देश में नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद, मध्य प्रदेश में शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। हालांकि, स्कूलों की स्थिति में सुधार की उम्मीद अब तक पूरी नहीं हुई है। स्थिति यह है कि राज्य के स्कूलों में तीसरी कक्षा तक के 35 प्रतिशत बच्चों को 100 तक गिनती नहीं आती, जबकि 10 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों को अक्षर ज्ञान नहीं है। यह चौंकाने वाला खुलासा एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) की वार्षिक रिपोर्ट में किया गया है। इस सर्वेक्षण में प्रदेश के 50 जिलों के सरकारी और निजी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को शामिल किया गया।
हालांकि, बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अभिभावकों में रुचि बढ़ी है, और पिछले सात वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो नामांकन दर में भी वृद्धि हुई है। 2024 में प्री-स्कूल में तीन साल के 90.5 फीसदी, चार साल के 88.7 फीसदी, और पांच साल के 66.7 फीसदी बच्चों ने प्रवेश लिया है।
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मध्य प्रदेश बना नई शिक्षा नीति लागू करने वाला पहला राज्य
मध्य प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करने वाला पहला राज्य बन चुका है, लेकिन बच्चों की स्थिति अब भी ठीक नहीं है। राज्य के सरकारी स्कूलों के बच्चे ठीक से अक्षर भी नहीं पहचान पा रहे हैं, जिससे सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। यह खुलासा स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी की गई एक सर्वे रिपोर्ट के बाद हुआ है। सर्वे रिपोर्ट ने प्रदेश की स्कूली शिक्षा प्रणाली की वास्तविकता उजागर कर दी है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों के मुकाबले निजी स्कूलों के बच्चों की सीखने की क्षमता में बेहतर सुधार देखा जा रहा है।
रिपोर्ट में सामने आईं चौंकाने वाली बातें
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रिपोर्ट के मुताबिक, कक्षा 3 के 10.3% बच्चे अक्षर भी नहीं पहचान पा रहे हैं, जबकि 35.5% बच्चे केवल अक्षर पहचान सकते हैं, पर शब्द या उससे अधिक नहीं पढ़ पाते। 19.4% बच्चे शब्द तो पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा स्तर का पाठ या उससे अधिक नहीं समझ पाते। 16.1% बच्चे कक्षा स्तर का पाठ तो पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा 2 के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ पाते। वहीं, 18.8% बच्चे कक्षा 2 स्तर का पाठ पढ़ने में सक्षम हैं।
16% छात्राओं और 12% छात्रों का स्कूलों में प्रवेश नहीं हो सका
इस रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 15 से 16 वर्ष की उम्र की 16 प्रतिशत छात्राएं और 12 प्रतिशत छात्र स्कूलों में प्रवेश नहीं कर पाए हैं। हालांकि, यह आंकड़ा पिछले आठ सालों में कम हुआ है। 2022 में 12 प्रतिशत लड़के और 17 प्रतिशत लड़कियां स्कूलों में नामांकित नहीं हो पाई थीं। कोविड के पहले यह आंकड़ा और भी अधिक था। इस सर्वे में स्कूलों में उपलब्ध बुनियादी सुविधाओं का भी आकलन किया गया है, जिसमें पिछले सालों की तुलना में कुछ सुधार देखा गया है। 58 प्रतिशत स्कूलों में कन्या शौचालय उपयोग के योग्य हैं, 70 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध है, 91 प्रतिशत स्कूलों में मध्याह्न भोजन दिया जाता है, और 90 प्रतिशत स्कूलों में बिजली कनेक्शन है।