मालिक फिल्म रिव्यू : राजकुमार राव का दमदार गैंगस्टर अवतार

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By Alok KumarPublished On: July 11, 2025
मालिक फिल्म रिव्यू: राजकुमार राव का दमदार गैंगस्टर अवतार

पिछले कुछ समय से बॉक्स ऑफिस पर मारधाड़ और हिंसा से भरपूर फिल्मों का चलन तेजी से बढ़ा है। दर्शकों की पसंद में बदलाव साफ नजर आ रहा है — अब वे सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि तीव्र, रॉ और रियल किरदारों वाली कहानियां देखना चाहते हैं। आने वाले समय में भी कई ऐसी फिल्में रिलीज होने वाली हैं, जो इस ट्रेंड को और मजबूत करेंगी। इसी कड़ी में निर्देशक पुलकित की फिल्म ‘मालिक’ ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है — एक ऐसी कहानी जो एक साधारण किसान के बेटे की गैंगस्टर बनने की साहसिक यात्रा को पर्दे पर उतारती है।

कहानी का सार: मालिक कैसे बना ‘मालिक’?

‘मालिक’ एक ऐसी कहानी है, जो दर्शकों को 1980 के दशक के पूर्वी उत्तर प्रदेश में ले जाती है — एक ऐसा समय और जगह जहां सत्ता, राजनीति और अपराध की रेखाएं धुंधली हो चुकी थीं।

दीपक (राजकुमार राव), एक सामान्य किसान का बेटा, वह लड़का है जो अपने पिता की बात मानने से इंकार करता है — वो किसी और को मालिक मानने से इनकार करता है, क्योंकि उसका सपना है खुद मालिक बनने का। जब ज़िंदगी एक भयानक मोड़ लेती है और उसका परिवार हिंसा का शिकार होता है, तो दीपक सिस्टम के खिलाफ खड़ा होता है, और यहीं से शुरू होती है उसकी अपराध की दुनिया में एंट्री।

राजनीति, बाहुबल और अपराध की मिलीभगत को बखूबी दर्शाती इस कहानी में दीपक एक-एक करके अपने दुश्मनों पर भारी पड़ता है — यहां तक कि विधानसभा टिकट की दौड़ में उतर आता है।

निर्देशन और पटकथा: 80 के दशक की एस्थेटिक्स में आधुनिक स्टाइल

निर्देशक पुलकित और लेखिका ज्योत्सना नाथ ने मिलकर एक पुरानी थीम को नया तेवर देने की कोशिश की है। यकीनन, कमजोर पिता के बेटे का बाहुबली बनना कोई नया विचार नहीं है, लेकिन इस फिल्म में संवाद और दृश्यांकन इतने प्रभावशाली हैं कि फिल्म बांधकर रखती है।

फिल्म में 80 के दशक की झलकियां — जैसे दीवारों पर “शहंशाह” के पोस्टर, स्लो मोशन की जगह रॉ रियलिज्म — दर्शकों को उस दौर में डुबो देते हैं। खास बात यह है कि पुलकित क्लिच से बचते हैं और ‘हीरो की एंट्री’ वाले घिसे-पिटे तरीकों से दूरी बनाए रखते हैं।

अभिनय: राजकुमार राव का दमदार अवतार

राजकुमार राव पहली बार गैंगस्टर के रोल में नजर आते हैं, और उन्होंने साबित किया है कि वे हर रूप में ढल सकते हैं। दीपक से ‘मालिक’ बनने की उनकी यात्रा पूरी तरह विश्वसनीय लगती है।

सपोर्टिंग कास्ट भी कमाल करती है:

  • अंशुमन पुष्कर दोस्त के रोल में शानदार हैं
  • सौरभ शुक्ला और स्वानंद किरकिरे सीमित स्क्रीनटाइम में भी प्रभाव छोड़ते हैं
  • प्रोसेनजीत एक बार फिर अपने अभिनय से चौंकाते हैं
  • मानुषी छिल्लर ने भी अपने सीमित रोल में अच्छी छाप छोड़ी है

तकनीकी पक्ष: बैकग्राउंड स्कोर और कैमरा वर्क की तारीफ जरूरी

केतन सोढ़ा का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म में थ्रिल और टेंशन बनाए रखता है। अनुज राकेश धवन का सिनेमैटोग्राफी — विशेषकर एक्शन दृश्यों में — बेहद प्रभावी है।

मुख्य संवाद जो याद रह जाते हैं:

  • “मालिक पैदा नहीं होते… बनते हैं!”
  • “यहां सरेंडर नहीं, कांड होते हैं!”
  • “मनोरंजन में हिंसा हो रही है…”

देखें या नहीं?

‘मालिक’ एक रॉ और रियल क्राइम ड्रामा है जो उन दर्शकों के लिए है जो कहानी में गहराई, स्टाइल और परफॉर्मेंस की तलाश में हैं। भले ही कुछ हिस्सों में स्क्रिप्ट को और मजबूती दी जा सकती थी, लेकिन फिल्म अपने दमदार संवाद, राजकुमार राव के अभिनय और 80 के दशक के क्रिएटिव ट्रीटमेंट के चलते देखने लायक बन जाती है।