वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 को संसद में वित्त वर्ष 2025-26 का आम बजट पेश करने जा रही हैं। बजट में सरकार अपने आगामी वित्तीय वर्ष की योजनाओं और खर्चों का ब्यौरा देती है, लेकिन इससे एक दिन पहले, 31 जनवरी को, एक और महत्वपूर्ण दस्तावेज पेश किया जाता है—आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey)। यह केवल एक रिपोर्ट भर नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का हेल्थ कार्ड होता है। यह बीते साल की आर्थिक स्थिति का आकलन करता है और भविष्य की संभावनाओं का खाका भी खींचता है।
आर्थिक सर्वेक्षण: देश की अर्थव्यवस्था का परफॉर्मेंस रिपोर्ट कार्ड
आर्थिक सर्वेक्षण सरकार और अर्थव्यवस्था—दोनों के परफॉर्मेंस की विस्तृत रिपोर्ट देता है। यह बताता है कि सरकार की नीतियों का असर देश की आर्थिक सेहत पर कैसा पड़ा, किन सेक्टर्स ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और किन क्षेत्रों को सुधार की जरूरत है।
कैसे समझाता है आर्थिक हालात?
इकोनॉमिक सर्वे तीन प्रमुख सेक्टर्स का गहराई से विश्लेषण करता है:
- प्राइमरी सेक्टर (कृषि और संबद्ध उद्योग)
- सेकेंडरी सेक्टर (उद्योग और मैन्युफैक्चरिंग)
- सर्विस सेक्टर (आईटी, लॉजिस्टिक्स, बैंकिंग आदि)
यह रिपोर्ट सिर्फ मौजूदा स्थिति ही नहीं दिखाती, बल्कि भविष्य की संभावनाओं का अनुमान भी लगाती है। इसमें महंगाई, वैश्विक व्यापार, भू-राजनीतिक परिस्थितियों और वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावों का भी आकलन किया जाता है। इसके अलावा, यह यह भी बताता है कि किस वर्ग को सरकार से अधिक सहयोग की जरूरत है।
कब और कौन बनाता है आर्थिक सर्वेक्षण?
हर साल बजट से ठीक एक दिन पहले, 31 जनवरी को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। इसे वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों का विभाग (Economic Division) तैयार करता है, और इसकी अगुवाई मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor) करते हैं। इस साल यह जिम्मेदारी वी. अनंत नागेश्वरन निभा रहे हैं।
क्यों है यह इतना अहम?
आर्थिक सर्वेक्षण एक गाइडलाइन्स की तरह काम करता है, जिससे सरकार नीतियों की समीक्षा कर पाती है और आने वाले बजट को बेहतर बनाने के लिए फैसले लेती है। यह सिर्फ आंकड़ों की रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक ऐसा दस्तावेज है जो भारत की आर्थिक नब्ज को समझने में मदद करता है।