हाइपोथायराइडिज्म की समस्या भारत में खासकर 20 से 40 वर्ष की महिलाओं के बीच तेजी से उभर रही है। मेदांता अस्पताल के एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. तन्मय भराणी के अनुसार, हर छह में से एक महिला इस हार्मोन संबंधी रोग से प्रभावित है, और कोरोना महामारी के बाद इसके मामलों में लगभग 10% वार्षिक वृद्धि देखी जा रही है।
आनुवंशिकता और ऑटोइम्यून विकार इसके प्रमुख कारण
डॉ. भराणी बताते हैं कि हाइपोथायराइडिज्म के मुख्य कारणों में अनुवांशिक प्रवृत्ति और ऑटोइम्यून डिसऑर्डर जैसे हाशिमोटो थायराइडिटिस शामिल हैं। यह एक लंबी अवधि तक चलने वाली अवस्था है, लेकिन समय पर पहचान और सही इलाज के ज़रिये इसे पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।

लक्षणों को न करें नजरअंदाज
थकान, अनचाहा वजन बढ़ना, त्वचा में रूखापन, ठंड सहने में कठिनाई और महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी गड़बड़ियाँ – ये सभी हाइपोथायराइडिज्म के संभावित संकेत हो सकते हैं। डॉ. भराणी सलाह देते हैं कि इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें और तुरंत थायराइड की जांच कराएं।
इलाज में लापरवाही हो सकती है खतरनाक
अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह स्थिति मोटापा, उच्च कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग जैसी गंभीर समस्याओं का रूप ले सकती है। धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में थायराइड की समस्या की संभावना और भी अधिक होती है।
नियमित दवा और जीवनशैली में सुधार से मिल सकता है राहत
डॉ. भराणी का मानना है कि जीवनशैली में बदलाव जैसे संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और तनाव नियंत्रण के साथ-साथ दवाओं का नियमित सेवन करने पर हाइपोथायराइडिज्म से पीड़ित व्यक्ति एक सामान्य, स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।