद्ध लंबित याचिकाओं में शासन का पक्ष सक्षमता से पेश हो सके।तथा 52% ओबीसी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछडे ओबीसी वर्ग को न्याय मिल सके।यदि शासन हमारी मांगों की सुनवाई नहीं करता तो भाजपा सरकार के आरक्षण विरोधी नीति का मुद्दा प्रदेश की 52%ओबीसी आबादी के समक्ष ले जाकर भाजपा के आरक्षण विरोधी मानसिकता की कलई खोली जाएगी।