मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में आपको हर गली और चौराहों में सूरज निकलने के साथ ही लाल-नारंगी, चाशनी में डूबी गर्म-गर्म जलेबियां और नरम पोहे देखने को मिलते है। इस शहर में पोहे और जलेबी की एक अलग ही दीवानगी देखने को मिलती है। लेकिन ये दीवानगी सिर्फ इंदौर में रहने वालों तक सीमित नहीं है बल्कि यहाँ आने वाले हर शख्स को इसका दीवाना बना देता है। छोटे हो या बड़े पोहा जलेबी हर आयुवर्ग को खूब पसंद आता है।
दरअसल असली इंदौरी की पहचान ही तब होती है जब वो पोहा जलेबी का दीवाना होता है। समृद्धि और संस्कृति से भरपूर मालवा एक ऐसी जगह है जहां पर हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। पौराणिक इतिहास, मान्यता, धार्मिक नगरी से परिपूर्ण मध्य प्रदेश, देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। हालाँकि एमपी टूरिज्म के लिए पहुंचने वाले लोगों को यहां की खूबसूरती जितना आकर्षित करती है उतना ही यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद भी उन्हें मोह लेता है।
90 प्रतिशत लोगों के दिन की शुरुआत पोहा खाकर होती है
जब भी इंदौर की धरती पर कदम रखते हैं तो एक खुशबू हवा में तैरने लगती है, स्टेशन पर उतरे नहीं कि बाहर निकलते ही बड़े से कड़ाहों में से आ रही ये खुशबू आपको अपनी तरफ खींचने लगती है, यह खुशबू होती है सिर्फ इंदौरी पोहे की। खास बात ये है कि दुनिया में इंदौर ही एकमात्र ऐसा शहर है, जहां के 90 प्रतिशत लोगों के दिन की शुरुआत पोहा खाकर होती है।
कैसे हुई इंदौरी पोहे की शुरुआत ?
बताया जाता है इंदौर में पोहा देश की आजादी के करीब दो साल बाद 1949-1950 में आया. जब महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के निज़ामपुर में 1923 में जन्मे पुरुषोत्तम जोशी अपनी बुआ के घर इंदौर आए और यहीं के होकर रह गए। उन्होंने गोदरेज कम्पनी में सेल्समैनशिप की, लेकिन उन्हें कुछ अपना ही करने की चाहत थी। सबसे पहले आज के तिलकपथ पर उन्होंने उपहार गृह की स्थापना की। युवा पुरुषोत्तम ने अपने इस ठिये पर बावर्ची, वेटर और कैशियर की जिम्मेदारियां भी निभाईं।
कैसे हुई जलेबी की शुरुआत ?
हौब्सन-जौब्सन के अनुसार जलेबी शब्द अरेबिक शब्द ‘जलाबिया’ या फारसी शब्द ‘जलिबिया’ से आया है। मध्यकालीन पुस्तक ‘किताब-अल-तबीक़’ में ‘जलाबिया’ नामक मिठाई का उल्लेख मिलता है जिसका उद्भव पश्चिम एशिया में हुआ था। ईरान में यह ‘जुलाबिया या जुलुबिया’ के नाम से मिलती है। 10वीं शताब्दी की अरेबिक पाक कला पुस्तक में ‘जुलुबिया’ बनाने की कई रेसिपीज़ का उल्लेख मिलता है। 17 वीं शताब्दी की ‘भोजनकुटुहला’ नामक किताब और संस्कृत पुस्तक ‘गुण्यगुणबोधिनी’ में जलेबी के बारे में लिखा गया है।
भारत में जलेबी का इतिहास 500 साल पुराना है। पांच सदियों के दौरान इसमें कई बदलाव और स्थानीय परिवर्तन हुए है लेकिन जो बात सर्वव्यापी रूप से हुई वह ये कि जलेबी उत्सव का पर्याय बन गई। कहीं पोहे, तो कहीं रबड़ी के साथ जलेबी खाई जाती है। गौरतलब है कि खानपान के लिए प्रसिद्ध इंदौर शहर में 300 ग्राम वज़नी ‘जलेबा’ मिलता है। जलेबी के मिश्रण में कद्दूकस किया पनीर डालकर पनीर जलेबी तैयार की जाती है।