‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’….

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By Ayushi JainPublished On: August 10, 2020
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दिनेश निगम ‘त्यागी’

– कांग्रेस नेताओं ने तय कर लिया है, ‘हम नहीं सुधरेंगे।’ यही वजह है, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा नेता पार्टी छोड़ चुका है। कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो चुकी है। विधायकों के टूटने का सिलसिला जारी है। बावजूद इसके कमलनाथ सहित बड़े नेता किसी मसले पर एक मत नहीं हो पा रहे। सब ‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’ अलाप रहे हैं। पूरी पार्टी मजाक का पात्र बनी हुई है। भाजपा के मंत्रियों एवं नेताओं को चुटकी लेने का अवसर मिल रहा है। अयोध्या मंदिर मसले को ही लें, कमलनाथ भगवा चोले में नजर आए और राम मंदिर भूमि पूजन का जश्न मनाया। दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह मुहूर्त को लेकर आलोचना में डटे रहे। उनके अनुज लक्ष्मण सिंह ने कमलनाथ के भगवे चोले पर ही चुटकी ले डाली। उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ से कांग्रेस के वोट बढ़ने वाले नहीं हैं। कमलनाथ कुछ नहीं बोल रहे लेकिन जवाब सज्जन सिंह वर्मा दे रहे हैं। युवा नेताओं जयवर्धन सिंह, नकुलनाथ, जीतू पटवारी तथा उमंग सिंघार में अलग प्रतिस्पर्द्धा है। सिंघार बड़े नेताओं पर हमला करने से नहीं चूकते। एक नेता की टिप्पणी थी कि अब भी न सुधरे तो ‘कांग्रेस का भगवान ही मालिक है।’

‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’....

छिन सकती है दो मंत्रियों की कुर्सी?….

– राजनेताओं के जीवन में ‘कभी खुशी, कभी गम’ के दौर आते रहते हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति में यह जल्दी-जल्दी आए। विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता बदली तो कमलनाथ के पाले में ‘खुशी’ और शिवराज के पास ‘गम’ ने दस्तक दी। 15 माह बाद ही समय ने करवट बदली। कमलनाथ सत्ता से बेदखल होकर ‘गम’ के साए में आ गए। शिवराज के घर ‘खुशी’ ने दस्तक दे दी। वे फिर मुख्यमंत्री बन गए। कोरोना के दौर में शिवराज ने पांच सदस्यीय मिनी केबिनेट बनाई। इसमें कांग्रेस के दो बागी पूर्व विधायकों तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को पहले मंत्री बनने का अवसर मिल गया। दोनों ‘खुश’ थे जबकि मंत्री पद के अन्य दावेदार ‘गम’ में डूब गए। एक बार फिर समय के करवट बदलने के हालात बन रहे हैं। उप चुनाव आगे खिसकते लग रहे हैं। नियमानुसार विधानसभा का सदस्य रहे बगैर किसी को भी 6 माह के लिए ही मंत्री बनाया जा सकता है। उप चुनाव न हुए और मंत्री रहते 6 माह हो गए तो सबसे पहले मंत्री बनने वाले सिलावट-राजपूत को इस्तीफा देना पड़ सकता है। यह सोचकर वे पूर्व विधायक ‘खुश’ हैं जिन्हें बाद में मंत्री बनाया गया। अब ‘खुशी’ इनके पाले में और ‘गम’ पहले मंत्री बनने वालों के घर। इसे कहते हैं भाग्य का खेल।

‘सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’….

– बासमती चावल को लेकर प्रदेश में ‘सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा’ वाली राजनीति हो रही है। प्रदेश के बासमती चावल को कभी ‘जीआई टैग’ मिला नहीं। इसके लिए वर्षों से प्रयास ही चल रहे हैं और मप्र की राजनीति में सिर फुटौव्वल के हालात हैं। विवाद पंजाब के मुख्यमंत्री कैंप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र से शुरू हुआ। अमरिंदर ने मोदी से आग्रह किया कि मप्र के बासमती को ‘जीआई टैग’ से बाहर रखा जाए, वर्ना पंजाब सहित ज्यादा उत्पादक राज्यों के किसानों को नुकसान होगा। बस क्या था, भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।। कमलनाथ को इसके लिए जवाबदार ठहरा दिया गया। कमलनाथ ने कहा कि अमरिंदर ने अपने प्रदेश के किसानों के हित को ध्यान में रखकर पत्र लिखा होगा, पर मैं अपने प्रदेश के किसानों के साथ हूं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख डाला। कमलनाथ ने कहा कि प्रदेश और देश में भाजपा की सरकार है। मुख्यमंत्री को सोनिया गांधी की बजाय प्रधानमंत्री को पत्र लिखना चाहिए जिन्हें निर्णय लेना है। है न जनता को बेवकूफ बनाने वाली बेवजह की राजनीति।

जनता की नब्ज टटोलने में ‘चूक पर चूक’….

– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की गिनती लंबे समय तक सफल राजनेता रहे हैं। मुख्यमंत्री रहते वे भाजपा की पूरी कार्यकारिणी को सीएम हाउस में बुलाकर भोजन पर बुलाते थे। केंद्र की तत्कालीन अटल सरकार का हर केंद्रीय मंत्री उनकी तारीफ करके जाता था। पूजा-पाठ, देवी-देवताओं में अगाध श्रद्धा का नतीजा है कि वे शंकराचार्य के दीक्षित शिष्य हैं। साढ़े तीन हजार किमी की नर्मदा परिक्रमा का साहस ढलती उम्र में कर चुके हैं। पर उनकी इमेज हिंदू विरोधी एवं राम विरोधी के साथ मुस्लिम परस्त नेता की बन गई है। उनकी गिनती पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले नेता के तौर पर होने लगी है। उनके बयानों से लगता है कि वे जनता की नब्ज टटोलने में चूक कर रहे हैं। हिंदुत्व और धार्मिक मुद्दों पर वे जो स्टेंड लेते हैं, उस पसंद नहीं किया जाता। उनके गुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कह दिया कि राम मंदिर भूमि पूजन का मुहूर्त शुभ नहीं है तो इसे उन्होंने मुद्दा बना डाला। कांग्रेस का एक भी नेता इस मसले पर उनके साथ खड़ा नजर नहीं आया। लेकिन वे पार्टी से अलग अपने स्टेंड पर अड़े रहे। सवाल यह है कि दिग्विजय जैसा नेता जनता की नब्ज पहचानने में बार-बार चूक क्यों कर रहा है।

उमा का ‘सच्चे राम भक्त’ जैसा बयान….

– अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के मुहूर्त को लेकर सवाल उठाने वालों को जब भाजपा के कुछ नेताओं ने आसुरीय प्रवृत्ति का ठहरा दिया तो इसकी आलोचना हुई। सवाल दिग्विजय के साथ शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भी उठाया था। ऐसे में भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती ने सच्चे राम भक्त और परिपक्व नेता का परिचय दिया। अपनी पार्टी के ही कुछ नेताओं को आइना दिखाते हुए उन्होंने कहा, ‘राम के नाम पर भाजपा का पेटेंट नहीं है, न ही राम भाजपा की बपौती हैं। राम सबके हैं। राम मंदिर निर्माण होने जा रहा है तो इसे लेकर राजनीति बंद होना चाहिए।’ बता दें, राजनीति में आने से पहले बाल्यकाल से ही उमा मानस मर्मज्ञ थीं। 8 साल की उम्र से देश-विदेश में प्रवचन करती थीं। बाद में वे भाजपा के जरिए राजनीति में आर्इं लेकिन अयोध्या आंदोलन से लगातार जुड़ी रहीं। राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन के बाद भी जब वाद-विवाद नहीं थमा तो उन्हे कहना पड़ा कि राम सबके हैं। इस पर राजनीति नहीं होना चाहिए। उमा के इस कथन की आम लोगों के साथ कांग्रेस में उमा के धुर विरोधी दिग्विजय सिंह जैसे नेता तक ने रि-ट्वीट कर तारीफ की।