किश्त-10 : जनता की सत्ता आखिर कैसे लौटे?

Author Picture
By Pinal PatidarPublished On: October 24, 2021

निरुक्त भार्गव, पत्रकार
सूचनाओं, समाचारों और विचारों के सम्प्रेषण और आदान-प्रदान की दृष्टि से समाचार पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्ट्रॉनिक समाचार माध्यमों का कोई मुकाबला नहीं है. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एक-दूसरे के पूरक हैं और इनका अपना-अपना कार्यक्षेत्र और महत्ता भी सु-स्पष्ट है. मुद्दा ये है कि इन दोनों माध्यमों को इस तरह से सक्रिय किया जाए कि लोगों और लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कहीं अधिक जागरूक व मजबूत बनाया जा सके…

इतना तो तय है कि किसी भी राजनीतिक दल, किसी भी सत्ता, किसी भी धन्धेवाले घराने, किसी भी अमीरचंद, किसी भी धार्मिक अथवा जातिगत विचारधारा वाले संगठन, किसी भी भाषायी या कबीलों वाले समूह और विचारधारा-विशेष के पिछलग्गू बनकर मीडिया के नाम पर समाजसेवा नहीं की जा सकती. हालांकि ये एक तथ्य है कि प्राय: समूचे मीडिया माध्यमों पर उद्योगपतियों, बड़े व्यापारियों, शराब माफिया, खनन माफिया, गुटका किंगों, बिल्डरों, प्रभावशाली नेताओं और उनके दलालों के साथ-ही मल्टी-नेशनल कंपनियों का कब्ज़ा है.

आखिर ‘मीडिया-गिरी’ करने का मकसद क्या होता है? क्या अपना-अपना काला धन छिपाने के लिए या उसे एक नंबर मुद्रा में तब्दील करने के लिए? क्या खुद-के गोरखधंधों को बचाने के लिए? क्या एक दबाव समूह निर्मित करने के लिए? क्या एक लॉबी तैयार करने के लिए जिससे कमाई हर रोज बढ़ती रहे? क्या राज्यसभा में जाने के लिए? एक आड़ लेकर काले कारनामों को अंजाम देने के लिए? किसी शगल-वश? किसी शौक के चलते? या, फिर वाकई, जनता के लिए? और क्या जनता (पाठक/दर्शक) को ही अंतत: अपना ‘साध्य’ मानकर…?

‘समाचार’ मीडिया के क्षेत्र में आज जितना बूम है और युवाओं के बीच इसकी जो धूम है, उसका मूल्यांकन करना किसी रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम करने से कम नहीं है! ईमानदारी और निष्ठा से अगर इस महती कार्य में जुट जाएं, तो विश्वख्याति भी मिल सकती है! इसकी जड़ में जो तत्व है, वो आमजन का भरोसा है! भांति-भांति के संकटों और विविध उतार-चढ़ावों के बावजूद एक जागरूक नागरिक इस दौर में भी मीडिया को लेकर बेहद आग्रही है!…तो क्या तक़ाजे ये नहीं कहते कि हम सब एक जवाबदेह ‘समाचार संसार’ स्थापित करें…?

“वाद-प्रतिवाद-संवाद” की जो थ्योरी है, उसीके अनुरूप मेरे कुछ सुझाव हैं:- (1) मीडिया सेक्टर में वांछनीय पढ़ाई-लिखाई और अधुनातन तकनीकी को आत्मसात करनेवाले लोगों को वरीयता दी जाए; (2) जिला-संभाग-प्रदेश-देश स्तर पर कार्यरत पूर्णकालिक मीडियाकर्मियों को हर प्रकार का संरक्षण प्राप्त हो; (3) विश्वविद्यालय, प्रतिष्ठित महाविद्यालय और सक्षम निजी संस्थान समय-समय पर पत्रकारों के कौशल उन्नयन की व्यवस्था करें और (4) ‘जेन्युइन’ समाचार-पत्रों/पत्रिकाओं/न्यूज़चैनल्स/वेबसाइट्स को खूब-खूब सब्सक्राइब किया जाए!

मैं पत्रकारिता का एक विनम्र छात्र हूं, लेकिन जानता हूं कि अमेरिका की प्रसिद्ध उक्ति, “अमेरिकी राष्ट्रपति अगर किसी से खौफ खाता है, तो या तो अपनी पत्नी से या प्रेस से” आज भी अस्तित्व रखती है!

चलता हूं…लौट भी सकता हूं…यदि आप सब चाहें तो……