इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर से पड़ा इंदौर का नाम, जाने यहां की मान्यता और इतिहास

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आबिद कामदार

इंदौर। मां अहिल्या की नगरी में कई प्राचीन मंदिर है, जिनकी अपनी अपनी धार्मिक मान्यताएं है। इनमें से ज्यादातर मंदिरों का निर्माण मां अहिल्या बाई ने खुद करवाया था। शहर के रहस्यमई और प्राचीन मंदिर की अगर बात की जाए तो इंद्रेश्वर मंदिर अपने रहस्य और मत से काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है की भगवान इंद्रेश्वर के इस मंदिर के नाम पर ही शहर का नाम इंदुर हुआ, जिसे बाद में बदलकर इंदौर कर दिया गया। मान्यता यह है कि यह मंदिर 4 हजार साल पुराना है, और भगवान इंद्रेश्वर ही इस शहर के पालन हरता है। इस इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख शिव महापुराण में भी किया गया है।

आज भी शहर के जलसंकट को दूर करते है भगवान इंद्रेश्वर

इस मंदिर के तलघर में इंद्रेश्वर महादेव विराजमान हैं, शहर में यह मान्यता है कि जब-जब अल्पवर्षा से इंदौर के शहरवासियों को जल संकट का सामना करना पड़ता है, तब लोग भगवान शिव का जलाभिषेत करते हैं। जिसके बाद अल्प वर्षा के संकट से उन्हें राहत मिलती है। मंदिर के प्रमुख पुजारी का मानना है कि हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख पढ़ने को मिलता है।

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किंवदंतियों के मुताबिक स्वामी इंद्र ने मंदिर की स्थापना की थी।

मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना स्वामी इंद्रपुरी ने की थी। किंवदंतियों के मुताबिक उन्होंने शिवलिंग को कान्ह नदी से निकलवाकर प्रतिस्थापित किया था। बाद में होलकर राजवंश के तुकोजीराव प्रथम ने इस मंदिर का जीर्णद्धार किया था।

मान्यताओं के अनुसार भगवान इंद्र ने यहां तपस्या की थी।

कई प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान इंद्र को एक बार सफेद दाग की बीमारी हुई तो उन्होंने यहां तपस्या की। जिस कारण इस मंदिर को इंद्र देव से जोड़ कर देखा जाता है। लोगों को कोई भी परेशानी आने पर इंद्रेश्वर महादेव की शरण में आते है, और अपने दुखों का समाधान पाते है।

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भगवान को स्पर्श कर निकलने वाले जल से रोगों में छुटकारा मिलता है।

इतिहासकारों के अनुसार इंद्रेश्वर महादेव मंदिर इंदौर शहर का सबसे प्राचीन मंदिर है, जो पंढरीनाथ में लगभग 4 हजार वर्ष पहले निर्मित हुआ था। लोक मत के अनुसार भगवान को स्पर्श करते हुए निकलने वाले जल को ग्रहण करने से रोग आदि से छुटकारा मिलता है। तो वहीं बारिश के लिए यहां शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद भगवान को जलमग्न कर दिया जाता है वहीं शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल को जिस भी भूमि पर डालकर बोरिंग किया जाता है वहां जलसंकट से समाधान मिलता है।