एमपी में खाद पर हाहाकार, प्रदेश में हुई 3.5 लाख टन यूरिया की कमी, जानें इसकी असली वजह

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By Abhishek SinghPublished On: September 7, 2025

मध्य प्रदेश में खाद को लेकर विवाद की खबरें लगातार अलग-अलग जिलों से सामने आ रही हैं। कहीं किसान लंबी कतारों में खड़े दिखाई दे रहे हैं तो कहीं खाद न मिलने से आक्रोशित होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे हालात में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या प्रदेश में सचमुच खाद की कमी है? मौजूदा स्थिति पर नजर डालें तो जवाब ‘हां’ लगता है, हालांकि इस किल्लत के पीछे एक बड़ी वजह भी उजागर हुई है।


असल में, मध्य प्रदेश में सोयाबीन की बोवनी घटने और मक्का का रकबा करीब पाँच लाख हेक्टेयर बढ़ जाने से यूरिया की खपत में उल्लेखनीय इज़ाफा हुआ है। इसी वजह से किसानों को समय पर खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही। सितंबर महीने में लगभग साढ़े तीन लाख मीट्रिक टन खाद की कमी दर्ज की गई है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि आने वाले 24 दिनों में किसानों की ज़रूरत के मुताबिक खाद की आपूर्ति सुनिश्चित कर दी जाएगी।

खाद की कमी से प्रदेश के कई जिलों के किसानों में गहरा असंतोष देखने को मिल रहा है। कई जगहों पर रोजाना विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। लंबे समय तक लाइन में खड़े रहने के बावजूद किसानों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। इसी संकट के चलते भिंड में विधायक और कलेक्टर के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी। वहीं, इससे जुड़ी शिकायतें लगातार प्रशासन और सरकार तक पहुंच रही हैं।

मक्का के रकबे में पांच लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस बार मक्का और धान की खेती का रकबा बढ़ने से यूरिया की मांग अचानक तेज हो गई है। वर्ष 2025-26 में मक्का का क्षेत्रफल बढ़कर 20.8 लाख हेक्टेयर हो गया, जबकि पिछले साल यह 15.3 लाख हेक्टेयर था। इसी तरह धान की बोवनी भी 36.20 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 36.32 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई। इसके विपरीत, सोयाबीन की खेती में गिरावट दर्ज हुई है। इस बार 51.20 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोई गई, जबकि बीते वर्ष यह 53.85 लाख हेक्टेयर में थी। चूंकि सोयाबीन की तुलना में मक्का में यूरिया की खपत अधिक होती है, इसलिए मांग में बड़ा इजाफा देखा जा रहा है।

मांग बढ़ी, लेकिन वितरण ठीक नहीं

प्रदेश में मक्का की खेती के बढ़ते रकबे के कारण यूरिया की मांग 1 लाख मीट्रिक टन बढ़ गई है। कई जिलों में समय पर खाद की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, जबकि कुछ जिलों में उपलब्ध यूरिया का वितरण भी सही तरीके से नहीं हो रहा। इन दोनों कारणों से खाद की प्राप्ति के लिए जिलों में तनावपूर्ण स्थिति बन गई है।

खाद आपूर्ति की पूरी प्रक्रिया

केंद्र सरकार राज्यों को यूरिया का आवंटन करती है। आवंटित कुल मात्रा का लगभग 30 प्रतिशत निजी दुकानदारों को जाता है, जबकि शेष 70 प्रतिशत में से आधा हिस्सा सहकारी समितियों को और आधा हिस्सा डबल लॉक व्यवस्था के तहत मार्कफेड और एमपी एग्रो को दिया जाता है। जिले में इनके पांच से छह सेंटर होते हैं, जहां खाद लेने के लिए किसानों की लंबी कतारें लग जाती हैं।

सितंबर में यूरिया संकट बढ़ा, 3 लाख टन की कमी

सितंबर 2025 में प्रदेश में लगभग चार लाख मीट्रिक टन यूरिया की मांग दर्ज हुई है। छह सितंबर तक केवल 60 हजार मीट्रिक टन ही आपूर्ति की जा सकी है, जबकि बाकी खाद 25 दिन में आने का भरोसा दिया गया है। पिछले महीनों में भी यही कमी देखने को मिली थी, जिसके कारण किसान सड़कों पर उतर आए। पिछले साल की तुलना में इस बार यूरिया की मांग में एक लाख मीट्रिक टन का इजाफा हुआ है, जिससे कृषि विभाग के अनुमान पूरी तरह प्रभावित हुए हैं।