गुम हो गई गूंजे-चक्की, शक्करपारे की प्लेट, बिदा हुआ पांच दिवसीय दीप पर्व

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By Suruchi ChircteyPublished On: October 28, 2022

नितिनमोहन शर्मा

आपके यहाँ आपके बगल से गूंजे चक्की चकली ओर शक्करपारे की प्लेट आई क्या? नही न। मेरे यहाँ भी नही आई। आपके नही आई तो कोई बात नही, आपने भेजी प्लेट? नही न। में भी नही भेज सका। कहा गुम हो गई ये प्लेट? किसी को कुछ पता है क्या? कहा है वो प्लेट? किस हालात में है? किसी को दिखे, तो बताना जरूर। बहुत याद आती है वो प्लेट। सबसे हटकर थी वो प्लेट। उसका आकार मायने नहीं रखता था। न प्रकार। चीनी की है या स्टील की? कोई मतलब था ही नही इसका। मायने थे तो सिर्फ परस्पर प्रेम स्नेह और पास-पड़ोस भाव का।

त्यौहार की खुशियों को आपस में बांटने की रिवायत। संस्कार। प्लेट में क्या सामग्री है? कितनी मात्रा में है? कितनी लज़ीज़ ओर गरिष्ठ है? महंगी है या सस्ती..?? मावे की है या बेसन की? शुद्ध घी की है या वनस्पति घी की? ये तो किसी के जेहन में रहता ही नही था। प्लेट बड़ी आसानी से इस घर से उस घर, इस गली से उस गली तक मोहल्लेभर मे फेरा लगा लेती थी। बहुत से अपनत्व के साथ। जेहन में बस ये ही रहता था कि कही कोई छूट नही जाये.. नही तो सामने वाला क्या सोचेगा?

कितनी सुंदर थी न वो प्लेट। हाथ की कारिगरी से बने कलात्मक कपड़े से ढकी-टुपी। उसकी तैयारी भी अलहदा थी। दीपावली का दूसरा दिन का ये मुख्य कर्म था। या यूं कहें संस्कार था। भोर होते ही सबसे पहले प्लेट ही सजाई जाती थी। एक दो नही, अनेक। परिवार में ये सब काम उत्साह से करते थे। बच्चो की खुशियों के तो ठिकाने ही नही रहते थे। प्लेट का आदान प्रदान उनके ही जिम्मे जो रहता था।

इन बाल गोपालो का नए कपडे पहनकर सुबह सुबह से मोहल्लेभर में आने जाने का उत्साह देखते ही बनता था। तब कोई ये सोचकर मुंह नही मुचकाता था कि देखो बच्चो के हाथ ही भेज दिया। प्लेट की सामग्री तब प्रसाद हुआ करती थी और उसी भाव से स्वीकारी जाती थी। कागज की पुड़िया भी प्लेट की कमी को पूरा करती थीं। पांच पच्चीस पुड़ियाओ के संग ही व्यक्ति दीपावली के बाद के दिनों में घर से बाहर कदम रखता था। त्योहारों के जरिये आत्मीयता परसोने का रिवाज कितना सुंदर था न? अब कहा गुम हो गया?

अब प्लेट नही, मिठाई के डिब्बे के डिब्बे घर आते है लेकिन नही आता तो वो अपनत्व जो प्लेट के जरिये आपके घर आँगन में आकर पसर जाता था। अब डिब्बे आते हैं। हैसियत के अनुरूप। रुतबे के हिसाब से। रसूख के मुताबिक। हजार रुपये वाली काजू कतली से लेकर 150 रुपये की सोहन पपड़ी तक। इन डिब्बो से देने वाले की हैसियत, रुतबा झांकता है, आत्मीयता की वो महक नही जो साधारण से प्लेट में रहा करती थी।

अब सब कुछ बाजार का। अब तो घर मे दीपावली के पकवान बनाने का चलन भी दम तोड़ता जा रहा है। मिठाई नमकीन की दुकानों पर लगती लम्बी कतारें इस बात का गवाह है कि अब घरों में डेढ़ तार की चासनी नही बनती। न डेड नम्बर का बेसन पिसवाया जाता है। बेसन सेककर, परात में डालकर फैलाने वाली चक्कियां बनना अब घरों में बन्द हो गई। दो पांच किलो से कम तो किसी के घर बनती ही नही थी। गूंजे को चकरी से काटकर बनी डिजाइन…अब डिजाइनर पैकेट बन्द बक्सों वाली चॉकलेट में दब गई। शक्करपारे से लेकर पापड़ी तक बाज़ार से खरीदी जा रही है कि कौन थके? बाज़ार से खरीदी मिठाई में परिवार की मिठास कहा?

केवल प्लेट ही गुम नही हुई है। बहुत सी रिवायत भी गुपचुप कब बिदा हो गई पता ही नही चला। घरों में बनते गेरू खड़िया के मांडने से लेकर मिट्टी से बने छोटे छोटे घरौंदे भी नजर नही आते। भागती दुनिया मे, तिजारती दौर में रिश्ते ही नही…परम्पराए भी पस्त ओर अस्त हो गई। हैप्पी दीपावली के दौर में रिश्ते टच स्क्रीन तक सिमट गई। पास पड़ोस में आने जाने का चलन अब आभासी दुनिया के हवाले हो गया है। धोक पड़वा अब महिलाओँ तक सिमट गई। बच्चे भी बड़ो का अनुसरण कर रहे है।

उनके लिए महंगे उपहार ब्रांडेड कपड़े और घर की बेहतरीन साज सज्जा ही त्यौहार है। उन्हें कौन सिखाये या बताए कि दीपावली पहले कैसे होती थी? कैसे त्यौहार एकल नही, सामुदायिक होते थे। अब तो बुढे मा-बाप के आंगन में भी दिया जलने के बाद ही बाल बच्चे पहुचते है…अपने बाल बच्चो को लेकर, दीपावली मनाने। समय नही है न किसी के पास। ये ही तो एकमेव बहाना है हम सबके पास अब। लेकिन ये कभी न भूलना कि जो समय के साथ परम्पराओ का विसर्जन कर देता है, वो समाज ज्यादा दिन तक अपनी जड़ो को संभाल नही सकता।

..इसलिए इस बिदा होते पांच दिवसीय पर्व पर ये संकल्प ले लेवे की ये दीपावली तो बीत गई। अगली दीपावली हम फिर से वो पुआ गुंजा ओर लडुआ की वो प्लेट सजायेंगे जो पास पड़ोस में त्यौहार के साथ साथ अपनत्व की मिठास घोल दे। अगल बगल में मिलने जाएंगे। बनावटी मेलमिलाप नही। आत्मीयता का आलिंगन लेकर। हम सब फिर से वो दीपावली जीवित कर दे जो वाकई 5 दिन चलती थी। तो आप संकल्पबद्ध है न? अगले बरस का दीप पर्व के लिए। जो फिर से सबके जीवन मे परम्पराओ के पुनर्जीवन का उजियारा लेकर आये। पांच दिवसीय दीप पर्व की बिदाई पर आप सबको वर्षभर की अटूट मंगलकामनाये….