जाने कैसे 3 बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए प्रणब दा

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By Akanksha JainPublished On: August 31, 2020

प्रणब मुखर्जी। भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को इलाज के दौरान देहांत हो गया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का काफी दिनों से दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी ने सोशल मीडिया के जरिये उनके देहांत की खबर दी।

प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक सफर में तीन बार ऐसे मौके आए, जब लगा कि प्रधानमंत्री वे ही बनेंगे, हालांकि तीनो बार प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री नहीं बन सके। प्रणब दा की काबिलियत का अंदाजा आप पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस बयान से लगा सकते है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तीन साल पहले कहा था कि,”जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिए ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था।”

आज हम आपको प्रणब मुखर्जी के राजनितिक सफर और उन तीन मौके के बारे में बताएँगे जब प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद पर खड़े हो सकते थे, हालांकि ऐसा न हो पाया।

1. बात है सन 1969 की जब इंदिरा गाँधी के आग्रह पर प्रणब मुखर्जी पहली बार राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे। तब इंदिरा गाँधी ने राजनीतिक मुद्दों पर प्रणब दा की समझ की कायल थीं। और यही वजह थी कि प्रणब दा को कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा दिया। वही इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद अगले प्रधानमंत्री के रूप में प्रणब दा का नाम चर्चा में था। हालांकि पार्टी ने राजीव गाँधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुना। कैबिनेट में प्रणब को जगह नहीं मिल सकी। बाद में उन्होंने लिखा- जब मुझे पता लगा कि मैं कैबिनेट का हिस्सा नहीं हूं तो दंग रह गया। लेकिन, फिर भी मैंने खुद को संभाला।

2. बात है 1991 की जब राजीव गाँधी की हत्या हुई थी। कांग्रेस की सत्ता में वापसी होने के बाद माना जा रहा था कि अबकी बार प्रणब मुखर्जी के मुकाबले पर प्रधानमंत्री के पद के लिए कोई दूसरा दावेदार नहीं है, हालांकि इस बार भी प्रधानमंत्री का पद हाथ से निकल गया। इस बार नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। जिसके बाद प्रणब दा को पहले योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर 1995 में विदेश मंत्री का पद दिया गया।

3. अब बात है सन 2004 की जब कांग्रेस पार्टी को 145 और भाजपा को 138 सीटें मिलीं। हालांकि इसे बीजेपी की हार माना गया। इस साल सोनिया गाँधी के पास प्रधानमंत्री बनने का मौका था। लेकिन सोनिया गाँधी ने ऐसा नहीं किया। फिर प्रणब दा का नाम चर्चा में आया लेकिन सोनिया गाँधी ने जाने माने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के पद के लिए चुना।