पुण्य स्मरण : महादेवी जी एक महीयसी के सानिध्य में

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By Mohit DevkarPublished On: September 11, 2020

आज महादेवी वर्मा जी की पुण्यतिथि है। छायावाद के शताब्दी वर्ष में महादेवी जी का स्मरण मेरे लिए एक तरह से दैवीय अनुभूति है। महादेवी जी को पहली बार मिडिल क्लास में पढ़ा था। मुझे उनकी कविताओं से अधिक उनके निबंध, संस्मरण और रेखाचित्र प्रभावित करते हैं।

उनकी कविताओं का दैन्य और नैराश्य मर्मान्तक पीड़ा देता है, वहीं संस्मरणों, निबंधों की ताजगी से मोगरे की खुशबू सी निकलती है।

उन्होंने अपनी रचनाओं में मूक पशुओं की संवेदनाओं को शब्द दिये। ‘सोना हिरनी’ सातवीं में पढ़ी थी। आज भी अपने घर में जब लाइका-ब्लैंकी (हमारी प्यारी कुतियाएं) को देखता हूँ तो ‘सोना हिरनी’ की याद आती है।

निराला जी के व्यक्तित्व को महादेवी जी के ‘पथ के साथी’ पढ़कर जाना। ‘पथ के साथी’ में महादेवी जी ने अपने समकालीन रचनाकार साथियों के व्यक्तित्व पर अद्भुत शब्दचित्र रचा है।

निराला जी माँ वीणापाणि के वरद्पुत्र थे तो महादेवी जी सरस्वती की लाडली बेटी। दोनों का रिश्ता भाई-बहन की प्रगाढता का वैसे ही चरम था जैसे कि वसंत(निराला का जन्मदिन) और रंगपर्व होली( महादेवी का जन्मदिन) ।

इसलिए निराला को पढ़ते हुए महादेवी जी याद आती हैं और महादेवी जी की रचनाओं में कहीं से भी निराला निकल पड़ते हैं।

महादेवी जी के सानिध्य का पुण्य मिला 1985 में। प्रो. विजय अग्रवाल (पूर्व निदेशक एनआईटीटीआर भोपाल, जो स्वयं एक ख्यातनाम रचनाकार व फोटोग्राफर हैं) को वे पुत्रवत् मानती थीं। हम लोग के आग्रह पर विजयजी उन्हें इलाहाबाद से रीवा एक कार्यक्रम मे लाए थे।

वे अप्रसिंविवि के तत्कालीन कुलपति प्रो. हीरालाल निगम की अतिथि थीं। वहीं उनके दर्शन और संवाद का सुअवसर मिला..। यह फोटो भी संभवतः विजय अग्रवाल ने ही खींचा था।

हिंदी को गौरवमयी बनाने वाली महीयसी महादेवी जी की स्मृति को.. कोटि-कोटि प्रणाम्। महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है।
जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रूख़ाबाद
मृत्यु: 11 सितंबर 1987, प्रयागराज
पुरस्कार: ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म विभूषण
शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1933)